महाराष्ट्र के पुणे जिले में भारी पुलिस बल की मौजूदगी में हजारों लोग, खासकर दलित कोरेगांव भीमा लड़ाई की 201वीं वर्षगांठ के उपलक्ष्य में ‘जय स्तम्भ’ पर एकत्र हुए और श्रद्धांजलि दी। कोरेगांव भीमा लड़ाई 1818 में हुई थी। पिछले साल इस लड़ाई की वर्षगांठ के अवसर पर एक जनवरी को हुए जातिगत संघर्ष में एक व्यक्ति की मौत हो गई थी और कई अन्य घायल हो गए थे।
8 lakh pay tributes at Bhima-Koregaon in Pune https://t.co/Y2YyVqEYkP reports @Bendeanurag pic.twitter.com/GEgcLLOysc
— DNA (@dna) January 2, 2019
पुलिस ने बताया कि कम से कम पांच हजार पुलिसकर्मी, 1,200 होमगार्ड, राज्य रिजर्व पुलिस बल की 12 कंपनियां और 2,000 दलित स्वयंसेवी पेरने गांव के आसपास तैनात हैं जहां लोग स्मारक पर श्रद्धांजलि अर्पित कर रहे हैं।
Thousands visit Bhima Koregaon to mark anniversary of British-era warhttps://t.co/xnoHMAqDCl pic.twitter.com/8G517lMKUV
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पुणे जिले की सीमा के पास पुलिस चौकियां स्थापित की गई हैं। विशेष पुलिस महानिरीक्षक विश्वास नांगरे पाटिल ने कहा, ‘‘पेरने गांव और इसके आसपास इंटरनेट सेवाएं रोक दी गई हैं।’’
दलितों का मानना है कि 1818 की लड़ाई जातिवादी व्यवस्था पर जीत थी क्योंकि ब्रिटिश सेना में बड़ी संख्या में दलित महार सैनिक थे जिन्होंने पेशवाओं-मराठा शासन के ब्राह्मण संरक्षकों को हरा दिया था।
Bhima Koregaon anniversary: Hundreds visit Vijay Stambh memorial; security heightened, internet services suspended to avoid last year's violence. India Today's @Pkhelkar joins us for more on this. #ITVideohttps://t.co/Nounxo6IKQ pic.twitter.com/IrHUDXQLQz
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हर साल एक जनवरी को अनुसूचित जाति के लोग यहां जश्न मनाने के लिए एकत्रित होते हैं। ये जश्न नए साल का नहीं बल्कि 1 जनवरी, 1818 को हुए युद्ध में जीत को लेकर मनाया जाता है। 1818 में ईस्ट इंडिया कंपनी की सेना ने पेशवा की बड़ी सेना को हरा दिया था।
पेशवा की सेना का नेतृत्व बाजीराव द्वितीय कर रहे थे। इस लड़ाई में ईस्ट इंडिया कंपनी की जीत को अनुसूचित जाति के लोग अपनी जीत मानते हैं। उनका कहना है कि इस लड़ाई में अनुसूचित जाति के साथ अत्याचार करने वाले पेशवा की हार हुई थी।
हर साल 1 जनवरी के अनुसूचित जाति के लोग विजय स्तंभ के सामने सम्मान प्रकट करते हैं। ये स्तंभ ईसट इंडिया कंपनी ने तीसरे एंगलो-मराठा युद्ध में शामिल होने वाले लोगों की याद में बनाया था। इस स्तंभ पर उन लोगों के नाम लिखे हैं जो 1818 की लड़ाई में शामिल हुए थे।
साल 2018 में 1818 को हुए युद्ध को 200 साल पूरे हुए थे। इस मौके पर अनुसूचित जाति के लोग युद्ध जीतने वाली महार रेजिमेंट को श्रद्धांजलि देने पहुंचे थे। इसी दौरान अनुसूचित जाति और मराठा समुदाय के लोगों के बीच हिंसा भड़क उठी। इस हिंसा में एक व्यक्ति की मौत भी हुई।
यहां दुकान लगाने वाले 35 वर्षीय संतोष दावने का कहना है कि नए साल का पहला दिन शांति भरा होगा। युद्ध में शामिल लोगों को सम्मान देने के लिए संतोष यहां बीते 12 साल से आ रेह हैं। उनका कहना है कि मैं हर साल यहां स्टॉल लगाता हूं लेकिन इतनी बड़ी संख्या में पुलिस बल कभी नहीं देखा। लोगों में थोड़ा डर है, जो पहले कभी देखने को नहीं मिला।
रेखा गायकवाड़ की आटा चक्की की दुकान बीते साल हुई हिंसा में बर्बाद हो गई थी। उनका कहना है कि पहले कभी गांवों को इतना विभाजित होते नहीं देखा जितना इस बार देखा गया। दो अन्य लोग प्रणे और बादरुक का कहना है कि इस साल किसी तरह की परेशानी की आशंका नहीं है। सोशल मीडिया पर भी तनाव उतना नहीं है क्योंकि सुरक्षा का पूरा ध्यान रखा जा रहा है।
रेखा का कहना है कि उनकी आटा चक्की के बर्बाद होने के कई महीनों बाद तक उन्हें घाटे का सामना करना पड़ा। दो बच्चों की मां रेखा कहती हैं कि उन्हें अपनी चक्की का काम कहीं और शुरू करना पड़ा। गांव में बाकी मकान मालिक भी अपने अनुसूचित जाति के किरायेदारों से घर खाली करवाने लगे।
गांव के लोगों ने रेखा की चक्की पर आना बंद कर दिया। दो वक्त की रोटी कमाना भी उनके लिए किसी संघर्ष से कम नहीं था। रेखा इस बार नए साल का जश्न अच्छे से मनाना चाहती हैं। उन्होंने अपनी चक्की के बाहर बाबा साहेब अंबेडकर की तस्वीरें लगाई हैं। ये कहानी सिर्फ रेखा की ही नहीं है बल्कि और भी कई लोगों की है।
पुलिस ने कबीर कला मंच, समता कला मंच के कलाकारों और अनुसूचित समुदाय के कार्यकर्ताओं को 1 जनवरी को भीमा कोरेगांव न आने के निर्देश दिए हैं। यहां करीब 5 हजार पुलिकर्मी तैनात हैं।
पुलिस की कई गाड़ियां मौजूद हैं और ड्रोन कैमरा से पूरा निरीक्षण किया जा रहा है। पुलिस का मानना है कि 4-5 लाख लोग मंगलवार को यहां आएंगे। पहले ही 1200 से ज्यादा लोगों के खिलाफ प्रिवेन्टिव एक्शन लिए जा चुके हैं। लोगों की सुरक्षा के लिए पुख्ता इंतजाम किए गए हैं।
साभार- ‘अमर उजाला’