ऊर्दू का एक अज़ीम शायर जो कह रहा है कि वो ज़िंदा है लेकिन सरकारी दस्तावेज़ों में उसे मार दिया गया है । हम बात कर रहे हैं 80 साल के मशहूर शायर असरार जमयी की । जिन्हें दक्षिण दिल्ली के समाज कल्याण विभाग ने 2013 में ही मृतघोषित कर दिया।
दस्तावेज़ों में जैसे ही असरार जमयी की मौत हुई उसी वक़्त से उन्हें 1500 रुपये की मासिक पेंशन मिलनी भी बंद हो गई । जमयी तब से लगातार अपने ज़िंदा रहने की लड़ाई लड़ रहे हैं। किराए के एक कमरे में रहने वाले असरार जमई अकेले हैं और उनका परिवार किताबें हैं ।
2013 के बाद से जमयी लगातार शीला दीक्षित से लेकर अरविंद केजरीवाल की सरकारों से मदद मांग चुके हैं लेकिन वो अब तक खाली हाथ हैं और कागज़ों में अब भी मरे हुए हैं । जब वह पहली बार समाज कल्याण विभाग के पास वह यह साबित करने के लिए गए कि वह वृद्धावस्था पेंशन के लिए योग्य है तो अधिकारी उनसे झगड़ने लगे।
न्यूज़ वेबसाइट स्क्रॉल की रिपोर्ट के अनुसार जमई कहते हैं कि “मैंने उनसे कहा, ‘मैं तुम्हारे सामने खड़ा हूँ, इससे बड़ा सबूत आपको और क्या चाहिए (मैं जीवित हूं)? इस पर अधिकारी ने जवाब दिया कि वह जानता है कि मैं जीवित हूँ। लेकिन उनकी कोई मदद नहीं कर सकता क्योंकि सरकारी रिकॉर्ड में मैं मर चुके हूं।”
जमई ने अपना पूरा जीवन उर्दू को समर्पित कर दिया, वह अपनी चार किताबें कविताओं पर प्रकाशित कर चुके हैं जबकि एक किताब भारतीय इतिहास भी लिख चुके हैं। वह इससे पहले एक मनोरंजक उर्दू पाक्षिक पत्रिका भी प्रकाशित करते थे।

हाल ही में उन्हें दिल्ली में मुशायरे के लिए आमंत्रित किया गया था लेकिन अब कोई उन्हें निमंत्रण नहीं देता। असरार जमयी एक वक्त में मुशायरों की जान हुआ करते थे लेकिन मुशायरा समितियों को लगता है कि अब जमयी बुज़ुर्ग हो चुके हैं और सफ़र करने में उन्हें मुश्किल आएगी ।
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यह दुर्भाग्यपूर्ण है कि उर्दू भाषा के बड़े मंच जैसे उर्दू अकादमी, ग़ालिब अकादमी और उर्दू के सबसे ज्यादा सर्कुलेशन होने वाले अख़बार इंक़लाब, राष्ट्रीय सहारा हमारा समाज हिंदुस्तान एक्सप्रेस, जुंग दिल्ली, मेरा वतन सभी दिल्ली से छपते हैं और जामयी की दुर्दशा के बारे में जानते हैं लेकिन उन्होंने अभी तक उनकी कोई मदद नहीं की।
असरार जमयी को देश के पहले राष्ट्रपति डॉ. राजेंद्र प्रसाद से पुरस्कार मिल चुका है। एपीजे अब्दुल कलाम, राजीव गांधी, करुपुरी ठाकुर (जो 1970 से 1971 के बीच बिहार के मुख्यमंत्री थे) और लालू प्रसाद यादव कैसे कई बड़े लोग उन्हें अनेकों सरकारी और निजी अवसरों पर उनकी व्यंगात्मक कविता सुनने के लिए आमंत्रित कर चुके हैं। जमयी अब अपनी शेरवानी की तरफ इशारा करते हुए कहते हैं कि वह एक वक़्त दुबई, कुवैत और यूरोप की यात्रा करते थे।
जमयी का जन्म पटना में 1937 में हुआ था। उनके पिता सईद वली-उल-हक एक जमीनदार थे, जो खिलाफत आंदोलन का हिस्सा थे और मोहनदास करमचंद गांधी और मौलाना मोहम्मद अली जौहर के साथी थे। जमयी ने दिल्ली के जामिया मिलिया इस्लामिया में उर्दू विद्वान और भारत के राष्ट्रपति डॉ. जाकिर हुसैन के अंडर में पढ़ाई अध्ययन किया।
जमयी की प्रतिभा से प्रभावित होकर जाकिर हुसैन ने पिलानी के बिरला इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी से साइंस में इंजीनियरिंग का अध्ययन करने के लिए कहा। जबकि जमाई में तो कविताओं के लिए जूनून था। जमयी जब कॉलेज में थे जब उन्हें अपने पिता की मौत की खबर मिली और पटना वापस लौट आये। पटना में वह मेडिकल और इंजीनियरिंग में प्रवेश परीक्षा के लिए युवाओं को ट्यूशन पढ़ाने लगे। मां की मृत्यु के बाद वह फिर दिल्ली लौट आये।
जमयी ने शादी नहीं की और वो तमाम उम्र शायरी को अपनी माशूक़ा मानते रहे । जमयी अपनी कविताओं के लिए पद्म श्री या उर्दू अकादमी पुरस्कार जैसे सम्मानों के हकदार थे लेकिन हर बार वह उन अभ्यर्थियों से हार गए जो पुरस्कारों के लिए लॉबिंग में बेहतर थे। पिछली सर्दी मैं वह बीमार हो गए और उन्होंने ठंड में अपने घर से बाहरनिकलना बंद कर दिया। पेंशन अधिकारियों की तरह उनके कई पड़ोसी और दोस्त भी यह मान बैठे कि शायद उनकी मृत्यु हो गई थी।