VIDEO-जाने क्या है भीमा कोरेगांव की असली कहानी

महाराष्ट्र में दलितों और मराठा समुदाय के बीच हुई हिंसक झड़प की आग पूरे महाराष्ट्र में फैल गई. आज दलित संगठनों ने महाराष्ट्र बंद का ऐलान किया है.

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इस विवाद के बीच आपको बतारहे है भीमा कोरेगांव की 200 साल पुरानी वो असली कहानी, जब 800 महारों ने 28 हज़ार मराठों को हराया था.

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

बात 1818 की है. तब पेशवा बाजीराव द्वितीय की अगुवाई में 28 हज़ार मराठा ब्रिटिश पर हमला करने पुणे जा रहे थे. तभी रास्ते में उन्हें 800 सैनिकों की फ़ोर्स मिली, जो पुणे में ब्रिटिश सैनिकों का साथ देने वाले थे. पेशवा ने 2000 सैनिक भेज कर इन पर हमला करवा दिया.

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कप्तान फ्रांसिस स्टॉन्टन की अगुवाई वाली ईस्ट इंडिया कंपनी की यह टुकड़ी 12 घंटे तक लड़ती रही. उन्होंने मराठाओं को कामयाब नहीं होने दिया.

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बाद में मराठोंने कदम पीछे खींचे. जिस टुकड़ी से मराठा सैनिक भिड़े थे, उनमें ज्यादातर फौजी महार दलित समुदाय के थे. वे बॉम्बे नेटिव इनफ़ैंट्री से ताल्लुक रखते थे.

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

इस लड़ाई का जिक्र जेम्स ग्रांट डफ़ की किताब ‘ए हिस्टरी ऑफ़ द मराठाज़’ में भी मिलता है. जिसके अनुसार, भीमा नदी के किनारे हुए इस युद्ध में महार समुदाय के सैनिकों ने 28 हज़ार मराठों को रोके रखा.

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ब्रिटिश अनुमानों के मुताबिक, इस लड़ाई में पेशवा के 500-600 सैनिक मारे गए थे. बता दें कि भारत सरकार ने महार रेजिमेंट पर 1981 में स्टाम्प भी जारी किया था.

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

हालांकि, इस लड़ाई को लेकर दलित और मराठा समुदाय में लोगों के अलग-अलग तर्क हैं. कुछ जानकार मानते हैं कि महारों के लिए ये अंग्रेजों की नहीं बल्कि अपनी अस्मिता की लड़ाई थी. क्योंकि पेशवा शासक महारों से ‘अस्पृश्य’ व्यवहार करते थे. कुछ इतिहासकार बताते हैं कि दलितों की इतनी बुरी दशा थी कि नगर में प्रवेश करते वक़्त महारों को अपनी कमर में एक झाड़ू बांधकर चलना होता था ताकि उनके पैरों के निशान झाड़ू से मिटते चले जाएं. (फोटो: दलित शोषण पर बनी एक फिल्म का विजुअल.)

यही नहीं, उस वक्त दलितों के गले में एक बरतन भी लटकाया जाता था ताकि वो उसमें थूक सकें और उनके थूक से कोई सवर्ण ‘अपवित्र’ न हो जाए. कुएं और पोखर के पानी निकालने को लेकर भी उनसे भेदभाव होता था.

वहीं कुछ इतिहासकारों की इस लड़ाई को लेकर अलग राय है. उनका मानना है कि महारों ने मराठों को नहीं बल्कि ब्राह्मणों को हराया था. ब्राह्मणों ने छुआछूत दलितों पर थोप दिया था इससे वो नाराज़ थे. जब महारों ने आवाज उठाई तो ब्राह्मण नाराज हो गए. इसी वजह से महार ब्रिटिश फ़ौज से मिल गए. (फोटो: जयस्तंभ को अंग्रेजों ने उन सैनिकों की याद में बनवाया था, जिन्होंने इस लड़ाई में अपनी जान गंवाई थी. 1927 में डॉ. भीमराव अंबेडकर इस मेमोरियल पर पहुंचे थे.)

इतिहास पर नजर डाली जाए तो महारों और मराठों के बीच पहले कभी मतभेद नहीं हुए. मराठों का नाम इसमें इसलिए लाया जाता है क्योंकि ब्राह्मणों ने मराठों से पेशवाई छीनी थी. जिससे मराठा नाराज थे. अगर ब्राह्मण छुआछूत ख़त्म कर देते तो शायद ये लड़ाई नहीं होती.

साभार- आजतक डॉट कॉम