मुंबई। मुंबई उच्च न्यायालय ने पुणे जिले के भीमा-कोरेगांव में 1 जनवरी को हुई हिंसा में मुख्य आरोपी मिलिंद एकबोटे को अंतरिम राहत देने से इनकार कर दिया। न्यायाधीश एस.सी. धर्माधिकारी और भारतीय डांगरे की पीठ ने एकबोटे के इस तर्क को खारिज कर दिया कि पुणे की एक सत्र अदालत ने पिछले महीने अंतरिम जमानत खारिज कर भूल की थी।
पीठ ने कहा कि हिंदूवादी नेता की याचिका खारिज करते हुए पुणे की अदालत ने जो टिप्पणी की है, उसकी अनदेखी नहीं की जा सकती। समस्त हिंदू अगाडी ट्रस्ट के प्रमुख एकबोटे पर पुणे की पुलिस ने तीन अलग-अलग मामलों में एफआईआई दर्ज की है। उस पर हिंसा भड़काने और अनुसूचित जाति एवं अनुसूचित जनजाति (अत्याचार निवारण) अधिनियम की धाराओं के तहत मामला दर्ज किया गया है। पुणे की अदालत द्वारा राहत देने से इनकार करने के बाद उसने उच्च न्यायालय का दरवाजा खटखटाया था।
एकबोटे ने कहा कि वहां 1 जनवरी की हिंसा से 10 दिन पहले से स्थिति तनावपूर्ण थी जब पूरे महाराष्ट्र के कई लाख दलित पेशवाओं की सेना पर ब्रिटिश ईस्ट कंपनी की सेना की जीत की 200 वीं वर्षगांठ मनाने के लिए इकट्ठे हुए थे। पुणे के पूर्व भाजपा नगर निगम सदस्य ने इसे खुफिया विफलता बताया था।
यह उल्लेख किया जा सकता है कि मिलिंद एकबोटे और संभाजी भिडे दो व्यक्ति हैं, जिन्होंने हिंसा में शामिल होने के लिए कोरेगांव भीमा में भीड़ को उकसाया और उन पर भीड़ को उकसाने का आरोप लगाया है। उल्लेखनीय है कि भिड़े की आभा ऐसी है कि प्रधानमंत्री मोदी भी उनसे प्रेरणा लेते हैं।
अक्टूबर 2014 में लोकसभा चुनाव के दौरान जब प्रधानमंत्री मोदी ने सांगली की यात्रा की थी, तब वह विशेष रूप से संभाजी भिडे से मिले थे। मोदी ने कहा था कि वे भक्त गुरुजी का आशीर्वाद लेने आए हैं जो उनके जीवन के शुरुआती दिनों में प्रेरणा थे।
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