अदब के मंच पर इन्सान से इन्सान मिलता है
यहाँ पर राम मिलता है यहाँ रहमान मिलता है
यहाँ न कोई हिन्दू है, न मुस्लिम, न सिख इसाई
यही वह मंच है कि जहाँ हिंदुस्तान मिलता है
कहीं भी जंग हो, दहशत हो, या फिर बम धमाके हों
जिसे देखो वह बस इस्लाम पे तोह्ममत लगाता है
वह मजहब खूँ बहाने की इजाजत दे नहीं सकता
वजू के वास्ते भी पानी जो कम बहाता है
क़ातिल ही अगर कारवां का चीफ हो गया
हैरत नहीं जो काफ़िया रदीफ़ हो गया
कि हैरत है मुझे सियासत से जोड़ रहे हो
इंसानियत से रब्त मेरा तोड़ रहे हो
मैं लैला ए अदब हूँ फिर आप किस लिए
मजनू ए शरारत से मुझे जोड़ रहे हो
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