VIDEO: शाबान के महीने में रोज़े रखने की फज़ीलत

शाबान का महीना एक बरकत वाला महीना है, “शाबान” अरबी शब्द से बना है जिसका अर्थ फैलने का है, और जैसा कि इस महीने में रमज़ानुल मुबारक के लिए खूब भलाई फैलती है, इसी वजह से इस महीने का नाम “शाबान” रखा गया.

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नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम इस महीने के अक्सर हिस्से में रोज़ा रखा करते थे, हज़रत आयशा सिद्दीका (रज़ि) फरमाती हैं, “मैंने कभी नहीं देखा कि नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने पूरे एहतमाम के साथ रमज़ान के अलावा किसी दुसरे महीने के पूरे रोज़े रखे हों और मैंने नहीं देखा कि नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने किसी दुसरे महीने में शाबान से ज़्यादा नफल रोज़े रखते हों. (सही बुखारी 1/264, सही मुस्लिम 1/365)

एक दुसरे हदीस में फरमाती हैं कि “पैगंबर सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम को सभी महीनों से अधिक यह बात पसंद थी कि शाबान के रोज़े रखते रखते रमजान से मिला दें”।

इसी तरह हज़रत उम्मे सलमा रज़ियल्लाहु अन्हा फ़रमाती हैं: “मैं अल्लाह के पैगंबर सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम को शाबान और रमज़ान के अलावा लगातार दो महीने रोज़े रखते हुए कभी नहीं देखा। (तिर्मिज़ी शरीफ़ 1/155) यानी नबी करीम सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम रमज़ान के पूरे महीने के साथ शाबान में भी लगभग पूरे महीने उपवास रखते थे और बहुत कम दिन नहीं रखते थे।

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