समायोजन रद्द करने होने का एक साल पूरा होने पर शिक्षामित्रों ने उत्तर प्रदेश की राजधानी लखनऊ में काला दिवस मनाया। लखनऊ में प्रदर्शन कर रहे शिक्षामित्रों ने मुंडन करा कर विरोध किया। मुंडन कराने वालों में पुरूषों के साथ महिलाएं भी शामिल थीं।
उत्तर प्रदेश के शिक्षामित्र समायोजन रद्द होने की बरसी पर काला दिवस मना रहे हैं। सुप्रीम कोर्ट ने 1 साल पहले उनका समायोजन रद्द कर दिया था। सरकार से स्थाई नौकरी की मांग को लेकर शिक्षामित्रों ने अपना सिर मुंडवा कर प्रदर्शन किया। पुरुष शिक्षामित्रों के साथ ही कई महिलाओं ने भी अपने सिर के बाल मुंडवा दिए।
शिक्षामित्रों की मांग है कि उन्हें स्थाई नौकरी देकर पैरा टीचर बनाया जाए। इसके साथ ही टीईटी ऊत्तीर्ण शिक्षामित्रों को बिना परीक्षा के ही नियुक्ति दी जाए।
Lucknow: Shiksha Mitras(contractual teachers) demand permanent jobs, get their heads tonsured in protest pic.twitter.com/sshMoGarSs
— ANI UP (@ANINewsUP) July 25, 2018
लखनऊ के ईको गार्डन में भारी संख्या में अलग अलग जिलों से पहुंचे शिक्षामित्र विरोध प्रदर्शन के अलग-अलग तरीके अपना रहे हैं। शिक्षामित्रों की मांग है कि सरकार नया अध्यादेश लाकर उन्हें समायोजित करे ताकि शिक्षा मित्रों को पूरा वेतन मिल सके।
समायोजन रद्द होने के बाद शिक्षामित्रों को प्रतिमाह मिल रही 38,848 रुपए की तनख्वाह घटकर 3500 रुपए प्रतिमाह हो गई है।शिक्षामित्रों की मांग है कि असमायोजित शिक्षामित्रों के लिए सरकार कोई समाधान निकाले। शिक्षामित्र मानदेय बढ़ाने की मांग कर रहे हैं और नई ट्रान्सफर नीति का भी विरोध कर रहे हैं।
23 अगस्त 2010 को मनमोहन सिंह सरकार में राष्ट्रीय अध्यापक शिक्षा परिषद (एनसीटीई) लागू हुआ था जिसके बाद टीचर एलिजिबिलिटी टेस्ट (टीईटी) पास करने के बाद ही कोई शिक्षामित्र पूर्ण रूप से शिक्षक बन सकता है।
एनसीटीई के नियमानुसार, कोर्ट ने टीईटी पास किए बिना शिक्षामित्रों को शिक्षक मानने से इंकार कर दिया था। शिक्षामित्रों की मांग है कि मोदी सरकार एनसीटीई में संशोधन कर शिक्षामित्रों की राह आसान करें।प्रदेश में शिक्षामित्रों की नियुक्ति की शुरूआत साल 2001 में हुई।
साल 2001 से लेकर साल 2008 तक प्रदेश में 1.71 लाख शिक्षामित्रों की बहाली की गई। इस दौरान शिक्षामित्रों की मिलने वाली तनख्वाह 1800 रुपए प्रतिमाह से बढ़कर 3500 रुपए प्रतिमाह हो गई।राज्य में जब अखिलेश सरकार आई तो शिक्षामित्रों को समायोजित कर सहायक अध्यापक बना दिया गया।
साल 2012 में तत्कालीन सीएम ने पहले चरण में 58 हजार और दूसरे चरण में 90 हजार शिक्षामित्रों को समायोजित कर सहायक अध्यापक बना दिया। सरकार के इस फैसले से नाराज होकर टीईटी पास अभ्यर्थियों ने हाईकोर्ट का दरवाजा खटखटाया।टीईटी अभ्यर्थियों की याचिका पर सुनवाई करते हुए इलाहाबाद हाईकोर्ट ने शिक्षामित्रों का समायोजन रद्द कर दिया।
हाइकोर्ट के फैसले के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी गई। लेकिन 25 जुलाई 2017 को सुप्रीम कोर्ट ने हाईकोर्ट के फैसले को सही ठहराया। कोर्ट ने इससे संबंधित सरकार के सभी प्रशासनिक आदेशों सहित बेसिक शिक्षा नियमावली में किए गए संशोधनों और उन्हें दिए गए दो वर्षीय दूरस्थ शिक्षा प्रशिक्षण को भी असंवैधानिक और अवैध करार दिया था।