चुनावी फिज़ाओं में ‘चौकीदार’ गूंज रहा है। कोई कह रहा है कि सब चौकीदार हैं, तो कोई चौकीदार को चोर बता रहा है। इस बीच वो भी हैं जो खुद को चौकीदार बताते हुए सोशल मीडिया पर अपनी आईडी अपडेट कर रहे हैं, लेकिन असल में चौकीदार कौन है? इसका जवाब मोहम्मद रफी ने आज से 45 साल पहले ही दे दिया था। उनका एक गाना है जो बताता है कि असली चौकीदार कौन है और कौन नहीं!
https://youtu.be/3m0LNy8Lt5s
मशहूर कॉमेडीयन राजीव निगम ने भी व्यंग के जरिए मैं भी चौकीदार पर रौशनी डाली है। मशहूर कॉमेडीयन ने बताया है कि मैं भी चौकीदार को दुनिया कैसे ले रही है। खासकर जब भारत में चुनाव जैसा महापर्व हो। उन्होंने हास्य काव्य के जरिए बताया कि पीएम मोदी जी को 2014 में ही बताना था कि मुझे चौकीदार बनना है!
Main bhi Chaukidaar
Support to modifying INDIA pic.twitter.com/8saPFfD6W2— Digvijay Pandey (@Digvijay9415352) March 16, 2019
बीते कुछ समय में शायद ही कोई रैली हो जिसमें राहुल गांधी ने पीएम नरेंद्र मोदी पर हमला करने के लिए ‘चौकीदार चोर है’ नारे का इस्तेमाल न किया हो। ये नारा अब उनके भाषणों का हिस्सा बन चुका है। वो जनता से आह्वान करते हैं और एक शब्द हवा में उछालते हैं- चौकीदार…जिसके बाद इंतजार होता है उसमें जनता के ‘…चोर है’ जोड़ने का।
राहुल गांधी ने एक नारे को सैकड़ों मंच से सैकड़ों बार दोहराकर भाजपा के खेमे में कुछ तो हलचल मचा ही दी। लेकिन भाजपा ने क्या किया। क्या वो घबरा गई? क्या उसकी बेचैनी उसके नेताओं के बयानों के जरिए बाहर आई।
नहीं। ऐसा नहीं हुआ। बल्कि, भाजपा ने इंतजार किया, ठोस रणनीति पर काम किया और एक अभियान जिस तरह गाजे-बाजे के साथ लॉन्च होता है, वो कर दिखाया।
यह 2014 के चाय वाला अभियान की तरह तो बिल्कुल नहीं होने वाला। वो क्यों, इस पर थोड़ी तफसील से बात आगे करेंगे।
लेकिन, मुद्दों के महासंग्राम को भटकाने में ये अभियान जरूर कारगर साबित हो सकता है। कहां किसान और बेरोजगारी के बड़े सवालों का जवाब दिया जाए। क्यों इस सवाल में उलझा जाए कि 2 करोड़ लोगों को हर साल रोजगार के वादे पर अमल नहीं हो पाया। क्यों नोटबंदी और जीएसटी के ‘मुर्दों’ को कब्र खोदकर बाहर निकलने का मौका दिया जाए।
इस लिहाज से देश भर में बड़े पैमाने पर, बड़ी मशीनरी के साथ ‘मैं भी चौकीदार’ अभियान के सहारे बाकी मुद्दों पर हावी होने की रणनीति ज्यादा सटीक, ज्यादा फायदेमंद मालूम होती है।