यह न थी हमारी किस्मत के विसाल यार होता,
अगर और जीते रहते यही इंतजार होता।
हजारों ख्वाहिशें ऐसी के हर ख्वाहिश पे दम निकले,
बहुत निकले मेरे अरमान फिर भी काम निकले।
कितना मुश्किल है ग़ालिब पर बात करने के लिए कोई ऐसा शेर का चयन करना जो अब तक न सुना गया हो, न कहा गया हो, न चुना गया हो।
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एक शताब्दी पहले इस दुनिया को अलविदा कह गये इस शायर के कलाम आज भी लोगों के ज़ेहन और उनकी ज़बान पर इस कदर चढ़े हुए हैं कि कुछ भी अनसुना और अनकहा सा नहीं लगता। फिर भी रंग मंच से लेकर सिनेमा और टेलीविजन तक उनकी जिंदगी के ताने-बाने को इतनी बार बुना गया है कि उनकी गैर मौजूदगी भी कहीं न कहीं उनके होने का एहसास कराती है।

https://youtu.be/mxDy55ZpROA

https://youtu.be/G4fyG5_uWlk
