नज़रिया: ‘कर्नाटक के बाद मोदी-शाह की जोड़ी अपराजेय नहीं रही’

लंबे समय बाद विपक्ष ने सत्ताधारी भाजपा को करारी शिकस्त दी है। बहुमत के बग़ैर भाजपा कर्नाटक में भी गोवा और मणिपुर की तर्ज पर किसी न किसी तरह अपनी सरकार बनाने का जुगाड़ कर रही थी। सरकार बनी पर तीसरे दिन ही उखड़ गई। भाजपा द्वारा तमाम हथकंडे अपनाए जाने के बाद भी सदन में बहुमत नहीं साबित कर सकी। राजभवन का चेहरा भी ख़राब हुआ। जबकि इससे पहले भी कई प्रदेशों में ऐसा कई-कई बार हो चुका है।

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बेंगलुरु में राज्यपाल ने जिस तरह 117 सदस्यों के समर्थन वाली कांग्रेस-जनता दल(एस) गठबंधन को नज़रंदाज कर 104 सदस्यों के समर्थन वाली भाजपा को सरकार बनाने और फिर बहुमत साबित करने का 15 दिनों का लंबा वक्त दिया, उसके पीछे की मंशा और भाजपा के शीर्ष नेतृत्व के जुगाड़-प्रोजेक्ट का बुरी तरह पर्दाफाश हुआ।

कर्नाटक के इस सियासी उलटफेर को पूरा देश देख रहा था। निस्संदेह, तीन-चार दिनों के घटनाक्रम और उसके नतीजे से विपक्ष के हौसले बुलंद होंगे। विपक्ष को एक बार फिर इस बात का एहसास हुआ कि देश की सत्ता-राजनीति का संचालन कर रही प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और भाजपा अध्यक्ष अमित शाह की जोड़ी सियासी तौर पर अपराजेय नहीं है।

इससे आगामी 2019 की चुनावी तैयारी में विपक्ष को मनोवैज्ञानिक फायदा होगा। उसका आत्मविश्वास बढ़ेगा! दिल्ली, बिहार और पंजाब के प्रांतीय चुनावों में विपक्षी दलों या उनके गठबंधनों ने मोदी-शाह की विजययात्रा को शानदार ढंग से रोका था। लेकिन असम, त्रिपुरा, गोवा और पूर्वोत्तर के कुछ अन्य राज्यों में भाजपा के सत्ता पर काबिज़ होने में कामयाब होने से विपक्षी खेमा एक बार फिर हताश दिखने लगा था। कर्नाटक के चुनावी नतीजे भी विपक्षी खेमे के लिए निराशाजनक रहे। कांग्रेसी मुख्यमंत्री सिद्धारमैया सत्ता में वापसी के लिए ज़रूरी बहुमत हासिल नहीं कर सके। यहां किसी दल को बहुमत नहीं मिला।

ऐसे में समय रहते हालात भांपकर कांग्रेस ने देर किए बग़ैर जनता दल(एस) की तरफ दोस्ती का हाथ बढ़ाया और पूर्व प्रधानमंत्री एच डी देवगौड़ा ने चुनाव प्रचार के दौरान की सियासी कटुता को भुलाते हुए कांग्रेस के बढ़े हाथों को झटका नहीं!

भ्रष्टाचार और अपराध के खात्मे के नारे के साथ 2014 में सरकार बनने वाली भाजपा ने धनबल, बाहुबल और राजभवन के ज़रिये दक्षिण के इस महत्वपूर्ण राज्य की सत्ता में काबिज़ होने की हरसंभव कोशिश की।
राजभवन और केंद्र के सियासी सूरमाओं ने बहुमत के लिए ज़रूरी संख्या होने के बावजूद कांग्रेस-जनता दल (एस) गठबंधन को सत्ता से वंचित करने की भरपूर कोशिश की। बेंगलुरु में बीएस येदियुरप्पा की अल्पमत सरकार बैठा दी गई।

पर धनबल-बाहुबल से लैस कांग्रेस-जनता दल(एस) के प्रांतीय नेताओं की मजबूत लामबंदी और कानून का दरवाज़ा खटखटाने की कांग्रेस के केंद्रीय नेतृत्व की रणनीति के आगे भाजपाई खेल ख़राब हो गया। 19 मई को कर्नाटक के सियासी नाटक को देश भर में लोग टीवी चैनलों के ज़रिये कुछ उसी तरह देख रहे थे, जैसे वे संसदीय आम चुनाव के नतीजे देखते हैं।

बहुमत हासिल करने में नाकाम येदियुरप्पा ने विधानसभा में जैसे ही अपने इस्तीफे का ऐलान किया, पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी, बिहार के विपक्षी नेता तेजस्वी यादव, यूपी के दो-दो पूर्व मुख्यमंत्रियों अखिलेश यादव और सुश्री मायावती और हाल तक भाजपा के सहयोगी रहे आंध्र के मुख्यमंत्री व तेलुगू देशम पार्टी के अध्यक्ष एन चंद्रबाबू नायडू सहित अनेक विपक्षी नेताओं ने कर्नाटक के घटनाक्रम को लोकतंत्र की जीत बताया।

(साभार-बीबीसी)