नजरिया: कठुआ, उन्नाव और हमारा समाज

हाल ही में होने वाले कठुआ और उन्नाव के घटना पर एक सामज के तौर पर हमें किस तरह के प्रक्रिया का इज़हार करना चाहिए? भारत दुनिया भर में बदनाम है कि यह एक ऐसा देश है जहाँ बच्चे और महिलाएं सुरक्षित नहीं हैं, और जो लोग इस सच्चाई के खिलाफ हैं वह कहते हैं कि दुनिया का नजरिया देश के प्रति ऐसा ही है।

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हमें अपने आप को एक बेहतर देश के तौर पर पेश करने के लिए किसी विदेशी मीडिया के सर्टिफिकेट की जरूरत नहीं है। इसके बजाय हमें अपना आंकलन करना चाहिए कि हम खुद को कैसे बदल सकते हैं। इस तरह की घटनाओं के क्या करणें हैं और हम ऐसे मामले को रोकने से क्यों वंचित हैं?

इस तरह की घटनाएँ पर रोक लगाने के लिए हमें क्या करना चाहिए? हमें यह स्वीकार करना चाहिए कि इन मामलों को सिर्फ कोर्ट और पुलिस नहीं रोक सकती और न ही सिर्फ उनका काम है। एक एसी जगह जहां महिलाएं और अल्पसंख्यक का सम्मान किया जाता है, वहां इस तरह की दरिंदगी के लिए कोइ जगह नहीं होती। क्या हम एक ऐसे देश में रहते हैं?

हम सभी लोगों को इस सवाल का जवाब पता है। सिर्फ यह कहकर सरकार का हिंसा के ऐसे मामलों पर रोक लगाने के लिए कुछ करना चाहिए, हम खुद की भूमिका को नजरअंदाज कर रहे हैं। सबसे पहले हमें यह समझने की जरूरत है कि सरकार क्या कर सकती है।