खामोश नहीं रह सकते हैं ‘शत्रु’, मोदी को दिया करारा जवाब

राजनीति बकबास नहीं है पर राजनीति में बकैती चलती रहती है. लगातर बोलते रहने से नेता जिन्दा भी बने रहते हैं. जो मौन हो गया वह मर गया. बिहार में ‘राजनीतिक-कलरव’ जारी है. इन कलरवों की असंख्य कथाएं पढी और सुनी जा रही हैं. ये बिहार के अबोध-वृक्ष के कलरव हैं. दरख़्त अलग-अलग और इनके साये भी अलग-अलग हैं. फिर एक ही दरख़्त पर चीं-चीं करते राजनीतिक-परिंदों के रोचक स्वर को सुनकर चौकिये मत. इस रोचकता में ही आप राजनीति की तलाश करें.

इसी कलरव को ही आज हम ‘ट्वीट’ कहते हैं. ट्वीट ट्वीस्ट हो रहे हैं.शत्रु, सुशील हो रहे हैं और सुशील शत्रु. भाजपा अपने शत्रु को ‘खामोश’ नहीं कर पा रही है. स्वभाव से सुशील नहीं दिखने वाले बिहार के मोदी ने अपने शत्रु को गद्दार तक कह दिया और इस गद्दार को पार्टी से निकालने तक की बात कह दी. शाट-गन ने निषेधात्मक राजनीति की बात को हार का कारण बताया. अपरोक्ष  रूप से शत्रु ने सुशील पर प्रहार कर सुशील की पोलिटिक्स बिगाड़ दी है. शत्रुघ्न सिन्हा, भाजपा के छोटे मियां क्या बड़े मियां को भी लताड़ते रहे हैं. इसी लताड़ के कारण बिहार के चुनाव में वे अपनी ही पार्टी के शत्रु बने रहे. स्थिति ऐसी हुई कि सिन्हा जी को स्टार प्रचारकों की सूची में भी शामिल नहीं किया गया था .

शत्रुघ्न सिन्हा के ट्वीट पर तेजस्वी ने भी प्रतिक्रिया व्यक्त की है .अपने ट्वीट में तेजस्वी ने कहा कि जो आपको ‘शत्रु’ कहता है वह ‘सुशील’
कैसे हुआ ? एनीथिंग बट खामोश : द बायोग्राफी ऑफ़ शत्रुघ्न सिन्हा की पुस्तक से शत्रुघ्न सिन्हा का किरदार बाहर निकलता रहता है.

शत्रुघ्न सिन्हा कभी भी दुराग्रही राजनीति के प्रतीक-पोलिटीसियन नहीं रहे. जहाँ कभी सकारात्मकता दिखी उनकी उन्होंने भूरी भूरी प्रशंसा की है . उनकी लालू नीतीश से मुलाकात भी होती रही है. लोग कयास लगाते रहें पर शत्रुघ्न सिन्हा अपना काम कर जाते हैं. शत्रु का बिहार केवल राजनीति का उपादान नहीं है. बिहार के लिए राजनीति और राजनीति के लिए बिहार के अंतर को शत्रु बखूबी समझते हैं. जिस बिहार की राजनीति से पूरा देश प्रभावित होता है उस बिहार की राजनीति में निषेध के लिए कोई जगह नहीं है.

सुशील मोदी स्वयं पार्टी की बेनामी-संपत्ति हो चुके थे . पार्टी स्वयं इन्हें हाशिये पर धकेलती रही है . मजबूरन इन्हें लालू-मैजिक का सहारा लेना पड़ा रहा है . इस सहारा कार्यक्रम में पार्टी कही नहीं है . कोई भी बिहार के भाजपा नेता कुछ बोल नहीं रहे हैं .पार्टी के प्रदेश अध्यक्ष भी नित्यानद राय भी अपनी दुनिया में मस्त है . नित्यानंद आज अपनी ‘राय’ देने की भी स्थिति में नहीं हैं. भाजपा के कई सांसद सुशील के प्रति कठोर रवैया अपनाए हुए हैं . और सुशील को ही पार्टी से निकालने की बात कर रहे हैं .

पटना विश्वविद्यालय में सुशील मोदी लालू के सचिव थे जब लालू अध्यक्ष हुआ करते थे . आज भी सुशील उसी सचिव की  भूमिका में नजर आते हैं. वे आज भी लालू को जिन्दा करने में लगे हैं. इस बीच में लालू को जितनी सहानुभूति मिल रही है इसमें मोदी की भूमिका को नकारा नहीं जा सकता है. यह लालू और मोदी की नूरा-कुश्ती भी हो सकती है. बाप बेटा पंच बैल का दाम दू टाका..भाजपा के पास लगता ही नहीं कि और कोई रचनात्मक कार्यक्रम है . ई मोदी तो बड़े मियां को भी ठेंगा दिखा रहे हैं. या यह भी हो सकता है कि केंद्र भी लालू के भूत के आधार पर अपना भविष्य तय कर रहे हों . क्योंकि लालू का निश्तेज होना मोदी के लिए भी ख़तरा है. यहां कोई चाय का चमत्कार नहीं है वल्कि लालू के दूध का चमत्कार है. लालू के दूध के बिना ना तो चाय बन सकती है ना ही बिक सकती है. शत्रुघ्न सिन्हा सुपर-स्टार रहे हैं .रंगों में जीए हैं. रुपहले परदे के बाद रुपहली-पोलिटिक्स को बदरंग नहीं करना चाहते है शत्रुघ्न सिन्हा. राजनीति में किसी को ”खामोश’ करना इतना आसान नहीं है. जबतक सवाल जिन्दा रहेंगें तबतक वे सुलगते ही रहेंगें चाहे वे भाजपा के ‘लाल’ हों या ‘कृष्ण’,शत्रुघ्न हो या यशवंत ….,

  • बाबा विजयेन्द्र