जब मस्जिद में इंसानियत देखकर गैर-मुस्लिम की नम हुई आँखें

आज ‘विजिट माय मस्जिद डे’ था. नेशनल लेवल पर यह दिन मनाया जाता है. हम आज सुबह न्यू पोर्ट गए. यह एक बेहद खूबसूरत जगह है.

वहां पर मुफ्त नाश्ता, विश्वास के ऊपर चर्चा और नमाज़ देखने के आमंत्रण प्रदर्शित थे. हमने प्रार्थना देखना छोड़कर बाकि सबकुछ किया, क्योंकि उसके लिए हमारे पास वक़्त नहीं बचा था. लेकिन सबसे अहम बात थी स्वागत, वहां पर बेहद खुलेपन, उदारता और प्रेम के साथ हमारा स्वागत किया गया.

हम अन्दर घुसे, हमारा स्वागत हुआ, कमरे के अंदर कुछ कदम चलते ही, हम दोनों को कुछ अहसास हुआ और सिर्फ तीन मिनट के अन्दर ही हमारी आँखों में आंसू थे. मेरी आँखों में अनियंत्रित आंसू थे – मैं बेहद शर्मिंदा था. मुझे एक भारी एहसास हो रहा था जो पहले कभी नहीं हुआ. मुझे हमारे एक जैसे होने का एहसास हुआ और उस बेवकूफी भरी दुश्मनी का भी जो हमने ‘उनके’ लिए पाली हुई है.

मुझे तीन मुस्लिम महिलाओं ने बेहद प्यार से गले लगाया. बाद इसके उन्होंने जॉनी से कहा कि वे माफ़ी चाहती हैं क्योंकि वे उसे गले नहीं लगा सकती. इस बात पर हम सभी खूब हँसे और मेरा रोना भी कुछ पलों के लिए रुक गया.

अपने इस सुखद अनुभव को सबके साथ बांटना चाहती थी. हर धर्म में आतंकवाद है लेकिन इस खूबसूरत जहाँ में ज्यादातर लोग खूबसूरत और अच्छे हैं. एक छोटे से समूह द्वारा फैलाए जाने वाले आतंक को सभी पर नहीं थोपा जा सकता. यह एक बेहद सुखद अनुभव था.

यह लेख जाकी मिल्स-विंडमिल ने ilmfeed.com पर लिखा है। जिसका सिआसत के लिए हिंदी अनुवाद किया गया है।