आखिर क्यों घबराये हुए हैं असम के 90 लाख मुसलमान, जानें पूरा मामला

30 जून को असम में नागरिकता के नेशनल रजिस्टर को अपडेट करने की लंबी प्रक्रिया पूरी हो चुकी है। सुप्रीम कोर्ट की निगरानी में चल रही ये प्रक्रिया असम के भारतीय नागरिकों के नाम ड्राफ़्ट रजिस्टर में प्रकाशित होने के साथ ही ख़त्म हो जाएगी। इसकी वजह से असम में रह रहे बंगाली बोलने वाले क़रीब 90 लाख मुसलमानों के बीच ज़बरदस्त घबराहट का माहौल है।

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नागरिकता के राष्ट्रीय रजिस्टर की प्रक्रिया का संयोजन कर रहे अधिकारी डॉक्टर प्रदीप हजेला के हवाले से ख़बर आई थी कि असम में रह रहे क़रीब 48 लाख लोग अपने भारतीय नागरिक होने का सबूत देने में नाकाम रहे हैं। हालांकि डॉक्टर हजेला ने इस बात का सख़्ती से खंडन किया और उनके हवाले से ये ख़बर देने वाले रिपोर्टर के ख़िलाफ़ केस दर्ज करने की चेतावनी भी दी। डॉक्टर प्रदीप हजेला ने कहा कि राज्य में अवैध रूप से रह रहे लोगों की संख्या महज़ 50 हज़ार के आस-पास है।

अब सवाल ये है कि उन लोगों का क्या होगा जिन्हें ‘विदेशी’ ठहराया जाएगा? चूंकि भारत और बांग्लादेश की सरकारों के बीच विदेशी बांग्लादेशी ठहराए गए लोगों को वापस भेजने का कोई समझौता नहीं है, तो उन लोगों का क्या होगा जो कई पीढ़ियों से भारत को अपना देश मानकर यहां रह रहे हैं? जबकि सरकार की तरफ़ से इस बात का कोई साफ़ जवाब नहीं आया है।

असम के मंत्री और भाजपा नेता हिमंता बिस्वा शर्मा ने दिसंबर में कहा था कि नागरिकता के नेशनल रजिस्टर को तैयार करने का मक़सद असम में अवैध रूप से रह रहे बांग्लादेशियों की शिनाख़्त करना है। इन्हें वापस बांग्लादेश भेजा जाएगा। हिमंता बिस्वा शर्मा ने आगे कहा कि ‘बंगाली बोलने वाले हिंदू’ असमिया लोगों के साथ ही रहेंगे। ये बयान भाजपा की विचारधारा से मिलता-जुलता है। बता दें कि केंद्र सरकार ने हर हिंदू को भारतीय होने का नैसर्गिक अधिकार देने का एक क़ानून भी पेश किया था। लेकिन असम के ज़्यादातर नागरिक ऐसी किसी भी रियायत के ख़िलाफ़ हैं।

(साभार- बीबीसी)