आखिर सरदार पटेल को इतना महत्व क्यों दे रही है भाजपा ?

राजनितिक रवैये और रुझान के सच्चाई को न सिर्फ यह कि मिटाते हैं बल्कि अतीत को उस मकसद के तहत तोड़ मरोड़ कर पेश करते हैं कि राजनितिक हित हासिल हो सकें।

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इस कार्य में वह किसी भी हद तक पहुंच सकते हैं, जबकि झूठ बोल सकते हैं और उनकी गलत बयानी भी कर सकते हैं। होना यह चाहिए था कि सच्चाई को पवित्र समझा जाता और अभिव्यक्ति की आज़ादी को सुनिश्चित बनाया जाता लेकिन मोदी के समर्थकों में बहुमत ऐसे लोगों की है ‘जो मोहब्बत और जंग में हर चीज़ जायज़ है’ के समर्थक हैं।

अपनी मर्जी और पसंद न पसंद को तरजीह देने और अपने राजनितिक एजेंडे को अमल में लाने के लिए कोई भी हद पार कर सकते हैं। अब यही देखिये कि सरदार पटेल की प्रशंसा के लिए वह इस हद तक जा रहे हैं कि नेहरु का सम्मान और अहमियत को प्रभावित करने की कोशिश कर रहे हैं। इस तरह सरदार पटेल और नेहरु के बीच खाड़ी पैदा की जा रही है।

प्रधानमंत्री मोदी के विचार में इसके दो फायदे होंगे। पहला: चूँकि “मोदी परिवार” आज़ादी संघर्ष का हिस्सा नहीं था इस लिए उसे एक ऐसे आइकोन की ज़रूरत है जो आज़ादी सघर्ष रहा हो। दूसरा: इस मकसद को पूरा करने के लिए उन्होंने सरदार पटेल का चुनाव किया और कोशिश कर रहे हैं कि उन्हें एक कद्दावर नेता के तौर पर पेश करें, जबकि सच्चाई यह है कि खुद सरदार पटेल जानते थे कि मोदी के विचारधारी प्रतिनिधित्वों (हिन्दू महासभा और आरएसएस) के बीच उनका क्या रोल था और महात्मा गाँधी की हत्या में उन सरपरस्तों ने क्या रोल निभाया था।