आखिर क्यों हिंदुत्ववादियों के निशाने पर हैं नेहरू?

आज जवाहरलाल नेहरू की जयंती है। आजकल ये फैशन चल पड़ा है कि मौका मिलते ही जवाहर लाल नेहरू की बुराई की जाए। इस काम में बीजेपी समेत संघ परिवार विशेष तौर पर सबसे आगे रहता है। बल्कि, आजकल जवाहर लाल के खिलाफ तरह-तरह के बेहद घटिया वीडियो सोशल मीडिया पर चल रहे हैं। उनका उद्देश्य जवाहर लाल समेत पूरे गांधी-नेहरू परिवार की साख को बिगाड़ना है। सवाल उठता है कि आखिर ऐसा क्यों है।

सीधे और सरल शब्दों में इसका जवाब यह है कि संघ से बड़ा नेहरू दुश्मन कौन है! क्योंकि जवाहर लाल नेहरू और संघ वैचारिक रूप से एक-दूसरे के विरोधी ही नहीं बल्कि एक दूसरे के दुश्मन थे। 1947 में जब देश आजाद हुआ उस वक्त भारतीय उपमहाद्वीप का बंटवारा हो चुका था। उसके के बाद, भारत सांप्रदायिक हिंसा की ऐसी लपेट में था लाखों हिंदू और सिक्ख पलायन कर पाकिस्तान से इधर आ रहे थे और हिंदू नफरतों का शिकार लाखों मुसलमान पनाह की तलाश में पाकिस्तान जा रहे थे।

यानी एक हिंदू राष्ट्र की स्थापना का सबसे अच्छा मौका अगर कोई था तो वह 1 9 47 था। लेकिन इस सपने को हकीकत में बदलने से अगर किसी एक शख्स ने रोका तो उसका नाम था जवाहर लाल नेहरू। वैसे तो सांप्रदायिक जुनून के खिलाफ गांधीजी और जवाहर लाल दोनों ही खड़े थे लेकिन गांधी जी को पाकिस्तान बनने के साल भर के अंदर कत्ल कर दिया गया। अब नेहरू अकेले बचे थे

उन परिस्थितियों में यह नेहरू का ही कमाल था कि उन्होंने इस देश को एक धर्मनिरपेक्ष देश की नींव दी और इस देश के अल्पसंख्यकों को न सिर्फ बराबरी के अधिकार दिए, बल्कि बतौर अल्पसंख्यक उनको कुछ आंशिक अधिकार भी दिलवाए। यह बात भला संघ और बीजेपी से ज्यादा और किसे बुरी लग सकती है और नागवार गुजर सकती है। इसीलिए तो जब से मोदी सरकार सत्ता में आई है तब से खुलकर जवाहर लाल नेहरू और उनके पूरे परिवार को जिस कदर निशाना बनाया जा रहा है वैसा पहले कभी नहीं हुआ।