‘केदारनाथ’ फिल्म को लेकर विवाद क्यों?

उत्तराखंड हाईकोर्ट की ओर से बॉलीवुड फ़िल्म ‘केदारनाथ’ पर प्रतिबंध लगाने के लिए दायर की गई याचिका को खारिज़ कर दिए जाने के बावजूद भी ‘क़ानून व्यवस्था बिगड़ने की आशंका’ के चलते यह फ़िल्म उत्तराखंड के सिनेमाघरों में प्रदर्शित नहीं की गई.

गुरुवार को, याचिका खारिज़ करते हुए हाईकोर्ट ने टिप्पणी की थी, “अगर आपको पसंद नहीं तो मूवी मत देखें. हम कोई सेंसर बोर्ड नहीं हैं. हम एक लोकतंत्र हैं और हर कोई अपने अधिकारों का इस्तेमाल करने ले लिए आज़ाद है.”

लेकिन प्रदेशभर के सिनेमाघरों को संबंधित क्षेत्र के ज़िलाधिकारियों की ओर से आए आदेशों के बाद फ़िल्म का प्रदर्शन रोकना पड़ा. इन आदेशों में कहा गया है कि यह कदम एतिहातन उठाया गया है, क्योंकि ‘कई संगठन/ और स्थानीय लोगों’ को फ़िल्म की पटकथा और कई दृश्यों से एतराज़ है और ‘वे फ़िल्म पर रोक लगाने के लिए प्रबल विरोध कर सकते हैं.’

आदेश में फ़िल्म के प्रदर्शन पर रोक की वजह बताते हुए कहा गया है, “इन परिस्थितियों में फ़िल्म का प्रदर्शन होने पर जनपद में शांति एवं क़ानून व्यवस्था भंग होने की संभावना से इनकार नहीं क्या जा सकता.”

इससे पहले, उत्तराखंड सरकार ने इस फ़िल्म की समीक्षा के लिए, पर्यटन मंत्री सतपाल महाराज के नेतृत्व में एक चार सदस्यीय कमेटी बनाई थी. इस कमेटी ने गुरुवार की शाम मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत से मुलाक़ात की. उसके बाद ज़िलाधिकारियों को कानून व्यवस्था के रिव्यू का आदेश देते हुए फ़िल्म पर प्रतिबंध लगा दिया गया.

पर्यटन मंत्री सतपाल महाराज ने पत्रकारों से बात करते हुए कहा, “हमने अपने सुझाव में कहा कि वैसे तो कला को अभिव्यक्ति मिलनी चाहिए लेकिन उसके साथ-साथ हमें यह भी देखना है कि हमारे ज़िलों में कहीं (इससे) क़ानून व्यवस्था ख़राब तो नहीं होती है.”

महाराज ने आगे बताया, “माननीय मुख्यमंत्री जी ने लॉ एंड ऑर्डर की स्थिति को ध्यान में रखते हुए निर्णय लिया और सभी ज़िलाधिकारियों को कहा है कि वे लॉ एंड ऑर्डर की स्थिति को रिव्यू करें.”

पत्रकार वार्ता के दौरान सतपाल महाराज ने तल्ख़ लहजे में कहा, “हम बहुत सख़्त क़ानून बनाएंगे और हम चाहेंगे कि भविष्य में हमारे धार्मिक स्थलों के साथ कोई छेड़छाड़ ना हो.”

2013 की केदारनाथ आपदा की पृष्ठभूमि में एक मुसलमान और हिन्दू लड़की के प्रेम पर आधारित इस फ़िल्म पर कुछ दक्षिणपंथी संगठनों ने आरोप लगाया है कि यह फ़िल्म कथित ‘लव जिहाद’ को बढ़ावा देती है.

उधर दूसरी ओर उत्तराखंड में थियेटर और फ़िल्म से जुड़े संगठनों ने फिल्मों पर इस तरह से प्रतिबंध को अभिव्यक्ति की आज़ादी की अनदेखी बताया है. नैनीताल की थियेटर संस्था युगमंच के निर्देशक ज़हूर आलम कहते हैं, “यह बड़ी चिंता की बात है कि जब फिल्मों के लिए एक आधिकारिक सेंसर बोर्ड बनाया गया है तो उसके बाद भी राजनीति से प्रेरित भीड़ के दबाव में फ़िल्मों पर प्रतिबंध लगा दिया जाता है.”

इधर पहले से ही टिकट बुकिंग करा चुके कई सिनेमा प्रेमियों को मायूस होकर वापस लौटना पड़ा. रुद्रपुर के एक सिनेमाहॉल के बाहर अपने दोस्त के साथ फ़िल्म देखने आई अंकिता पाठक कहती हैं, “हमने कल ही ऑनलाइन टिकट बुक करा लिए थे लेकिन यहां आ कर पता चला कि फ़िल्म पर बैन लग गया है. अब पता नहीं हम कब ये फ़िल्म देखेंगे.”