दुसरे धर्म के व्यक्ति से शादी करने पर नहीं बदलती पत्नी का धर्म: सुप्रीम कोर्ट

नई दिल्ली: गुरुवार को सुप्रीम कोर्ट ने बॉम्बे हाई कोर्ट के उस आदेश पर असहमति जताई जिसमे बॉम्बे हाई कोर्ट ने आदेश दिया था कि शादी के बाद महिला का धर्म वही होता है, जो उसके पति का धर्म है।

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सुप्रीम कोर्ट ने वलसाद पारसी ट्रस्ट को अपने फैसले पर एक बार पुनः विचार करने के लिए कहा है, जिसने टावर ऑफ़ साइलेंस में एक महिला के घुसने और अपने माता-पिता का अंतिम संस्कार करने पर सिर्फ इसलिए पाबंदी लगाई है, क्योंकि महिला ने अलग समुदाय में शादी की है।

बेंच ने गुलरोख के वकील इंदिरा जयसिंह की दलीलों की प्रशंसा करते हुए कहा कि शादी का मतलब यह नहीं कि पत्नी पति के पास गिरवी है। शुरुआती तौर पर बेंच इस विलय सिद्धांत को स्वीकार नहीं करती।
उच्चतम न्यायलय ने बॉम्बे हाई कोर्ट की इस फैसले से असहमति जताते हुए कहा कि ऐसा कोई कानून नहीं जो समुदाय से बाहर शादी करने वाली महिला को टावर ऑफ़ साइलेंस में घुसने से रोक सके। संयोग से, सुप्रीम कोर्ट में ऑन रिकॉर्ड गुलरोख की वकील उनकी बहन शिराज कॉन्ट्रैक्टर पटोदिया हैं।

बता दें कि जस्टिस दीपक मिश्रा, जस्टिस ए एम खानविलकर, जस्टिस अशोक भूषण जस्टिस डी वाई चंद्रचूड़ और जस्टिस एके सिकरी, की बेंच ने इसे साफ तौर पर मनमाना रवैया बताते हुए कहा कि एक पारसी पुरुष जिसने समुदाय के बाहर विवाह किया, उसे टावर ऑफ़ साइलेंस में जाने की इजाजत है, लेकिन एक महिला को नहीं। जिसके बाद पारसी ट्रस्ट ने गुलरोख एम गुप्ता नाम की महिला को टावर ऑफ़ साइलेंस में आने से रोक दिया था।

उल्लेखनीय है कि अपने माता-पिता का अंतिम संस्कार करने के लिए जब गुलरोख पर प्रतिबंध लगाया गया तो उन्होंने इसके लिए हाई कोर्ट में गई। लेकिन हाई कोर्ट ने भी ट्रस्ट के ही हक में फैसला सुना दिया, जिसके बाद गुलरोख को शीर्ष अदालत का रुख करना पड़ा।