दाऊदी बोहरा समुदाय की महिलाओं ने सुप्रीम कोर्ट में खतना का समर्थन किया, धार्मिक आजादी बताया

एक और जहां दाऊदी बोहरा समुदाय की महिलाएं खफ्ज की परंपरा के खिलाफ आवाज बुलंद कर रही हैं, उन्हीं के बीच का एक तबका सुप्रीम कोर्ट के पास इस प्रथा की वकालत के लिए पहुंचा है। इन महिलाओं का कहना है कि उनकी प्रथा में खफ्ज (सर्कमसिजन) किया जाता है, न कि जेनिटल म्यूटिलेशन। उन्होंने इसे धार्मिक स्वतंत्रता का मुद्दा बताया है।

दाऊदी बोहरा विमिन्स असोसिएशन फॉर रिलिजस फ्रीडम नाम का समूह लगभग 69000 बोहरा महिलाओं का समर्थन प्राप्त होने की बात कहता है। इस समूह ने सुप्रीम कोर्ट में इस प्रथा के खिलाफ दाखिल एक याचिका में खुद को पार्टी बनाने की अपील की है।

समूह का कहना है कि खफ्ज उनके समुदाय की धार्मिक प्रथा है जिसके ‘सफाई और शुद्धता के लिए किया जाता है।’ इस समूह का कहना है कि खतना ज्यादा प्रचलित प्रथा है लेकिन खफ्ज और खतना में अंतर होता है।

सुप्रीम कोर्ट में दिल्ली की रहनेवाली वकील सुनीता तिवारी ने याचिका दाखिल कर कहा था कि खफ्ज का धार्मिक उल्लेख नहीं है और बिना किसी मेडिकल कारण के इसे किया जाता है। उन्होंने मांग की थी कि इसे गैरजमानती अपराध घोषित किया जाए।

उन्होंने अपनी याचिका में कहा था कि दाऊदी बोहरा समुदाय की महिलाएं बचपन में बिना मेडिकल कारण के की गई अवैध और मैली प्रथा खफ्ज के कारण जिंदगी भर शारीरिक और मानिसक तकलीफ झेलती हैं।

दाऊदी बोहरा महिलाओं के इस समूह ने कोर्ट में 13 धार्मिक लेखों का जिक्र किया है। उन्होंने इसे संविधान के तहत धर्मिक स्वतंत्रता का मामला बताया है।

उन्होंने साफ करने की कोशिश की है कि खफ्ज में महिला के क्लिटरिस को कोई नुकसान नहीं पहुंचाया जाता, केवल उसके ऊपर की खाल की परत हटाई जाती है और यह महिलाओं और पुरुषों दोनों के लिए समान होता है। उन्होंने इसे धार्मिक शुद्धता और सफाई के लिए जरूरी बताया है। उन्होंने कहा कि धार्मिक पूजा करने के लिए खफ्ज जरूरी है।

अनुभवों के आधार पर कोर्ट में दाखिल किए गए हलफनामे इस मामले में कोर्ट में स्वतंत्र शोधकर्ता लक्ष्मी अनंतनारायण और शबाना डिलर ने हलफनामा दाखिल कर बताया था कि कैसे एक सात साल की बच्ची ने उन्हें अपने अनुभव के बारे में बताया था।

उन्होंने बताया कि बच्ची के खफ्ज के बाद सारी रात खून बहता रहा और बाद में उसे सर्जरी से गुजरना पड़ा। उन्होंने बताया कि बच्ची का खफ्ज एक नॉन मेडिकल व्यक्ति ने किया था।

इसी तरह गोधरा के एक गाइनकॉलजिस्ट ने कोर्ट को बताया है कि उन्होंने जिन 20 बोहरा महिलाओं की जांच की, उनका क्लिटरिस नॉर्मल से छोटा था। लक्ष्मी, डिलर, नताशा मेनन और वीस्पीकआउट नाम के संगठन ने एक स्टडी जारी की थी जिसमें पाया गया था कि ज्यादातर महिलाएं खफ्ज के बाद शर्म, गुस्से या बीमारियों का सामना करती हैं।

साभार- ‘नवभारत टाइम्स’