”मेरी रातें, मेरी सड़क” कहते हुए आधी रात को सड़कों पर निकली लड़कियां

रात में अकेली लड़की बाहर घूमने तो दूर ज़रूरी काम से भी निकले तो सुरक्षित रहना मुश्किल है । अंधेरी सड़कों पर घूमते दरिंदे उन्हें अपना शिकार बना लेते हैं । उसके बाद यही कहा जाता है कि रात को लड़की घर से बाहर निकली ही क्यों । चंडीगढ़ छेड़छाड़ मामले में भी यही कहा गया कि बारह बजे रात को लड़की अकेली बाहर थी क्यों ।

लेकिन लड़कियां भी रातों में सड़क पर निकलना चाहती हैं, वो भी महसूस करना चाहती हैं, कि रात की खूबसूरती क्या होती है। रात में सुनसान सड़कें कैसी होती हैं, और इसी लिए देश की लड़कियां आधी रात को सड़क पर निकल पड़ीं और कहने लगी “मेरी रातें, मेरी सड़क”

 

दिल्ली, मुंबई, बनारस समेत देश के कई हिस्सों में ये कैंपेन चल रहा है । बनारस की सड़कों पर लड़कियां हाथों पर तख्तियां लिए आधी रात को निकलीं। बीएचयू लंका से शुरू हुआ ये महिलाओं का मार्च अस्सी घाट पर रात साढ़े बारह बजे जाकर खत्म हुआ और यहां समय बिताकर उन्होंने ये मांग की, कि जैसे लड़के यहां आधी रात को महफूज बैठे हैं ऐसे ही लड़कियों को भी बैठने का अधिकार मिलना चाहिए।

 

वर्णिका कुंडू के साथ हुए साथ हुए हादसे के बाद फेसबुक पर मेरी रातें, मेरी सड़क नाम से कैंपेन चलाया जा रहा है । उसी के तहत देश भर के महिलाएं रात को सड़क पर उतरीं और उन्होंने उस पितृसत्तात्मक सोच को चुनौती दी है ।

 

कैंपेन में शामिल महिलाओं ने कहा ये समाज महिलाओं के लिए सुरक्षित नहीं है, लेकिन उन्होंने सड़क पर निकलकर ये बता दिया है, रात और सड़क उनकी भी उतनी ही है, जितनी पुरुषों की। देश भर में ये कैपेंन चल रहा है और लड़कियां आधी रात को सड़कों पर निकल कर कह रही हैं मेरी रात मेरी सड़क