एक अहम ईसाई धर्म प्रचारक कनाडा के गैरी मिलर ने इस्लाम अपना लिया और वे इस्लाम के लिए एक महत्वपूर्ण संदेशवाहक साबित हुए। मिलर सक्रिय ईसाई प्रचारक थे और बाइबिल की शिक्षाओं पर उनकी गहरी पकड़ थी।
वे गणित को काफी पसंद करते थे और यही वजह है कि तर्क में मिलर का गहरा विश्वास था। एक दिन गैरी मिलर ने कमियां निकालने के मकसद से कुरआन का अध्ययन करने का निश्चय किया ताकि वह इन कमियों को आधार बनाकर मुसलमानों को ईसाइयत की तरफ बुला सके और उन्हें ईसाई बना सके।वे सोचते थे कि कुरआन चौदह सौ साल पहले लिखी गई एक ऐसी किताब होगी जिसमें रेगिस्तान और उससे जुड़े कहानी-किस्से होंगे। लेकिन उन्होंने कुरआन का अध्ययन किया तो वह दंग रह गए। कुरआन को पढ़कर वह आश्चर्यचकित थे। उन्होंने कुरआन के अध्ययन में पाया कि दुनिया में कुरआन जैसी कोई दूसरी किताब नहीं है।
पहले डॉ. मिलर ने सोचा था कि कुरआन में पैगम्बर मुहम्मद सल्ल. के मुश्किल भरे दौर के किस्से होंगे जैसे उनकी बीवी खदीजा रजि. और उनके बेटे-बेटियों की मौत से जुड़े किस्से। लेकिन उन्होंने कुरआन में ऐसे कोई किस्से नहीं पाए बल्कि वे कुरआन में मदर मैरी के नाम से पूरा एक अध्याय देखकर दंग रह गए।डॉ. मिलर ने पाया कि मैरी के अध्याय सूरा मरियम में जो इज्जत और ओहदा पैगम्बर ईसा की मां मरियम को दिया गया है वैसा सम्मान उन्हें ना तो बाइबिल में दिया गया और ना ही ईसाई लेखकों द्वारा लिखी गई किताबों में वह मान-सम्मान दिया गया।
यही नहीं डॉ. मिलर ने पैगम्बर मुहम्मद सल्ल. की बेटी फातिमा रजि. और उनकी बीवी आइशा रजि. के नाम से कुरआन में कोई अध्याय नहीं पाया। उन्होंने जाना कि कुरआन में ईसा मसीह का नाम 25 बार आया है जबकि खुद मुहम्मद सल्ल. का नाम केवल चार बार ही आया है। यह सब जानने के बाद वे ज्यादा कन्फ्यूज हो गए।वे लगातार कुरआन का अध्ययन करते रहे इस सोच के साथ कि इसमें उन्हें जरूर कमियां और दोष पकड़ में आएंगे लेकिन कुरआन का अध्याय अल निशा की 82 आयत पढ़कर वे आश्चर्यचकित रह गए, इस अध्याय में हैं-
क्या वे कुरआन में गौर और फिक्र नहीं करते। अगर यह अल्लाह के अलावा किसी और की तरफ से होती तो वे इसमें निश्चय ही बेमेल बातें और विरोधाभास पाते।
कुरआन की इस आयत के बारे में डॉ. गैरी मिलर कहते हैं, “साइंस का एक जाना पहचाना सिद्धांत है जो आपको गलतियां और कमियां निकालने का अधिकार देता है जब तक कि यह सही साबित ना हो जाए। इसे फालसिफिकेशन टेस्ट कहते हैं।”
डॉ. मिलर कहते हैं, “ताज्जुब की बात है कि कुरआन खुद मुसलमानों और गैर मुसलमानों से इस किताब में कमियां निकालने की कोशिश करने को कहता है और दावा करता है कि वे इसमें कभी कोई कमी नहीं तलाश पाएंगे।”
वे कहते हैं, “दुनिया में कोई ऐसा लेखक नहीं है जो कोई किताब लिखकर यह कहने की हिम्मत कर सके कि उसकी लिखी किताब में किसी भी तरह की कमी नहीं है। दूसरी तरफ कुरआन कहता है कि उसमें कोई कमी या दोष नहीं है और कहता है कि तुम एक भी गलती ढूंढ़कर बताओ और तुम ऐसा हर्गिज नहीं कर पाओगे।”
कुरआन की दूसरी आयत जिससे डॉ. गैरी मिलर प्रभावित हुुए वह है सूरा अंबिया जिसमें है-क्या उन लोगों ने जिन्होंने इनकार किया, देखा नहीं कि ये आकाश और धरती मिले हुए थे। फिर हमने उन्हें खोल दिया। और हमने पानी से हर जिंदा चीज बनाई, तो क्या वे मानते नहीं ? कुरआन (21:30)
डॉ. मिलर कहते हैं, “यह आयत दरअसल वैज्ञानिक अनुसंधान का विषय है, इस विषय पर 1973 में नोबेल पुरस्कार दिया गया और जो महान विस्फोट की थ्योरी से संबंधित है। इस थ्योरी के मुताबिक इस ब्रह्माण्ड की उत्पत्ति इसी विस्फोट के परिणामस्वरूप थी।”डॉ. गैरी मिलर कहते हैं, “अब हम बात करते हैं पैगम्बर मुहम्मद सल्ल. को शैतान द्वारा मदद करने के दुष्प्रचार के बारे में।”
अल्लाह कुरआन में कहता है-
इसे शैतान लेकर नहीं उतरे हैं। यह काम न तो उनको सजता है और न ये उनके बस का ही है। वे तो इसके सुनने से भी दूर रखे गए हैं। अत: जब तुम कुरआन पढऩे लगो तो फिटकारे हुए शैतान से बचने के लिए अल्लाह की पनाह मांग लिया करो।कुरआन (16: 98)
डॉ. मिलर कहते हैं, “आप खुद सोचिए और बताइए क्या यह शैतान द्वारा रचित किताब हो सकती है। शैतान खुद अपने लिए ही आखिर क्यों कहेगा कि कुरआन को पढऩे से पहले तुम शैतान से बचने के लिए अल्लाह की पनाह मांगों।”क्या यह चमत्कारिक कुरआन की चमत्कारिक आयत नहीं है ? क्या यह आयत उन लोगों के मुंह पर करारा चांटा नहीं है जो यह कहते हैं कि कुरआन शैतान की तरफ से अवतरित ग्रंथ है।
साभार: (यह सिकंदर खानजादा खान के फेसबुक पोस्ट से लिया गया है)