नोबेल पुरस्कार विजेता जापानी वैज्ञानिक का दावा: रमजान में रोज़ा रखना कैंसर से लड़ने में सहायक

जापान के नोबेल चिकित्सा पुरस्कार विजेता वैज्ञानिक योशिनोरी ओहसुमी का मत है कि रमजान माह के दौरान रोजा रखने से शरीर के कैंसर से लड़ा जा सकता है। योशिनोरी ओहसुमी ने मानव शरीर की कोशिकाओं पर शोधकार्य किया है। उन्होंने अपने शोध में शरीर की उन कोशिकाओं की खोज की है जो शरीर से विषैले तत्व को खत्म व मरम्मत का काम करते हैं।

दरअसल ‘ऑटोफेजी’ शरीर में एक किस्म का रिसायकलिंग प्रोग्राम है, यह शरीर के लिए बेहद जरूरी प्रक्रिया है। ऑटोफेजी की प्रक्रिया में शरीर को कैंसर वायरस सहित विभिन्न प्रकार के बेक्टेरिया और वायरस से लड़ने में मदद मिलती है और साथ ही शरीर से सभी प्रकार के वायरस को रीसायकल करने में मदद मिलती है।

शोध को पेश करने के दौरान योशिनोरी ओहसुमी से किसी ने पूछा कि कैंसर से लड़ने के लिए ऑटोफेजी के लिए क्या सही समय है? ओहसुमी ने जवाब दिया कि शरीर से कैंसर के वायरस को पूरी तरह से मिटा देने के लिए हर साल लगभग 25 से 28 दिनों तक 8 घंटे से 14 घंटे भूखा रहने की आवश्यकता होती है और दुनिया भर में मुस्लिम हर साल 29 से 30 दिन एक महीने तक रोजा रखते है।

रमजान के दौरान रोजा रखना ऑटोफेजी की प्रक्रिया के लिए आदर्श है, जो कैंसर वायरस से लड़ने में मदद करता है। क्या यह आश्चर्यजनक नहीं है कि इस्लाम कितना अच्छा धर्म है? इबादत में भी अल्लाह आपको घातक बीमारी और कई अन्य चीजों से बचा रहा है।

जापानी वैज्ञानिक योशिनोरी ओहसुमी ने कहा कि मुस्लिम का रोजा एक आदर्श है जो इस प्रक्रिया के होने में मदद करेगा। यह वास्तव में प्रेरणादायक है कि रमजान का महीना कितना चमत्कारी है जो सभी इनामों को दोगुना करता है और साथ ही साथ हमें सभी प्रकार की बुराई और बीमारियों से बचाता है।