दुनिया की सबसे मशहुर महिला राबिया बसरी जिनके दिदार के लिए काबा खुद चल कर…..!

सूफीवाद एक अलग तरीके से धर्म को समझने का एक तरीका है। सूफीवाद नफों को उठाने, व्यक्तिगत अहंकार को तोड़ने, और पूरी तरह से चेतना और अल्लाह के आदेशों को हमेशा के लिए पालन करने पर केंद्रित है। इसलिए किसी का अस्तित्व पूरी तरह से अल्लाह के अस्तित्व की स्वीकृति और मान्यता में भंग हो जाता है। रुमी, हफेज़ और शम्स तब्रीजी जैसे मशहूर सूफी के कई काम बताते हैं कि कैसे कोई अपने स्मरण के माध्यम से और भीतर के आत्म पर काम करने के माध्यम से अल्लाह के करीब बढ़ सकता है। हालांकि एक ऐसी महिला है जो विशेष रूप से विश्वास करने वाली महिला की स्थिति और शक्ति का प्रतिनिधित्व करने के लिए जानी जाती है। वह इस्लाम की पहली महिला सूफी संत, रबिया अल-अदविया, जिसे राबिया बसरी भी कहा जाता है।

एक महान महिला के पीछे की कहानी
सूफी कवि फरीदुद्दीन अटार के अनुसार, हजरते रबिया बसरी 714 ई में (714 ई या 718) इराक में अपनी तीन बहनों के बाद पैदा हुई थीं। जब उनके वालिद की वफात हो गई, तो उन्हें कुछ दिरहम के लिए दास के रूप में नीलामी की गई। इन सब के बावजूद, उसने कहा या अल्लाह, मैं पिता या मां के बिना एक अजनबी हूँ; मुझे निलामी में बेचा गया है, और अब मेरी कलाई टूट गई है। लेकिन इन सबके बावजूद, मुझे किसी भी चीज के बारे में परेशान नहीं है जो मुझे हुआ है। मैं केवल आपसे संतुष्ट होना चाहती हूं, ताकि मुझे पता चले कि क्या मैंने आपकी संतुष्टि प्राप्त की है या नहीं।

वह पूरी तरह से दासता और गरीबी के कठिन समय के माध्यम से प्रार्थना के माध्यम से पूरी तरह से याद दिलाने के लिए अल्लाह के प्रति समर्पित थी। ऐसा कहा जाता है कि जब उसके मालिक ने इबादत (नमाज) के दौरान उसके चारों ओर रौशनी देखा, तो वह उसे दासता तक सीमित नहीं कर सका और उसे मुक्त कर दिया। राबिया ने अपने पिछले जीवन से रेगिस्तान जाने के लिए खुद को वापस ले लिया और पवित्रता के कामों के प्रति समर्पित हो गए। उनके धर्म और ध्यान, पवित्रता और धैर्य के लिए उनका पूर्ण स्नेह वह है जो आज के लिए यादों के माध्यम से याद किया जाता है जैसे कि राबिया बसरी एक स्वतंत्र, और मजबूत महिला थी.

निकाह
आपसे पूछा गया कि क्या आपको निकाह की ख्वाहिश नहीं होती। तो आपने फ़रमाया कि निकाह का ताल्लूक तो जिस्म व वजूद से है, जिसका वजूद ही रब में गुम हो गया हो उसे निकाह की क्या हाजत।

किसी ने आज़माईश के लिए पूछा कि ऐसा क्यूं कि नबूव्वत सिर्फ़ मर्दों को ही मिली फिर भी औरतों को ख़ुद पर नाज़ क्यूं। आपने जवाब में कहा- क्या किसी औरत ने कभी ख़ुदाई का दावा किया है। नहीं किया। अल्लाह की मर्ज़ी जिसे चाहे नबूव्वत दे दे। हम कौन होते हैं उसके ख़िलाफ़ जाने वाले। हमें ख़ुद पर नहीं ख़ुदा की बंदगी पर नाज़ है।

एक शख्स आपसे दुनिया की बहुत शिकायत करने लगा तो अपने फ़रमाया लगता है तुम्हें उसी दुनिया से बहुत लगाव है। तुम जब से आए हो उसी दुनिया का ज़िक्र कर रहे हो। जिससे बहुत ज्यादा मुहब्बत होती है, इन्सान उसी का ज़िक्र करता रहता है। अगर नफ़रत है तो उसकी बात ही मत करो।

हवा पर मुसल्ला
हज़रत हसन बसरी रज़ी. दरिया में मुसल्ला बिछाकर कहा आइए यहां नमाज अदा कीजिए। आपने कहा- क्या ये लोगों के दिखाने के लिए है। अगर नहीं तो फिर इसकी क्या ज़रूरत है। आपने हवा पर इतने उपर मुसल्ला बिछाया कि किसी को न दिख सके और फ़रमाया आईए यहां इबादत करते हैं। फिर आपने फ़रमाया पानी में इबादत एक मछली भी कर सकती है और हवा में एक मक्खी भी नमाज़ पढ़ सकती है। इसका हक़ीक़त से कोई वास्ता नहीं।

एक मजलिस में आपने फ़रमाया कि जो हज़रत मुहम्मद ﷺ को सच्चे दिल से मानता है उसे उनके मोजज़ात में से कुछ हिस्सा ज़रूर मिलता है। ये अलग बात है कि नबीयों के मोजज़ा को वलियों के लिए करामत कहते हैं।

एक रोज़ एक मजलिस में ‘ख़ुदा की बंदगी’ यानि इबादत के बारे में बातचीत हो रही थी। आप भी उसमें मौजूद थीं। एक ने कहा कि मैं इबादत इसलिए करता हूं कि जहन्नम से महफूज़ रहूं। एक ने कहा इबादत करने से मुझे जन्नत में आला मकाम हासिल होगा। तब आपने फ़रमाया कि अगर मैं जहन्नम के डर से इबादत करू तो ख़ुदा मुझे उसी जहन्नम में डाल दे और अगर जन्नत के लालच में इबादत करूं तो ख़ुदा मुझ पर जन्नत हराम कर दे। ऐसी इबादत भी कोई इबादत है। ख़ुदा की बंदगी तो हम पर ऐन फ़र्ज़ है, हमें तो हर हाल में करना है, चाहे उसका हमें सिला मिले या न मिले। अगर ख़ुदा जन्नत या दोज़ख़ नहीं बनाता तो क्या हम उसकी बंदगी नहीं करते। उसकी बंदगी बिना मतलब के करनी चाहिए।

सफरे हज का एक वाक्या
एक बार आप हज करने गईं। काबे में पहुंच कर आपने ख़ुदा से दर्याफ्त किया मैं खाक से बनी हूं और काबा पत्थर का। मैं बिला वास्ते तुझसे मिलना चाहती हूं। इस पर निदा आई ‘ऐ राबिया! क्या तू दुनिया के निज़ाम को बदलना चाहती है? क्या इस जहां में रहने वालों के खून अपने सर लेना चाहती है? क्या तूझे मालूम नहीं जब मूसा रज़ी. ने दीदार की ख्वाहिश की तो एक तजल्ली को तूर का पहाड़ बर्दाश्त नहीं कर पाया?’

काफी अर्से बाद आप जब दोबारा हज करने गयीं तो देखा कि काबा ख़ुद आपके दीदार को चला आ रहा है। आपने फ़रमाया मुझे हुस्ने काबा से ज्यादा, जमाले ख़ुदावन्दी की तमन्ना है। हज़रत इब्राहीम अदहम रज़ी. जगह जगह नमाज अदा करते हुए पूरे 14 साल में जब हज करने मक्का पहुंचे तो देखते हैं कि काबा गायब है। ख़ुदा की बारगाह में गिरयावोज़ारी करने लगे इन आंखों से क्या गुनाह हो गया है। तब निदा आई वो किसी ज़ईफ़ा के इस्तेकबाल के लिए गया है। कुछ देर बाद काबा अपनी जगह पर था और एक बुढ़िया लाठी टेकते हुए चली आ रही है। हज़रत अदहम रज़ी. ने कहा ये निज़ाम के ख़िलाफ़ काम क्यूं कर रही हो? तब हज़रत राबिया रज़ी. फ़रमाती हैं तुम नमाज़ पढ़ते पढ़ते यहां पहुंचे हो और मैं इज्ज़ इंकिसारी के साथ यहां पहुंची हूँ।

विसाल
विसाल के वक्त आपने हाजिर लोगों से कहा यहां से चले जाएं फरिश्तों के आने का वक्त हो गया है। सब बाहर चले गए। फरिश्ते आए, आपसे दरयाफ्त किया ऐ मुतमईन नफ्स! अपने मौला की जानिब लौट चल। इस तरह आपका विसाल हुआ। आपने न किसी से कभी कुछ मांगा और न ही अपने रब से ही कुछ तलब किया और अनोखी शान के साथ दुनिया से रूख्सत हुईं।