एर्दोगन के सख्त तेवर देख अमेरिका ने तुर्की से जताया प्रेम

अमरीका को कुछ ही दिनों के भीतर दो बार अपनी धमकी से पीछे हटना पड़ा। एक तो अमरीकी राष्ट्रपति डोनल्ड ट्रम्प ने अपने तुर्क समकक्ष रजब तैयब अर्दोग़ान को फ़ोन करके यह आश्वासन दिया कि उनके देश ने सीरिया के कुर्दों को किसी ही प्रकार का हथियार देना बंद कर दिया है।

अमरीका के पीछे हटने का दूसरा मामला पैलेस्टाइन लिब्रेशन आर्गेनाइज़ेशन का वाशिंग्टन स्थित प्रतिनिधि कार्यालय बंद करने से संबंधित है। ट्रम्प ने फ़िलिस्तीनी प्रशासन के प्रमुख महमूद अब्बास को धमकी दी थी कि यदि उन्होंने तेल अबीब से बिना किसी शर्त के वार्ता शुरू न की तो कार्यालय बंद कर दिया जाएगा, मगर कार्यालय आज भी खुला हुआ है।
अपनी धमकियों से अमरीका का पीछे हट जाना महत्वपूर्ण विषय इससे तीन बातों का पता चलता हैः
1 कि अमरीका दुनिया और मध्यपूर्व में अपना रोब गंवा चुका है, अब उसकी धमकियों से कुछ मुट्ठी भर डरपोक लोगों के अलावा कोई नहीं डरता।
2 दुनिया के शक्तिशाली और कमज़ोर दोनों प्रकार के देशों को अंतर्राष्ट्रीय मंच पर रूस और चीन के रूप में अमरीका का विकल्प नज़र आने लगा है।
3 अमरीक को जैसे ही यह महसूस होता है कि उसके घटक उसके लिए बोझ बन गए हैं वह फ़ौरन उनसे पीछा छुड़ा  लेता है।
तुर्की के राष्ट्रपति रजब तैयब अर्दोग़ान ने अमरीका के सामने दो विकल्प रखे थे, या तो वह तुर्की के साथ अपना एलायंस बाक़ी रखे जो नैटो के संस्थाक सदस्यों में गिना जाता है या फिर सीरिया के कुर्दों की मदद करने की रणनीति पर अमल करे जो अर्दोग़ान के अनुसार तुर्की की एकता, शांति व स्थिरता के लिए ख़तरा हैं।
पहले तो ट्रम्प प्रशासन ने बड़े घमंड के साथ कुर्दों की मदद जारी रखने की नीति अपनाई और अर्दोग़ान को संकेत दिया है कि वह जो चाहें कर लें, अर्दोग़ान रुस की ओर झुक गए और इस देश के प्रभावशाली नेता व्लादमीर पुतीन से गठजोड़ कर लिया, रूस के साथ एस-400 मिसाइल ढाल व्यवस्था के सौदे पर हस्ताक्षर भी कर दिए। इसके अलावा सूची में तीन पक्षीय शिखर सम्मेलन में हिस्सा लिया जहां ईरान और रूस के राष्ट्रपति मौजूद थे। इस बैठक में यह रणनीति बनाई गई कि मध्यपूर्व से अमरीका के बाहर निकलने के बाद उसकी जगह कैसे भरी जाए?
फ़िलिस्तीनियों ने भी प्रतिनिधि कार्यालय बंद किए जाने की धमकी पर न तो सिर पीटा न सीना पीटा बल्कि अपनी बात पर डट गए तो अमरीका को अपनी धमकी से पीछे हटना पड़ा।