मिस्र के ‘रबा नरसंहार’ के पांच साल : आज ही के दिन हुई हजारों लोगों की मौत

काहिरा : आज 14 अगस्त को आधुनिक दौर के किसी एक दिन में हुए सबसे बर्बर नरसंहार की पांचवी बरसी है। इसे दुनिया रबा अल-अदाविया कत्लेआम के नाम से जानती है। मिस्र में पहली बार जम्हूरी तौर पर चुने गए सदर मोहम्मद मुर्सी के फौजी तख्तापलट के खिलाफ मिस्र की राजधानी क़ाहिरा में सरकार विरोधी प्रदर्शन कर रहे मुस्लिम ब्रदरहुड के समर्थकों पर सैन्य कार्रवाई गई थी.

लोगों के दो शिविरों पर 14 अगस्त, 2013 को फौज की टुकड़ी ने हमला बोला था। 14 अगस्त, 2013 को काहिरा के रबा अल-अदाविया स्क्वायर में बैठने के नाटकीय फैलाव ने देखा कि सैनिकों और पुलिस ने घंटों के मामले में हजारों प्रदर्शनकारियों को गोली मार दी। सेना का वह हमला इतना बर्बर था कि ह्यूमन राइट वाच ने इसका उल्लेख ‘आधुनिक इतिहास के किसी एक दिन में हुए सबसे भयानक कत्लेआम’ के तौर पर किया। मिस्र की हुकूमत का दावा है कि उस वारदात में 600 से कुछ ज्यादा लोग मारे गए, मगर ह्यूमन राइट वाच का कहना है कि मारे गए लोगों की संख्या 1,500 से कहीं ज्यादा थी। जबकि ब्रदरहुड ने हिंसा में दो हज़ार से अधिक लोगों के मारे जाने का दावा किया था. वास्तविक संख्या क्या थी, अब आज तक मालूम नहीं, क्योंकि मिस्र सरकार ने हत्याकांड से जुड़े आकड़े जुटाने की राह में कई तरह की रुकावटें डाल दी हैं।

यहां तक कि आज पांच साल बाद भी किसी अधिकारी या फौजी को उस जघन्य हत्याकांड के लिए जिम्मेदार नहीं माना गया है, जबकि जिन लोगों ने फौजी तख्तापलट और बर्बरता के खिलाफ आवाज उठाई, वे सलाखों के पीछे सड़ रहे हैं। सत्ता से बेदखल सदर मुर्सी और उनकी फ्रीडम ऐंड जस्टिस पार्टी के अनेक नेताओं को फौजी अदालत ने मौत की सजा दी है।

मिस्र में बढ़ती तानाशाही के बावजूद इसके पश्चिमी साथी मुल्कों ने, जिनमें अमेरिका भी शामिल है, तख्तापलट की आलोचना करने से इनकार कर दिया था, जिसकी वजह से अल सीसी हुकूमत वजूद में आई और अवाम के चुने सदर को बाहर कर दिया। दरअसल, इन पश्चिमी मुल्कों को सुएज कैनाल दर्रा, आतंकवाद विरोधी सहयोग या इजरायल की सुरक्षा जैसी दुनिया की सियासत और सुरक्षा की काफी चिंता है, लेकिन मिस्र में मानवाधिकारों और एक पूर्व फौजी के शासन में कानून के राज से जुड़ी समस्याओं की कोई परवाह नहीं है। तुर्की में हाल ही में हुई नाकाम फौजी बगावत ने दुनिया को एक बार फिर आगाह किया है कि रबा अल-अदाविया एक प्रतीक से कहीं बढ़कर है।

लेकिन दूसरी तरफ़ मिस्र की सोशल डेमेक्रेटिक पार्टी के मुखिया मोहम्मद अबुलग़ार का मानना था कि विरोध प्रदर्शनों के ख़िलाफ़ कार्रवाई करने के अलावा प्रशासन के पास कोई विकल्प नहीं था.

उन्होंने कहा था कि, ‘कोई देश यह बर्दाश्त नहीं करेगा कि हज़ारों की तादाद में हथियारों से लैस लोग शहर के मुख्य चौराहों पर इकट्ठा हों. यूरोप का कोई भी देश इस तरह के जमावड़े को कभी भी बर्दाश्त नहीं करेगा. उन्होंने प्रयास किया और वे नाकाम हो गया और उन्होंने कहा था कि वे नाकाम हो गए. हम यूरोप से मिले, हम अमरीकियों से मिले और हम जानते थे कि वे कुछ भी हासिल नहीं कर सकते. हमने मुस्लिम ब्रदरहुड से बात करने की हर संभव कोशिश की. उन्होंने हमसे बात करने या कोई भी समझौता करने से साफ़ इंकार कर दिया.’

हिंसक कार्रवाई पर प्रतिक्रिया देते हुए मिस्र की अंतरिम सरकार ने कहा था कि पुलिस को आत्मरक्षा में फॉयरिंग करने की अनुमति दी गई थी.

 

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