‘मजहब नहीं सिखाता, आपस में बैर रखना, हिंदी हैं हम, वतन है, हिंदुस्तान हमारा’ इन पंक्तियों को सार्थक कर रहे है नूंह जिले के यामीन खान। नगीना के गांव झिमरावट के रहने वाले यामीन खान मुसलमान होते हुए भी मजहब से ऊपर उठकर 17 वर्षों से हरिद्वार और गंगोत्री से कावड़ लाने वाले कांवड़ियों की सेवा कर रहे हैं।
हरिद्वार और गंगोत्री से कावड़ लाने वाले हारे थके कावड़ियों की थकान को एक्यूप्रेशर थेरेपी से चंद मिनटों में दूर कर रहे हैं। उनकी इस सेवा के चलते दूरदराज तक के कावड़ शिविरों में उनकी मांग बढ़ती जा रही है, लेकिन जो नेक काम उन्होंने नूंह जिला मुख्यालय स्थित नई अनाज मंडी से शुरू किया था वह उसे अपने जीवन के साथ यहीं खत्म करना चाहते हैं।
यामीन खान बताते हैं कि स्वास्थ्य विभाग में चपरासी के पद पर रहते हुए उन्होंने एक्यूप्रेशर थेरेपी सीखी इस थेरेपी के जरिए पहले वह लोगों का इलाज करते थे लेकिन उनके अंदर लोगों की मदद करने की धुन सवार थी।
वर्ष 2001 में उन्हें कांवड़ शिविर के जरिए लोगों की सेवा करने का रास्ता मिल गया। नूंह की नई अनाज मंडी में कमेटी द्वारा लगाए गए शिविर में पहली बार उन्होंने कांवड़ियों की सेवा की। यामीन खान ने बताया कि वह 15 दिन लगातार शिविर में आकर कांवड़ियों की सेवा करते हैं।
उन्होंने कहा कि इंसानियत ही सबसे बड़ा धर्म है। आज भी हम अपने बुजुर्गों की परंपरा का अनुसरण करते हुए हिंदू मुस्लिम भाईचारे को कायम करने में जुटे हैं। वहीं दूर दूर से आ रहे कावड़ियों का कहना है कि जब यामीन खान एक्यूप्रेशर थेरेपी से हमारे शरीर की मसाज करते हैं तो सारी थकान दूर हो जाती है।