जब उत्तरप्रदेश में समाजवादी की सरकार थी तब बीजेपी लगातार सरकारी भर्तियों में यादवों की संख्या को लेकर आरोप लगाती रही है । मीडिया भी आरोप लगाता आया है कि अखिलेश के राज में सरकारी नौकरियों में यादवों को ज्यादा तवज्जो मिली है ।
लेकिन अब जब यूपी में बीजेपी यानि योगी आदित्यनाथ की सरकार है तो ऐसा खुलासा हुआ है जो सरकार की नीयत पर सवाल उठा रहे हैं । इस खुलासे से साफ़ हुआ है कि किस तरह योगी सरकार अपने जातिवादी एजेंडे पर पूरी तरह से लगी हुई है और चुन-चुन कर सवर्णों की नियुक्ति कर रही है।
Scroll.in की एक रिपोर्ट के अनुसार एक हैरान करने वाली जानकारी सामने आई है। नए नियुक्त किए गए 312 सरकारी वकीलों में लगभग 90% सवर्ण हैं जिसमें लगभग 50% अकेले ब्राम्हण जाति के लोग हैं। उसके बाद क्षत्रिय समाज के लोग हैं जिससे खुद योगी आदित्यनाथ आते हैं ।
7 जुलाई को 312 सरकारी वकीलों की नियुक्ति की गई । जिनमें से 282 सरकारी वकील ऊंची जातियों से है और उसमें भी 152 ब्राम्हण है , और 65 क्षत्रिय । इसके साथ ही तमाम सवर्ण जातियों को मिलाकर 282 नियुक्तियां हुई।
यूपी की आधी आबादी पिछड़ा वर्ग से आती है उसमे सिर्फ़ 5% पिछड़ों को नियुक्ति दी गई है यानि की कुल 16 वकील पिछड़े वर्ग के हैं ।
अगर नियुक्तियों की बात करें तो चीफ स्टैंडिंग काउंसिल की 4 में से 3 नियुक्तियां ब्राम्हण की हैं । एडिशनल चीफ स्टैंडिंग काउंसिल के 25 में से 13 नियुक्तियों ब्राम्हण की हुई हैं ।
जबकि 103 स्टैंडिंग काउंसिल में 58 नियुक्तियां ब्राम्हण की. ब्रीफ होल्डर (सिविल )की 66 नियुक्तियों में से 36 नियुक्तियां ब्राम्हण की हुई हैं । ब्रीफ होल्डर (क्रिमिनल) की 114 नियुक्तियों में से 42 नियुक्तियां ब्राम्हण की हुई।
सरकारी वकीलों की नियुक्तियों में इस तरह सवर्णों का वर्चस्व न्यायपालिका में जातिवाद हावी करने की कोशिश है । इस तरह की नियुक्तियों से न्यायपालिका भी प्रभावित होगी ।