ए पी टूरिज़्म‌ कारपोरेशन के बस शेल्टरस से सोफे ग़ायब

हैदराबाद। 12 अप्रैल (नुमाइंदा ख़ुसूसी) सरकारी मह्कमाजात की एक ख़ास बात होती है कि वो कोई प्रोग्राम शुरू करते हैं तो कुछ अर्सा तक इसी प्रोग्राम पर अमल आवरी का जायज़ा लेना अपना फ़रीज़ा तसव्वुर करते हैं और चंद माह बाद इन मह्कमाजात और उन के ओहदेदारों को अपने शुरू करदा प्रोग्राम्स और प्राजेक्टस के बारे में किसी किस्म की दिलचस्पी बाक़ी नहीं रहती।

हद तो ये है कि अगर कोई महिकमा शहर में अवाम की भलाई के लिए साइबान या शेल्टर भी नसब करता है तो वो इस पर तवज्जा नहीं देता और देखते ही देखते वो साइबान या शेल्टर अपना वजूद खो बैठता है। ऐसा ही एक महिकमा आंध्र-प्रदेश टूरिज़्म डेवलपमेन्ट कारपोरेशन ही। ये कारपोरेशन सयाहत को फ़रोग़ देने के लिए जान तोड़ कोशिश करने का दावे करता है।

क़ारईन छः माह क़बल ए पी टूरिज़्म‌ डेवलपमंट कारपोरेशन ने पुराने और नए शहर के तक़रीबन 13 तफ़रीही मुक़ामात पर इंतिहाई ख़ूबसूरत बस शेल्टरस नसब किए और उन साइबानों में ज़ंग से महफ़ूज़ रहने वाले आहनी सोफे रखे गए लेकिन अफ़सोस के साथ कहना पड़ता है कि इन साइबानों में से अक्सर साइबानों में रखे गए आहनी सोफे ग़ायब होगए हैं। हैरत-ओ-दिलचस्पी की बात ये है कि ए पी टूरिज़्म‌ डेवलपमंट कारपोरेशन ने पुलिस में इन सोफ़ों के ग़ायब होजाने के बारे में कोई शिकायत तक दर्ज नहीं करवाई।

आपको बतादें कि जिन 13 सयाहती मुक़ामात पर इस तरह के बस शेल्टरस नसब किए गए हैं, इन में चौमुहल्ला पैलेस खिलवत , नेहरू जूलोजिकल पार्क बहादुर पूरा, चारमीनार, बिरला मंदिर, गुम्बदाने क़ुतुब शाही, हुसैन सागर, हाईटेक सिटी और नेकलस रोड वग़ैरा शामिल हैं। इन आहनी सोफ़ों पर छः अफ़राद के बैठने की गुंजाइश होती है।

राक़िम उल-हरूफ़ ने देखा कि चौमुहल्ला प्यालीस के क़रीब बस शेल्टरस में जहां आहनी सोफे ग़ायब थी, वहीं जगह जगह पोस्टर्स, पान के थोक के निशानात इन शेल्टरस की हालत-ए-ज़ार बयान कररहे थी। रात के औक़ात में गदागरों ने इस साइबान को अपने सोने के मुक़ाम में तबदील कर लिया है।

मुक़ामी अफ़राद ने बताया कि पिछले दो माह से कुर्सियां ग़ायब हैं। हम ने हुसैनी इलम पुलिस स्टेशन के इन्सपैक्टर जय वेंकट रेड्डी से बात की। उन्हों ने कहा कि आहनी सोफ़ों के सरका की कोई शिकायत ए पी टोरा ज़म वालों ने दर्ज नहीं करवाई।

हम ने बाज़ार में इन सोफ़ों की क़ीमत दरयाफ़त की तो पता चला कि एक सीट की क़ीमत 26 हज़ार रुपय ही। जब हम ज़ौ पार्क के क़रीब नसब करदा इस किस्म के बस शेल्टर का जायज़ा लेने पहूंचे तो ये देख कर हैरत हुई कि वो शेल्टर मोची की दूकान में तबदील होगया है जबकि आहनी कुर्सियां कहाँ गईं, ये किसी को नहीं मालूम।

इन बस शेल्टरस से कुर्सीयों के ग़ायब होजाने और उन की तबाहकुन हालत से अंदाज़ा होता है कि ए पी टोरा ज़म डेवलपमंट कारपोरेशन के ओहदेदार किस क़दर ग़फ़लत का मुज़ाहरा करते हैं।