हैदराबाद 19 जुलाई (नुमाइंदा ख़ुसूसी) 5 जून 2011 -ए-को चीफ़ मिनिस्टर किरण कुमार रेड्डी के इन ब्यानात से गूंज रहा था जिस में उन्हों ने बार बार इस बात का वाअदा किया था कि वो पुराना शहर को नए शहर के मुमासिल बनादेंगे । शहर के इस हिस्सा मेंअवाम को तमाम सहूलतें फ़राहम की जाएगी, इस इलाक़ा के अवाम के साथ इमतियाज़ी सुलूक की जो शिकायतें की जाती हैं उन्हें दूर करदिया जाएगा और पुराना शहर में बसतरक़्क़ी ही तरक़्क़ी होगी, अपने हंगामी दौरा के मौक़ा पर चीफ़ मिनिस्टर ने तालियों और नारों की गूंज में मुख़्तलिफ़ मुक़ामात पर 55 करोड़ रुपय मालियती तामीरी प्रॊजेक्टस के संग-ए-बुनियाद भी रखी। इसी दिन अपने दौरा में चीफ़ मिनिस्टर ने 11 बजे सुबह ख़लवतमें मल्टी लेवल पार्किंग कामप्लेक्स की तामीर का संग-ए-बुनियाद भी रखा और अवाम से बहुत सारे वाअदे भी किए और बबानग दहल कहा कि अंदरून एक साल ये कामप्लेक्स तामीर हो जाएगा जिस से मुक़ामी अवाम और सय्याहों को गाड़ीयों की पार्किंग में बड़ी सहूलत होगी ।
हैरत-ओ-अफ़सोस की बात है कि कोई भी चीफ़ मिनिस्टर हो पुराना शहर का दौरा करते हुए हमालयाई वाअदे करजाता है लेकिन फिर दुबारा वो इन वाअदा पर अमल आवरी करवाने की ज़हमत करना तक गवारा नहीं करता । इसी तरह हमारे चीफ़ मिनिस्टर किरण कुमार रेड्डी भी अपने तमाम वादों को फ़रामोश करचुके हैं। उन्हों ने वाअदा किया था कि एक साल के अंदर ख़लवत में मल्टी लेवल पार्किंग कामपलकस तामीर हो जाएगा लेकिन आज संग-ए-बुनियाद रखे 13 माह का अर्सा हो चुका है, तामीर मुकम्मल होना तो दौर की बात है , तामीर शुरू ही ना होसकी । ऐसा लगता है कि अपने पेशरू चीफ़ मिनिस़्टरों की तरह किरण कुमार रेड्डी ने भी शायद यही सोचा होगा कि वाअदा करना तो सयासी लीडरों का पैदाइशी-ओ-बुनियादी हक़ है और उन्हें भूल जाना अवाम की आदत बन गई लेकिन आज अवाम में शऊर जाग चुका ही, वो ना सिर्फ वादों को याद रखते हैं बल्कि वाअदे करने वालों को उन की हैसियत भी याद दिलाना जानती है ।
5 जून 2011 -ए-को ये भी बताया गया था कि तारीख़ी चारमीनार और चौमुहल्ला पियालस को देखने केलिए आने वाले सय्याहों के इलावा मुक़ामी आबादी को भी पार्किंग का बड़ा मसला दरपेश है । चारमीनार के क़रीब गाड़ियां ठहराने से ट्रैफ़िक जाम होरही है जिस के नतीजा में ट्रैफ़िक का मसला पैदा होरहा है । ऐसे में अगर मल्टी लेवल पार्किंग की तामीर की जाती है तो ये मसला ख़ुदबख़ुद हल हो सकता है ।
वाज़िह रहे कि चारमीनार मक्का मस्जिद और चौमुहल्ला पियालस को देखने केलिए मुल्क-ओ-बैरून-ए-मुल्क सय्याहों की एक कसीर तादाद पहुंचती ही। आप को बतादें कि चीफ़ मिनिस्टर ने मल्टी लेवल पार्किंग का संग-ए-बुनियाद ख़ज़ाना-ए-आमिरा में रखा था और आज भी वहां आठ फुट लंबी और चार फुट चौड़ी संग-ए-बुनियाद की तख़्ती नसब है और हैरत की बात ये है कि जी ऐच एमसी के ओहदेदारों ने फ़ाश ग़लती करते हुए इस तख़्ती पर चंदरायन गट्टा ऐम एलए की जगह चारमीनार ऐम एलए का नाम लिख दिया।
बहरहाल जी एच एमसी की इस ग़लती से अवाम को कोई सरोकार नहीं है बल्कि अवाम चाहती है कि हुकूमत जो वाअदा करे उसे वफ़ा भी करी। तक़रीब संग-ए-बुनियाद के दूसरे दिन अख़बारात में चीफ़ मिनिस्टर के दौरा पुराना शहर को काफ़ी एहमीयत दी गई और तफ़सीली रिपोर्टस शाय की गईं जिस में बताया गया था कि चीफ़ मिनिस्टर ने पुराना शहर को नए शहर के मुमासिल बनाने का ऐलान किया है । 55 करोड़ रुपय लॉगती कई पराजकटस का संग-ए-बुनियाद रखते हुए ये भी किया कि इन प्रॊजेक्टस की जल्द से जल्द तकमील होगी। हुकूमत की वाअदा ख़िलाफ़ी से परेशान और ब्रहम शहर के बाशऊर अफ़राद ने सियासत से रुजू होकर अख़बारात के वो तराशे दिखाए और बताया कि चीफ़ मिनिस्टर के तमाम वाअदे झूटे निकले ।
यहां तक कि ख़ज़ाना-ए-आमिरा में मल्टी लेवल पारुकन कामपलकस की तामीर शुरू तक ना हो सकी । बेशक अवाम का ये कहना दरुस्त है और उन्हें हुकूमत और चीफ़ मिनिस्टर से ये पूछने का भी हक़ है कि आख़िर पुराना शहर में ही काम सुस्त रवी का शिकार क्यों होता है ? आख़िर शहर के इसी हिस्सा में प्रॊजेक्टस पर संग-ए-बुनियाद रखने के बावजूद काम शुरू क्यों नहीं किया जाता ? क़ारईन आप को बतादें कि मल्टी लेवल पार्किंग कामपलकस का संग-ए-बुनियाद दरअसल ख़लवतमें वाक़्य ओलड पैंशन ऑफ़िस पर रखा गया, ये क़दीम इमारत चौमुहल्ला पियालस का ही हिस्सा था और आसफ़ जाही हुक्मराँ इसे सरकारी ख़ज़ाना के तौर पर इस्तिमाल किया करते थे ।
यही वजह है कि उसे आज भी ख़ज़ाना-ए-आमिरा के नाम से याद किया जाता है । इस इमारत में आसफ़जाही हुकमरानों ने मुल्की ख़ज़ाना केलिए एक मज़बूत स्ट्रोंग रुम भीतामीर करवाया था और इस वक़्त ये इमारत ज़बरदस्त सीकोरीटी घेरे में रहा करती थी लेकिन हैदराबाद दक्कन के इंडियन यूनीयन में इंज़िमाम के बाद ये इमारत रियास्ती हुकूमत के हवाले करदी गई जिस ने उसे पैंशन ऑफ़िस की हैसियत से इस्तिमाल का फ़ैसला किया जहां वज़ीफ़ा जात की रक़म रखी जाती थी और वज़ीफ़ा याबों में इस की तक़सीम-ए-अमल में आती थी। ये सिलसिला तक़रीबन दस साल क़बल तक भी जारी रहा लेकिन जैसे ही हुकूमत ने वज़ीफ़ा की तक़सीम तवज्जा मर्कूज़ करदिया। पैंशन ऑफ़िस भी तारीख़ की दास्तां का एक हिस्सा बन कर रह गया है ।