हैदराबाद ०२। अगस्त : रमज़ान मुबारक वो महीना है जिस के अव्वल में रहमत , दरमयान में मग़फ़िरत और आख़िर में आग से नजात है यानी रमज़ान शरीफ़के तीन दहों में से पहला दुहा रहमत परवरदिगार को इताअत गुज़ार बंदों पर बिखेरता है और दूसरा दुहा रोज़ा दारों के लिए परवाना मग़फ़िरत लाता है और तीसरा दुहा नजात यानी आतिश जहन्नुम से रिहाई और छुटकारे की नवेद लाता है रमज़ान शरीफ़ ख़ाह तीस दिन का हो या उनत्तीस दिन का बहरहाल एक कामिल महीना है इस माह मुक़द्दस में बरकात-ओ-इफ़ज़ाल, लुतफ़-ओ-इनायात ख़ुसूसी में कमी नहीं होती दिन के रोज़े और रातों का क़ियाम, इबादात-ओ-तिलावत, ज़िक्र-ओ-तस्बीह दरहक़ीक़त गुनाहों को मिटा देने का बाइस बनते हैं।
रोज़ा दारों के तमाम अगले गुनाह यानी सग़ाइर बख़श दिए जाते हैं रोज़ा का मंशा-ए-नफ़स का तोड़ना, दिल में सफ़ाई पैदा करना, फ़िक्रा-ए-और मसाकीन से मुवाफ़िक़त करना है रोज़ा जहां गुनहगारों के गुनाह माफ़ करवाने का ज़रीया है वहीं नेकों और परहेज़गारों के दरजात बढ़ाता है और इबरार को तक़र्रुब इलाही की दौलत से और ज़्यादा नवाज़ता है।
बिलाशुबा रमज़ान मुबारक रहमत हक़तआला, मुहब्बत इलाही , अमन-ओ-सलामती की ज़मानत और नूर लेकर रौनक अफ़रोज़ और मुराजअत फ़र्मा होता ही। फ़र्ज़इबादात और मस्नून आमाल पर ईमान-ओ-इख़लास के साथ मुदावमत सबब मग़फ़िरत बन जाती ही। डाक्टर सय्यद मुहम्मद हमीद उद्दीन शरफ़ी डायरेक्टर आई हरक नी1 रमज़ानउल-मुबारक को ढाई बजे दिन जामि मस्जिद अंबर पेट और बाद नमाज़ अस्र हमीदिया शरफ़ी चमन में सोलहवीं सालाना हज़रत ताज उलार फा-ए-सैफ शरफ़ी ऒ यादगार ख़ताबात के ११वें दिन के इजलासों में इन ख़्यालात का इज़हार किया। उन्हों ने सिलसिला कलाम जारी रखते होई कहा कि गुनाहों और ग़लतीयों का एतराफ़ करते होई तौबा के ज़रीया अपनेअर्हम उलराहमीन ख़ालिक़-ओ-माबूद हक़ीक़ी से यही मारूज़ा करता है कि इस को इस के गुनाहों की सज़ा से छुटकारा और रिहाई अता फ़र्मा दे जब कि मग़फ़िरत में यही मतलब और वज़ाहत के साथ है।
मग़फ़िरत चाहना गोया तालिब बख़शिश होना और जो कुछ गुनाह और ऐब हुए हैं उन की शौहरत ना होने के लिए मारूज़ा है यानी बंदा अपने मौला से इल्तिजा करता है कि वो अपने फ़ज़ल-ओ-करम से उसे रुसवा ना करे और इस के इस्याँ-ओ-मआइब की पर्दापोशी फ़रमाए। फिर रहमत मज़ीद के लिए बंदा की दुआएं गोया इस के अपने ख़ालिक़-ओ-रब पर ईमान-ए-कामिल और यक़ीन-ए-वासिक़ का तक़ाज़ा है। डाक्टरहमीद उद्दीन शरफ़ी ने कहा कि रमज़ान मुबारक के तीन दहिय इसी नवेद और ख़ुशख़बरी के साथ साया फ़िगन होते हैं कि बंदे अफ़व, मग़फ़िरत-ओ-नजात और रहमत बेपायाँ से मालामाल हो जाएं।
अल्लाह ताला ने अपने बंदों को ये मौक़ा फिर से इनायत फ़रमाया ही। अब ये हमारा काम है कि इस माह-ए-मुबारक की माबक़ी एक एक साअत को अल्लाह ताला की इताअत-ओ-इबादत, रसूल अल्लाह सिल्ली अल्लाह अलैहि-ओ-आला-ओ-सल्लम की संतों पर अमल पीराई फ़राइज़-ओ-वाजिबात की अदायगी और आमाल सालहा में गुज़ार कर सही माअनों में इस बा बरकत महीने की रहमतों और बरकतों से मालामाल हो जाएं ।
रोज़ा,नमाज़ ,तरावीह, तहज्जुद, क़ुरआन मजीद की तिलावत-ओ-समाअत के साथ सदक़ा-ओ-ख़ैरात, गरबा-ओ-मसाकीन के साथ दर्द मंदाना सुलूक और ग़मगुसारी , सच्चाई , हक़गोई, और अच्छे मुआमलात वजह रहमत-ओ-मग़फ़िरत-ओ-नजात हैं । हमेशा उन अख़लाक़हमीदा को अपनए रखें। इजलासों के आख़िर में बारगाह रसालतऐ में सलाम गुज़राना गया और रक्त अंगेज़ दुआएं की गईं।