इस्लाम को दरपेश चैलेंजस का जवाब देने उलूम दयनीय में महारत नागुज़ीर

हैदराबाद ०५ सितंबर : ( रास्त ) : इलम-ए-दीन का सीखना हर मुस्लमान पर लाज़िम है । ज़ाहिरी-ओ-बातिनी तरक़्क़ी इसी से वाबस्ता है । इलम-ए-दीन वो नेअमत लाज़वाल है कि जिस क़दर इसे हासिल किया जाय तलब में इज़ाफ़ा ही होता है । मुअल्लिम कायनात ई उलूम-ओ-मआरिफ़ का गंजीना , हिक्मत-ओ-दानिश का सरचश्मा हैं ।

आप को उलूम अव्वलीन-ओ-आख़रीन हासिल होने के बावजूद इलम में मज़ीद इज़ाफ़ा के लिए बारगाह एज़दी में अर्ज़ करते हैं । तर्जुमा : ए मेरे परवरदिगार ! मेरे इलम में इज़ाफ़ा फ़र्मा । ( सूरत ता 114 ) । इन हक़ायक़ का इज़हार मौलाना मुफ़्ती सय्यद ज़िया उद्दीन नक़्शबंदी ने अबवालहसनात इस्लामिक रिसर्च सैंटर के ज़ेर-ए-एहतिमाम हफ़तावारी तो सेवी लकचर में किया ।

उन्हों ने कहा कि इलम से बढ़ कर कोई दौलत नहीं , अगर इलम से अफ़ज़ल कोई नेअमत होती तो इस को तलब करने का हुक्म दिया जाता है । उन्हों ने कनज़ालामाल के हवाला से हदीस पाक ब्यान की कि हुज़ूर अकऱ् मुइ ने इरशाद फ़रमाया तुम आलिम बन जाऒ या इलम सीखने वाले या इलमी बातों को सुनने वाले या इलम से मुहब्बत करने वाले बन जाए और पांचवें शख़्स यानी जाहिल मत हो जाए ।

वर्ना हलाक-ओ-बर्बाद हो जाएगे । आज मुख़्तलिफ़ गोशों से इस्लाम पर कई एतराज़ात किए जा रहे हैं । इस्लाम को दरपेश चैलेंजस के जवाब केलिए उलूम दयनीय में महारत नागुज़ीर है । हमारे इस्लाफ़ ओलयाए-ओ-अइम्मा की सिर्फ इलमी जलालत को देख कर कई अफ़राद हलक़ाबगोश इस्लाम हुए ।

एक ग़ैर मुस्लिम ने इमाम मुहम्मद रहमता अल्लाह अलैहि की किताब का मुतालिबा किया , किताब में मौजूद अहकाम-ओ-मसाइल , इसरार-ओ-रमूज़ , हक़ायक़-ओ-नकात से जब आगही नसीब हुई तो ये कह कर मुशर्रफ़ बह इस्लाम होगया जब इमाम मुहम्मद , जो एक उम्मती हैं उन की किताब की ये शान है तो हज़रत मुहम्मद ई जो नबी हैं उन की किताब की क्या अज़मत होगी ।

इख़तताम पर मुफ़्ती साहिब ने आसाम और दीगर मुक़ामात के मुतास्सिर मुस्लमानों के लिए ख़ुसूसी दुआ की । मौलाना हाफ़िज़ सय्यद अहमद ग़ौरी ने निज़ामत की ।