क़लीज ख़ां बहादुर ईमानदारी , जानसारी , वफ़ादारी , अमानत-ओ-दियानतदारी की मिसाल

नुमाइंदा ख़ुसूसी
दीन-ओ-शरीयत , उल्मा किराम , बुज़्रगान-ए-दीन – , शारा-ए-, उदबा , मुसन्निफ़ीन और क़ौम-ओ-मिल्लत की ज़ी असर शख़्सियात की हयात-ओ-ख़िदमात और तारीख़ी कारनामों कोमहफ़ूज़ करने का जो सुनहरा सिलसिला क़ौम मुस्लिम में क़दीम ज़माने से पाया जाता है । दुनिया की दीगर अक़्वाम में हमें देखने को नहीं मिलता । ये मुस्लमानों का ही तरहइमतियाज़ है कि वो अपने अकाबिर और मुल्क-ओ-क़ौम के वफ़ादार खादिमों को हमेशा याद रखते हैं । दूसरी क़ौमों के अंदर अब इस हवाले से जो बेदारी नज़र आरही है ये मुस्लमानों की ही मरहून-ए-मिन्नत है ।

आज हम इसी सालिह रिवायत को आगे बढ़ाते हुए एक जानिसार दीन-ओ-मिल्लत , वफ़ादार क़ौम-ओ-मलिक और पहाड़ जैसी क़ुव्वत-ए-इरादीरखने वाली शख़्सियत का तआरुफ़ आप के सामने कराने जा रहे हैं । मुग़ल बादशाहऔरंगज़ेब आलमगीर के बारे में कौन नहीं जानता , जो ख़ुदा रसीदा , आदिल , मुंसिफ़ , रियाया प्रवर और बुलंद हौसला रखने वाले बादशाह थे । मुग़ल बादशाहों में इन का दौर सुनहरे बाब की हैसियत रखता है ।

आप से ज़्यादा मक़दीन , संत नबवी की पैरवी करने वाला कोई दूसरा मुग़ल बादशाह नहीं गुज़रा , और इसी दीनदारी का नतीजा था कि आप का अदल-ओ-इंसाफ़ मुल़्क की तमाम अक़्वाम के लिए बराबर था । अगरचे बाअज़ नापाक ज़हनीयत रखने वाले अनासिर ने आप की शबिया को नई नसल के सामने मसख़ कर के पेश करने की कोशिश की है । ताहम तारीख़ और हक़ायक़ को झटला या नहीं जा सकता ।औरंगज़ेब जैसे अलवा लाज़िम बादशाह ने अपनी फ़ौज का सूबेदार हाजी नवाब ख़्वाजाआबिद सिद्दीक़ी ख़ान उल-मुख़ातब बह चीन क़लीज ख़ां बहादुर को बनाया था ।

औरंगज़ेब के इंतिख़ाब से ही क़लीज ख़ां बहादुर की शख़्सियत का पता चलता है । आज हमारा मौज़ू भी उन्ही की ज़ात पर रोशनी डालना है । आप की दियानत-ओ-अमानतदारी , वफ़ादारी , आलीहिम्मती और शुजाअत-ओ-बहादुरी अपनी मिसाल आप था । आप निहायत ही ज़हीन , दूर रस , और मज़बूत क़ुव्वत-ए-इरादी के मालिक थे । आप पर शहनशाह औरंगज़ेबआलमगीरऒ को बहुत एतिमाद था ।

चुनांचे शहनशाह आलमगीर क़िला गोलकुंडा के दूसरे मुहासिरे 28 जनवरी 1687 -ए-मुताबिक़ 1098ह के मौक़ा पर अपने साथ लाई, इस मार्का में ख़्वाजा मीर आबिद अली ख़ां उल-मुख़ातब बह चीन क़लीज ख़ां बहादुर बहैसीयत सरदार फ़ौज आलमगीरी शरीक थी। मुहासिरे के दौरान क़िला गोलकुंडा से ज़ंबूरक की एक गोली क़लीज ख़ां के दाहिने शाने पर लगी जिस से उन का पूरा हाथ उड़ कर दूर जागरा और वो अपने ख़ेमा में वापिस आगई।

बादशाह आलमगीर ऒ ने अपने वज़ीर-ए-आज़म असदख़ान को उन की मिज़ाजपुर्सी केलिए भेजा तो उन्हों ने देखा कि जर्राह उन की टूटी हुई हड्डियां निकाल कर ज़ख़म सी रहा है और ये निहायत सब्र-ओ-इस्तिक़लाल से दूसरे हाथ से क़हवा पी रहे हैं और वज़ीर से जर्राह की तारीफ़ भी करते जा रहे हैं। हर चंद आप के मुआलिजा की तदाबीर की गईं, लेकिन ज़ख़म-ए-कारी होने की वजह से तीन दिन बाद 7 फरवरी 1687-ए-को आप ने रहलत फ़रमाई।

बादशाह औरंगज़ेब ऒ को आप की वफ़ात का बहुतसदमा हुआ और हुक्म दिया कि आप को इस मुक़ाम पर दफ़न किया जाय जहां आज आप का मज़ार ही। क़ारईन! चीन क़लीज ख़ां बहादुर ने जिस जवाँमरदी से मौत का मुक़ाबलाक्या इस का तज़किरा ज़बान ज़द ख़ास-ओ-आम होगया और आप निहायत माक़ूल औरसुलह कल का मिज़ाज रखते थे और सब आप का निहायत अदब-ओ-लिहाज़ किया करते थी, आप हैदराबाद की आसिफ़ जाहि बादशाहत के पहले आसिफ़ जाह निज़ाम उल-मलिक नवाब मीर क़मर उद्दीन ख़ां बहादुर के जद्द-ए-अमजद थी। आप की पैदाइश ली आबादनिज़द समरकंद में हुई, वहां से हिंदूस्तान हिज्रत करके आए और 1641-ए-में मुग़लबादशाहत के मुख़्तलिफ़ मनासिब पर ख़िदमत अंजाम दें।

चुनांचे सब से पहले शाहजहां ने आप को शाही मंसब पर फ़ाइज़ किया। 1667 ता 1672 अजमेर के और 1672 ता 1676 आप मुल्तान के सूबेदार रहे और 1676 ता 1680 को आप को अमीर हज मुक़र्रर किया गया। 1686 ता 1687 ज़फ़र आबाद बीदर के आप फ़ौजदार रहे और 1657 मैं अज़ीम ख़ान और 1680 मैं क़लीज ख़ान बहादुर का आप को लक़ब मिला, क़िला गोलकुंडा मुहासिरे के तीन दिन बाद 7 फ़बररी 1687 को आप का इंतिक़ाल हुआ।

आप का मज़ार शरीफ़ हिमायतसागर क़रीब क़िस्मत पर मैं वाक़्य ही। आप के मज़ार के आस पास इतने आराम-ओ- सुकून का माहौल है , जो कहीं और देखने को नहीं मिलता । यहां से निस्फ़ मेल केफ़ासिला पर आप का वो हाथ दफ़न है जो ज़ंबूरक की गोली लगने से उड़ गया था । आप का मज़ार शरीफ़ बहुत अच्छी हालत में है ।

वो लोग लायक़ तारीफ़ हैं जो इस मज़ार की देख रेख करते हैं । आप के मज़ार से मुत्तसिल एक मस्जिद भी है और आज भी आप के सिलसिला के हज़रात यहां हैं जिन के चेहरों से ईमानदारी , जानसारी , वफ़ादारी , अमानत-ओ-दियानत और अलवा लाज़मी ज़ाहिर होती है ।

क़ारईन हमें अपने बुज़ुर्गों को फ़रामोशनहीं करना चाहीए । हर किसी को चाहीए कि आप जैसे बहादुर सिपहसालार के मज़ारशरीफ़ की ज़यारत करें उन के लिए दाये मग़फ़िरत करें और आने वाली नसलों को उन सेवाक़िफ़ कराईं । आख़िर में हम आप की ख़िदमत में इस मज़ार शरीफ़ का वक़्फ़ रिकार्ड पेश करते हैं जो इस तरह है ।।/R: 493, 1) Dargah Hazrath Qulij Khan Sahab, 2) Two mosque, 3) sama khana with compaond inside abadi, manda-2, Rajendra Nagar, Village, Khismat pur, Area 6-24, acres 20m, gaz no date 6-a, dt 9-2-89. gaz no.3175.