हिंदूस्तान की आज़ादी में अंग्रेज़ उर्दू सहाफ़त, उर्दू शायरी, उर्दू मुक़र्ररीन-ओ-उर्दू नारों से ख़ौफ़ खाया करते थे । किसी गली, नुक्कड़, चौराहे या बाज़ार में इन्क़िलाब ज़िंदाबाद का नारा बुलंद होता तो अंग्रेज़ सिपाहीयों पर अजीब हैबत तारी होजाती। यहां तक कि इन इन्क़िलाबी नारों की गूंज से वो घोड़े भी बुदक जाते जिन पर अंग्रेज़ सवार होती। जब किसी मुक़ाम पर इन्क़िलाबी उर्दू नज़म पढ़ी जाती तो बलालहाज़ मज़हब-ओ-मिल्लत रंग-ओ-नसल हर हिंदूस्तानी के जिस्मों में आज़ादी की एक नई तवानाई पैदा होती।
उर्दू की ताक़त का अंदाज़ा इस बात से लगाया जा सकता है कि उर्दू अख़बारात में ईदारिया किसी चिड़िया या बुलबुल के इशक़ पर भी होता तो अंग्रेज़ उसे अपने ख़िलाफ़ मुहिब-ए-वतन हिंदूस्तानियों की साज़िश तसव्वुर करते और इस ईदारीए का बड़ी बारीकबीनी से जायज़ा लिया जाता। उर्दू से हिंदूस्तान के दुश्मनों अंग्रेज़ों को बहुत दुश्मनी-ओ-अदावत रही और आज़ादी के बाद फ़िकरो परस्त इस जाँबाज़ इन्क़िलाबी हरकियाती और मुर्दा दिलों में नई रूह फूंकने और ज़िंदगी की ताज़गी पैदा करनेवाली ज़बान के दुश्मन बिन गए हालाँक अक़ल के इन अंधों को इस बात का अच्छी तरह एहसास है कि शायर-ए-मशरिक़ अल्लामा इक़बाल ने जो सारे जहां से अच्छा हिंदूस्तान हमारा हम बुलबुलें हैं उस की ये गुलिस्तां हमारा लिखी इस तरह का तराना उर्दू के सिवा किसी ज़बान में नहीं लिखा जा सकता है।
आज़ादी के बाद ऐसा लगता है कि फ़िकरॊपरस्त विरासत के तौर पर ज़बान उर्दू के साथ दुश्मनी निभाए हुए हैं। यही वजह हीका हैदराबाद दक्कन जैसे इलाक़ा में जिसे उर्दू का मर्कज़ उर्दू की जान उर्दू की शान और उर्दू की आन कहा जाता है एक मंसूबा बंद साज़िश के ज़रीया उर्दू को मिटाया जा रहा है।
शहर हैदराबाद फ़िर्क़ा फ़र्ख़ंदा बुनियाद की बुनियाद भी उर्दू के बाइस ही मज़बूत-ओ-मुस्तहकम है। चप्पा चप्पा उर्दू की ख़ुशबू से मुअत्तर ही। मस्जिदों, मीनारों के इस शहर की हर क़दीम इमारत पर उर्दू कुतबे ज़रूर दिखाई देंगी, लेकिन अफ़सोस मुलक के दुश्मन अंग्रेज़ों की तरह उर्दू के दुश्मनों ने जो बदक़िस्मती से सरकारी मह्कमाजात में भी घुस पड़े हैं तास्सुब-ओ-जांबदारी का मुज़ाहरा करके उन तारीख़ी कुतबों के नाम निशान को मिटा रहे हैं।
ऐसा ही कुछ शहर के सब से क़दीम पुलिस स्टेशन चारमीनार में भी होरहा ही। 1847 में हैदराबाद सिटी पुलिस के क़ियाम के साथ ही शहर में आसफ़जाही हुकमरानों ने नफ़ाज़ क़ानून को अव्वलीन तर्जीह दी और इसवक़्त शहर के कमिशनर के ओहदों पर हैदराबाद सियोल सरवेस के ओहदेदारों का तक़र्रुर किया जाता था। चारमीनार पुलिस स्टेशन में शहर का कमिशनर जिसे कोतवाल कहा जाता था पन्ना इजलास मुनाक़िद किया करते थी।
यानी चारमीनार पुलिस स्टेशन से ही कोतवाल शहर में अमन-ओ-अमान की सूरत-ए-हाल का जायज़ा लिया करते थी। आज भी आप को चारमीनार पुलिस स्टेशन पर एक कुतबा ज़रूर नज़र आएगा जिसे देख कर ऐसा लगता हीका उर्दू दुश्मन ओहदेदार या मुलाज़मीन जानबूझ कर उसे मिटा रहे हैं। आहक पाशी और रंग-ओ-रोगन के ज़रीया इस कुतबा के वजूद को शहरयान हैदराबाद की नज़रों से ओझल किया जा रहा है। दरअसल इस कुतबा या तख़्ती पर कछरी सदर अमीन कोतवाली चारमीनार लिखा हुआ है लेकिन ओहदेदारों की ग़फ़लत और तसाहुल या फिर उर्दू दुश्मनी के नतीजा में उसे पढ़ना मुश्किल हो गया है।
तख़्ती के लफ़्ज़ों को मिटाने की भरपूर कोशिश की गई। क़ारईन हैदराबाद सिटी पुलिस में अब तक 52 कमिशनर इन ख़िदमात अंजाम दे चुके हैं। 184 में मुहम्मद वज़ीर जमादार को हैदराबाद का पहला पुलिस कमिशनर होने का एज़ाज़ हासिल ही। मौजूदा कमिशनर मिस्टर अनुराग शर्मा का 53 वां नंबर ही। 53 कमिशनर इन में8 कमिशनर मुस्लिम थी। आप को बतादें कि चारमीनार पुलिस स्टेशन की हाल में मुरम्मत की गई है और आहक पाशी, रंग-ओ-रोगन करके तज़ईन नौ के ज़रीया उसे जाज़िब-ए-नज़र बनादिया गया ही। चूँकि ये चारमीनार के बिल्कुल क़रीब है।
इस लिए सय्याहों की भी नज़रें पड़ती हैं। चारमीनार पुलिस स्टेशन से लेकर हैदराबाद की तक़रीबन आलीशान इमारतें और बेशतर आबपाशी पराजकटस मुस्लिम हुकमरानों की तामीरात की यादगारें हैं। चारमीनार पुलिस स्टेशन शहर का वो वाहिद पुलिस स्टेशन ही, जिस ने शहर की हर तबदीली का मुशाहिदा किया ही। उस की दरोदीवार इन शरपसंदों की शरपसंदी की गवाह हैं जिन्हों ने अपनी गंदी ज़हनीयत और फ़िर्क़ा पुरसताना सोच से इस शहर की गंगाजमनी तहज़ीब को मलियामेट करने की कोशिश की।
चारमीनार पुलिस स्टेशन की तख़्ती को मिटाने की जो कोशिश की गई है ओहदेदारों को उस की वज़ाहत करनी होगी कि आया ग़लती से ऐसा किया गया या फिर उर्दू दुश्मनों की ये कारस्तानी है क्योंकि उर्दू को मुस्लमानों से जोड़ने वाले नाआक़बत अंदेश अनासिर ने इस से क़बल उस्मानिया यूनीवर्सिटी, सिटी कॉलिज, मुदर्रिसा आलीया, महबोबीह कॉलिज-ओ-दवाख़ाना उस्मानिया, हाइकोर्ट, हिमायत सागर, उसमान सागर, पुराना पुल, मुस्लिम जंग प्ले के संग-ए-बुनियाद से लेकर नामों की तख़्तीयों को मुनज़्ज़म साज़िश के तहत मिटाने की कोशिश की और इन कोशिशों में कामयाब रही।
इस सिलसिला में बलदिया महिकमा पुलिस और महिकमा आसारे-ए-क़दीमा में मौजूद उर्दू दुश्मन ओहदेदारों का मुश्तबा किरदार रहा ही। वैसे भी समाज दुश्मन अनासिर से कहीं ज़्यादा उर्दू की ख़िदमत करने वाले इस हालत के ज़िम्मेदार हैं। हद तो ये हीका अपने नामों के साथ भी उर्दू को जोड़ लेते हैं और उर्दू के नामोनिशान को मिटाने की कोशिशों पर बेहिसी का मुज़ाहरा करते हैं। जब तक उर्दू वाले बेहिस रहेंगे हरकत में नहीं आयेंगे उस वक़्त तक उर्दू को मिटाने की कोशिश जारी रहेंगी। उर्दू के दुश्मन अनासिर को जान लेना चाहीए कि हर ज़बान प्यारी होती है मुहब्बत और इंसानियत का दरस देती है। इस लिए 7.7 मुलैय्यन नफ़ूस पर मुश्तमिल(मिला जुला) हमारे शहर में उर्दू का तहफ़्फ़ुज़(आरशण) हर शख़्स की ज़िम्मेदारी ही। abuaimalazad@gmail.com