तज़किया नफ़स के लिए इस्तिग़फ़ार की कसरत , मूजिब नजात

हैदराबाद । २४। अगस्त : ( रास्त ) : इरशाद रब्बी है कि जिस ने भी तज़किया की कोशिश की वो कामयाब हुआ । ( सूरत अल्लाअल्ला ) एक ज़ाहिरी पाकी है और दूसरे बातिनी पाकी है । ज़ाहिरी पाकी तहारत , वुज़ू और ग़ुसल से तकमील पाती है और बातिनीपाकी इस्तिग़फ़ार की कसरत से होती है ।

लिहाज़ा हर हाल में इंसान को चाहीए किइस्तिग़फ़ार करते रहें और साथ ही अपने सेना को कीना से , हसद-ओ-बुग़ज़ वानाद से दूर रखें । एक मोमिन दूसरे मोमिन का आईना होता है और मुहब्बत का तक़ाज़ा भी यही है कि बातिन से तमाम ग़लाज़त से पाक रखें । इन ख़्यालात का इज़हार मौलाना मुहम्मद मुबश्शिर अहमद रिज़वी उल-क़ादरी ने जामि मस्जिद सादिया हकीम पेट टोली चौकी और जामि मस्जिद क़ुतुब शाही अंदरून मिल्ट्री एरिया फ़रस्ट लांसरज़ मैं मुख़ातब करते हुए किया ।

मौलाना ने कहा कि ईद सईद के अज़ीमुश्शान लमहात जायज़ दुआओं की क़बूलीयत केलिए बेहतरीन ज़रीया है लिहाज़ा दुनिया की बेहतरी के साथ आख़िरत की बेहतरी की दुआएं की जाएं । अपने मूली की बारगाह में दस्त दुआ को दराज़ करते हुए दीन परइस्तिक़ामत , ईमान पर ख़ातमा , जन्नतुलबक़ी मैं मदफ़न और जन्नत-उल-फ़िरदौस में सरकार दो आलम ऐका क़ुरब मांगें ।

मौलाना रिज़वी ने बर्मा और आसाम के मुस्लमानों की बरबरीयत क़तल-ओ-ख़ून की दास्तान सुनाते हुए कहा कि यक़ीनन अनक़रीब इन का ख़ून रायगां नहीं जाएगा बल्कि मज़लूमों की आह-ओ-बका अपना असर दिखाएगी । और ज़माना में इन्क़िलाब आएगा । उन्हें सब्र-ओ-इस्तिक़ामत का पैकर बनना चाहिए । दुआ-ओ-सलाम पर ये नूरानी मुहाफ़िल का इख़तताम अमल में आया