हैद्राबाद 21 । सितंबर : शहर हैदराबाद फ़र्ख़ंदा बुनियाद पर हमेशा से ही अल्लाह अज़्ज़-ओ-जल का ख़ास रहम रहा है इस शहर को सदीयों क़बल ही से उल्मा-ओ-मशाइख़ीन का शहर कहा जाता रहा है । सरज़मीन हैदराबाद को इस बात का एज़ाज़ भी हासिल है कि उसे जहां जय्यद उल्मा-ओ-मशाइख़ीन ने अपना मस्कन बनाया वहीं अल्लाह के कई महबूब बंदों ने भी उसे पसंद फ़रमाते हुए उसे अपने फ़्यूज़-ओ-बरकात का मर्कज़ बनाया है ।
चुनांचे इस ज़मीन में ऐसे ओलयाए अल्लाह और बुज़्रगान-ए-दीन – आराम फ़र्मा रहे हैं जिन्हों ने इक़तिदार को अपनी ठोकरों पर रखा । इंसानियत की ख़िदमत की मुहब्बत का पयाम दिया । रोती बुलकती इंसानियत के आँसू पूछने अल्लाह की मख़लूक़ की भरपूर मदद की और अपने अल्लाह और रसूल ई की इत्तिबा की । इन के दिल और ज़बान हमेशा ज़िक्र अलहि में ग़र्क़ रहा करते थे उन की ज़बानों से निकला हुआ लफ़्ज़ हक़ीक़त की शक्ल इख़तियार कर जाता था । वो शरीयत पर सख़्ती से अमल करते हुए तरीक़त की मनाज़िल तै किया करते थे ।
बंदगान ख़ुदा की ख़िदमत को वो अव्वलीन तर्जीह देते थे उन के द्रपुर पहूंचने वाला ख़ाली हाथ वापिस नहीं होता था । ख़ुद ना खाते दूसरे को खुला देते फ़क़ीरों में रहते ग़रीबों से प्यार करते ख़ास-ओ-आम इन बुज़ुर्गों की सोहबत से फ़ैज़याब होने के लिए बेचैन रहते इन में हुक्मराँ वक़्त भी होते । ख़ानवादा शाही के अरकान भी होते ग़रीब भी होते और अमीर भी लेकिन वो हर किसी को कुछ ना कुछ दे ही देते और उन बुज़्रगान-ए-दीन – के रहलत फ़र्मा जाने के बावजूद आज भी उन के मज़ारात मरज्जा ख़लाइक़ बने हुए हैं । लोग उन की मज़ारों पर हाज़िरी देते हुए फ़्यूज़-ओ-बरकात हासिल करते हैं । अल्लाह के ऐसे ही महबूब बंदों में हज़रत शाह मुहम्मद क़ासिम उल-मारूफ़ शेख़ जी हाली साहिब क़बलहऒ अबवालालाई भी शामिल हैं । आप के वालिद माजिद हज़रत ग़ुलाम मुहम्मद हज़रत ख़्वाजा अबदुल्लाह अनसारीऒ की औलाद में थे ।
हज़रत-ए-शैख़ जी हालीऒ की विलादत 1175 हमें जनहझोनों राजिस्थान में हुई दरबार शाही में आपऒ के वालिद बुजु़र्गवार की काफ़ी क़दर-ओ-मंजिलत थी चुनांचे सरकार से मंसब माहाना जारी हुआ । आप की उम्र 14 साल की ही थी कि आप के वालिद साहिब क़िबला ने अपने पैर-ओ-मुर्शिद हज़रत इज़्ज़त उल्लाह शाह अबवालालाईऒ उर्फ़ मियां साहिब की ख़िदमत में अर्ज़ किया कि इस बंदाज़ादा को भी अपनी गु़लामी में क़बूल फ़रमाएं जिस पर हज़रत मियां साहबऒ ने आप को दाख़िल सिलसिला फ़र्मा कर तालीम माअनवी और तवज्जा ऐनी से सरफ़राज़ फ़रमाया और मुद्दा राज सुलूक तै करवाते रहे ।
हज़रत-ए-शैख़ जी हाली क़बलहऒ जंगल-ओ-सहरा में गशत फ़रमाते हुए ज़िक्र-ओ-शगल में मसरूफ़ रहते थे और मुजाहिदा में एक मुद्दत गुज़ारी और अपने पैर की ख़ुसूसी तर्बीयत की वजह से बहुत जल्द कमाल को पहूंचे । क़ारईन हज़रत शाह मुहम्मद क़ासिम उल-मारूफ़ शेख़ जी हाली साहिब क़िबला अबवालालाई ऒ अपने पैर-ओ-मुर्शिद की हिदायत पर हैदराबाद का रुख किया और अपने वजूद से इस सरज़मीन को इज़्ज़त बख़शी ।
आप के पैर-ओ-मुर्शिद ने आप को दक्कन जाकर अबवालालाई फ़ैज़ से तालिबान हक़ को सेराब करने की हिदायत फ़रमाई । चुनांचे हज़रत क़िबला आसिफ़ जाह सानी के दौर में हैदराबाद तशरीफ़ लाए और मंडी मीर आलम के क़रीब कमान एलची बैग में क़ियाम फ़रमाया कुछ अर्सा बाद नवाब ताड़बन सुलतान नवाज़ उल-मलिक के हाँ सिपाही की हैसियत से मुलाज़िम होगए और निस्फ़ तनख़्वाह मुक़र्रर करवाई क्यों कि दिन के वक़्त मुलाज़मत करते और रात को मशग़ूल ज़िक्र-ओ-शगल रहते । बहरहाल ख़ुद को छिपाने और ज़ाहिर ना करने की लाख कोशिशों के बावजूद बंदगान ख़ुदा की नज़र आप पर पड़ ही गई और देखते ही देखते दक्कन में सिलसिला अबवालालाईआ का फ़ैज़ पूरी आब-ओ-ताब के साथ जारी हुआ और अल्लाह की मख़लूक़ इस से फ़ैज़ हासिल करती रही जिस का सिलसिला आज तक जारी है ।
आप की मज़ार मुबारक उर्दू शरीफ़ अक़ब पत्थर गिट्टी पर वाक़्य है । अगर किसी ने दरगाह हज़रत शाह मुहम्मद क़ासिम उल-मारूफ़ शेख़ जी हाली साहिब क़िबला अबवालालाईऒ पर हाज़िरी ना दी दरगाह की ज़यारत की सआदत हासिल करने से महरूम रहा तो समझिए कि इस ने हैदराबाद और इस की ख़ूबसूरती को देखा ही नहीं ।
आम तौर पर मक़बरा पाईगाह को हैदराबाद का ताज महल कहा जाता है क्यों कि इस मक़बरा में पत्थर पर जो नक़्श-ओ-निगार का इंतिहाई नाज़ुक काम किया गया था वो देखने से ताल्लुक़ रखता है । उसे माहिरीन फ़न तामीर का शाहकार क़रार देते हैं इसी तरह दरगाह हज़रत शाह मुहम्मद क़ासिम उल-मारूफ़ शेख़ जी हाली साहिब क़िबला अबवालालाईऒ को भी फ़न तामीर का शाहकार कहा जा सकता है ।
मज़ार शरीफ़ के अतराफ़ संगमरमर की जो जालियां नसब की गईं हैं उसे देख कर हर कोई दंग रह जाता है । कारीगरों ने जिस महारत से ये नाज़ुक काम अंजाम दिया है इस का तसव्वुर कर के ही उन की महारत को सलाम करने को जी चाहता है । संगमरमर पर किया गया नाज़ुक-ओ-ग़ैरमामूली काम देखने से ताल्लुक़ रखता है । हज़रत-ए-शैख़ जी हालीऒ को क़व्वाली से बहुत शग़फ़ था और वज्द में आ जाया करते थे इस लिए समाव ख़ाना भी दरगाह के क़रीब तामीर करवाया गया है ।
समाव ख़ाना भी बहुत ख़ूबसूरत बनाया गया है । हम दावा से कह सकते हैं कि दरगाह शरीफ़ के अतराफ़ लगाई गई संगमरमर की जालियों पर एक मर्तबा किसी की नज़र पड़ जाय तो उसे वो देखता ही रह जाएगा । आज के कम्पयूटर के दौर में भी इस किस्म के बारीक डिज़ाइन का तसव्वुर भी मुहाल नज़र आता है ।
मारवाड़ियों के मकानात-ओ-दुक्का नात में घिरी इस दरगाह शरीफ़ पर लोग हाज़िरी देते रहते हैं । बुला लिहाज़ मज़हब-ओ-मिल्लत अवाम आज भी हज़रत से फ़्यूज़-ओ-बरकात हासिल कररहे हैं । इस दरगाह की अहम बात ये है कि इस पर कोई छत नहीं है । दरगाह के साथ एक ख़ूबसूरत मस्जिद भी तामीर की गई है । ये दरगाह दर्ज वक़्फ़ है जिस का रिकार्ड इस तरह है हैदराबाद / 2399 दरगाह हज़रत शाह मुहम्मद क़ासिम शेख़ जी हालीऒ अबवालालाई मआ मस्जिद-ओ-समाव ख़ाना (36) (S) उर्दू शरीफ़ वार्ड नंबर (21) , रकबा 2651.3 मुरब्बा गज़ गज़्ट 6A सीरीयल नंबर 2391 गज़्ट मौरर्ख़ा 09-02-1989 इस दरगाह शरीफ़ की ख़ूबसूरती से उर्दू शरीफ़ के अतराफ़ रहने वाले मारवाड़ी बिरादरी भी काफ़ी मुतास्सिर है अक्सर-ओ-बेशतर ग़ैर मुस्लिम भी दरगाह शरीफ़ पर हाज़िरी देते हुए गुलहाए अक़ीदत पेश करते हैं । हज़रत के बारे में आम था कि वो साहिब करामत बुज़ुर्ग हैं चुनांचे आप से कई करामात का ज़हूर हुआ सब से बड़ी करामत ये है कि दक्कन में सिलसिला अबवालालाई की रोशनी पूरी आब-ओ-ताब के ज़रीया चमक रही है और तरीक़त का उजाला फैला रही है । आप को बतादें कि दक्कन के कई जय्यद उल्मा हज़रत के मर यदैन में शामिल थे । हज़रत क़िबला का विसाल 29 रबी एलिसानी 1238 हम 31 जनवरी 1823 को 63 साल की उम्र में आप ही के मकान में हुआ और खुली ज़मीन पर आप का मज़ार मुबारक तामीर किया गया ।
विसाल से क़बल ही आपऒ ने अपने हक़ीक़ी भांजे हज़रत उम्र अली शाह अबवालालाई नक़्शबंदी को अपना जांनशीन मुक़र्रर किया और उन के ख़ानदान में मौजूदा सज्जादा नशीन हज़रत सूफ़ी शाह मुहम्मद मुज़फ़्फ़र अली अबवालालाई वलद हज़रत मौलाना सूफ़ी शाह मुहम्मद साबिर अली साहिब क़िबला अबवालालाईऒ हैं ।
हम ने जिस संगमरमर की जाली और इस की ख़ूबसूरती का ज़िक्र किया है वो हज़रत-ए-शैख़ जी हालीऒ के जांनशीन हज़रत सय्यद उम्र अली शाह साहिब क़िबला ने राजिस्थान के मुस्कुराना से मंगवा कर दरगाह शरीफ़ के अतराफ़ नसब करवाई थी । ये जाली अपनी ख़ूबसूरती की मिसाल आप है । हम इसी लिए कहते हैं कि जिस ने दरगाह हज़रत-ए-शैख़ जी हाली पर हाज़िरी नहीं दी इस ने हैदराबाद ही नहीं देखा ।।