हैदराबाद 29 जनवरी : फिल्मों में मुस्लमानों को दहश्तगर्द के तौर पर पेश करना एक रिवायत बिन चुकी है। कमल हासन की फ़िल्म विश्वा रूपम भी उसी की एक मिसाल है जहां मुस्लिम फ़िर्क़ा को मनफ़ी अंदाज़ में पेश करने की कोशिश की गई है। आम तौर पर ये देखा जा रहा है कि फिल्मों में मुस्लमान को करता पाएजामा में मलबूस दिखाया जाता है और वो इंशाअल्लाह, माशा अल्लाह जैसे अलफ़ाज़ इस्तिमाल करता है।
इन किरदारों को सिर्फ़ दहश्तगर्दी से मरबूत सरगर्मीयों तक रखा जाता है जिस से ये तास्सुर मिलता है कि तमाम मुस्लमान इसी ज़हनीयत के होते हैं। पापूलर फ्रंट आफ़ इंडिया ने हिंदूस्तानी सिनेमा में मुस्लमानों की किरदार कुशी के ख़िलाफ़ शदीद एहतिजाज किया है। पापूलर फ्रंट आफ़ इंडिया के जनाब फ़ख़्रउद्दीन भी इन मुंख़बा मुस्लिम शख़्सियतों में शामिल हैं जिन के लिए इस फ़िल्म की ख़ुसूसी नुमाइश का एहतिमाम किया गया था।
उन्हों ने ये राय दी कि ये फ़िल्म मुख़ालिफ़ मुस्लिम है। जनरल सैक्रेटरी सी एफ़ ईल मिस्टर हुस्न शेख़ ने भी इस फ़िल्म की सख़्त मुज़म्मत की। कमल हासन ने इस फ़िल्म में रा एजैंट का रोल अदा किया है जो हिंदूस्तान से दहश्तगर्दी के ख़ातमा का ख़ाहां है। इस फ़िल्म में कश्मीरी दहश्तगर्दी को नुमायां करने की कोशिश की गई है।
जनरल सैक्रेटरी पापूलर फ्रंट आफ़ इंडिया आंधरा प्रदेश मिस्टर मुहम्मद आरिफ़ अहमद ने कहा कि फिल्मों के ताल्लुक़ से संसर बोर्ड की रहनुमा या ना हिदायात मौजूद हैं लेकिन आम तौर पर उन्हें नजरअंदाज़ किया जा रहा है। उन्हों ने इस फ़िल्म पर इमतिना का मुतालिबा किया और सेंसर बोर्ड पर ज़ोर दिया कि वो बिलख़सूस ऐसी फिल्मों पर नज़र रखे जिन में मुस्लमानों को मनफ़ी (मिटाया हुआ)अंदाज़ में पेश किया जाता है।
इस फ़िल्म के ख़िलाफ़ एहितजाजी मुज़ाहरा भी किया गया।