मसाजिद के अतराफ़ कचरा ,कीचड़, गंदगी, बलदिया की लापरवाही

हैदराबाद २१जुलाई ( सियासत न्यूज़ ) मुस्लमान माहे सियाम की आमद से क़बल इस के इस्तिक़बाल और इस से मुस्तफ़ीद होने की फ़िक्र में जुट जाते हैं । ताजरीन अपने कारोबारी इदारों दफ़ातिर के इलावा घरों की सफ़ाई आहक पाशी और पुररौनक़ बनाने की तैय्यारीयां करते हैं और मसाजिद में ख़ुसूसी तौर पर इंतिज़ामात किए जाते हैं ताकि मुस्लियों को कोई तकलीफ़ ना पेश आए और हर तरह की रूकावट को दूर करने की पुरजोश-ओ-कामयाब कोशिशें की जाती हैं ।

अक्सर ऐसे मसाजिद हैं जहां हर साल रमज़ानके मौक़ा पर किसी ना किसी चीज़ का इज़ाफ़ा किया जाता है कि नाका बड़ी तादाद में आने वाले मुस्लियों को राहत फ़राहम की जाय । इस माह-ए-मुबारक के बाबरकत मौक़ा पर अगर किसी को मस्जिद जाने में तकलीफ़ हो या फिर मस्जिद के रास्ता में गंदगी हो मुस्लियों को परेशानी हो तो फिर क्या तसव्वुर किया जाय और किस को क़सूरवार माना जाय , और इस का ज़िम्मेदार किस को ठहराया जाय । क़ज़बात और देहातों में तो ख़ुसूसी तौर पर पंचायत की जानिब से मसाजिद के रास्तों की सफ़ाई के इक़दामात किए जाते हैं लेकिन अफ़सोस के शहर बिलख़सूस पुराने शहर के दो इलाक़ा ऐसे हैं जहां भी सड़कमसाजिद के रास्तों का हाल ब्यान के बाहर हैं ।

मस्जिद इबराहीम ख़लील-उल-ल्लाह बहादुर पूरा और मस्जिद मशक पुराना पुल के रास्ता इन दिनों अपनी बेबसी की मुंह बोलती तस्वीर बने हुए हैं । जहां कचरे के अंबार सड़क पर पानी जमा हुआ और कीचड़ से राहगीरों को मुश्किलात का सामना करना पड़ रहा है । इन मसाजिद में दाख़िला के लिए मुस्लियों को इस रास्ता से गुज़रना पड़ता है । जहां ज़ईफ़-उल-उमर मुस्लियों को फिसल कर गिरने का ख़ौफ़ लगा रहता है ।

उन रास्तों को देखा जाय और इस का मुशाहिदा किया जाय तो नौजवान केलिए भी इन रास्तों पर चलना मुश्किल है और अगर कोई इस रास्ता को उबूरभी कर लेता है तो रास्ता की गंदगी से उसे मुश्किलात पेश आती हैं । अक्सर शहरियों बिलख़सूस इन मसाजिद के मुस्तक़िल मुस्लियों और रास्ता चलने वाले मुस्लियों का कहना है कि मसाजिद में जो कमेटी रहती है इस की ज़िम्मेदारी होती है कि वो मस्जिद के अंदरूनी हिस्सा और इंतिज़ामात के इलावा बैरून हिस्सा पर भी तवज्जा दें ।

शहरीयों ने कहा कि अगर इस रास्ता पर बलदिया की जानिब से तवज्जा नहीं दी जाती है तो इस का कौन ज़िम्मेदार है । अगर कोई कारोबार के लिए इस सड़क को इस्तिमाल करे तो बलदिया और पुलिस फ़ौरी हरकत में आजाते हैं और मुक़ामी लीडर भी मुदाख़िलत करने लगते हैं । कोई मदद के लिए तो कोई मामूल केलिए पहल करता है ।

लेकिन मस्जिद जैसे मुक़द्दस मुक़ाम के रास्ता पर सफ़ाई का ना होना और किसी की जानिब से पहल ना करना मानी ख़ेज़ साबित होगया है ।