क्यूँ शाख पे बैठे हो उड़ क्यूँ नहीं जाते,
ऐ वादा फरामोश सुधर क्युँ नहीं जाते।
कब से बैठे हो मेरी घर की चोखट पे,
किस नगरी से आये हो घर क्युँ नहीं जाते।
मैं तो ग़म-ए-तन्हाई में हूँ खामोश बैठा,
ऐ बादलो गरजते क्युँ हो बरस क्युँ नहीं जाते।
अब तो ये आलम है दीवानगी में ऐ दोस्त,
कहती है दुनिया कब तक जिओगे मर क्युँ नहीं जाते।