मेरा वजूद ज़ख़मों से चूर, महिकमा आसारे-ए-क़दीमा (अवशेष‌)ख़ामोश क्यों?

हैदराबाद ०५ नवंबर : मैं चारमीनार हूँ, दुनिया में मस्जिदों , मीनारों, कमानों, बाग़ों, दीवढ़ीयों, महलात, तारीख़ी-ओ-फ़न तामीर की शाहकार इमारतों और गंगा जमुनी तहज़ीब(इज़्ज़त‌) के लिए मशहूर शहर हैदराबाद की मुझे पहचान क़रार दिया जाता हैं। मेरे कद्रदां मुझे इस शहर का वक़ार उस की शान और उस की अलामत का भी नाम देते हैं। दुनिया भर के सय्याह मुझे देख कर हैरत में ग़र्क़ हो जाते हैं और उन की उंगलियां कैमरों के टीनों पर बेसाख़ता चलने लगती हैं और फिर मेरी तसावीर(छवि) को दौरा हैदराबाद की यादगार के तौर पर वो क़ैद कर लेते हैं।

मैंने जहां क़ुतुब शाहों का अज़ीमुश्शान दौर देखा वहीं आसफ़जाही हुकमरानों की दरिया दिल्ली बला लिहाज़ मज़हब-ओ-मिल्लत रंग-ओ-नसल अपनी रियाया से उन की मुहब्बत, ख़ुदातरसी, आलिमों-ओ-दानिश्वरों की क़दरदानी का भी मुशाहिदा किया ही। मेरे बाज़ू से उन समाज दुश्मन अनासिर का गुज़र होता है जो मेरे ख़ूबसूरत शहर की फ़िज़ा को अपने स्याह करतूतों के ज़रीया बिगाड़ने की कोशिश करते हैं ।यही वजह है कि वो मेरे वजूद को नुक़्सान पहुंचाने के दर्पा रहते हैं। हालाँकि मेरा वजूद ही उस रब ज़ूलजलाल की ख़ुशनुदी हासिल करने अमल में लाया गया था जिस ने इस शहर फ़र्ख़ंदा बुनियाद पर हमेशा अपना रहम-ओ-करम फ़रमाया। कभी प्लेग जैसी जान लेवा बीमारी से इस शहर की हिफ़ाज़त की तो कभी फ़िर्क़ा परस्तों के शहर को तबाह करने के मंसूबों(योजना) को ख़ाक में मिला दिया। इस शहर पर अल्लाह ताला का ख़ास रहम-ओ-करम है।

में चारमीनार हैदराबाद में मुहसिन इंसानियत रहमৃ अललालमीन आक़ाए नामदार सिल्ली अल्लाह अलैहि-ओ-सल्लम की शान-ए-अक़्दस में होने वाली मुबारक-ओ-बाबरकत महफ़िलों का भी गवाह हूँ , अहलबीत अतहारओ-ओ-सहाबहओ से अवाम की अक़ीदत पर रशक करता हूँ। अवाम जिस अंदाज़ में ईद-ओ-तहवार मनाते हैं उसे देख कर मेरा वजूद ख़ुशी से सरशार हो जाता है। क़ारईन में आप को बतादूं कि क़ुतुब शाही हुक्मराँ सुलतान मुहम्मद क़ुली क़ुतुब शाह ने गोलकुंडा से अपना दार-उल-हकूमत हैदराबाद मुंतक़िल किया था। उस वक़्त शहर में प्लेग की वबा फैली हुई थी।

शहरीयों की ज़िंदगीयों को ख़तरा था । रियाया परेशान थी। बादशाह रियाया की फ़िक्र पर बेचैन-ओ-बेक़रार हो उठे । मैंने देखा कि ख़ुदातरस नेक दिल रियाया प्रवर बादशाह सुलतान मुहम्मद क़ुली क़ुतुब शाह ने अपने हाथ उठाए बारगाह-ए-रब अलाज़त में दुआ की ए मेरे रब ज़ूलजलाल आप रहीम-ओ-करीम हैं, शाफ़ी हैं, अपने बंदों से 70 माओं से ज़्यादा मुहब्बत रखते हैं, मेरे शहर के लोगां पर रहम-ओ-करम फ़रमईए उनहीं प्लेग की वबा से महफ़ूज़ रखिओ । इस बादशाह ने बारगाह रब अलाज़त में ये भी मिन्नत की कि प्लेग की वबा-ए-शहर से चली जाये तो वो शहर के वस्त में एक आलीशान मस्जिद तामीर करेंगी। अल्लाह अज़्ज़-ओ-जल ने अपने बंदा की दुआ-ओ-मिन्नत को क़बूल किया और शहर प्लेग से महफ़ूज़ रहा। सुलतान मुहम्मद क़ुली क़ुतुब शाह ने अल्लाह ताला का शुक्र अदा करते हुए 1590 में मिन्नत के मुताबिक़(अनुसार‌) चार मीनारों वाली एक अज़ीमुश्शान मस्जिद की तामीर शुरू करदी और आज दुनिया में ये चार मीनारों वाली मस्जिद चारमीनार की हैसियत से जानी जाती है।

हाँ &!! में वही चारमीनार हूँ, मेरी बुलंदी 160 फ़ुट ही। सुलतान मुहम्मद क़ुली क़ुतुब शाह हमेशा मेरी दुआओं में होते हैं। उन्हों ने मेरे वजूद की पहली मंज़िल पुर मुदर्रिसा और तलबा के लिए दार-उल-अक़ामा क़ायम किया और दूसरी मंज़िल पर मस्जिद की तामीर अमल में लाई। मुदर्रिसा और मस्जिद के बाइस मेरा वजूद पाकी के एहसास से मुअत्तर रहा करता। मस्जिद में इमाम-ओ-मोज़न के लिए कमरे तामीर करवाए गए । मस्जिद के अंदरूनी हिस्सा में तीन सफ़ों में 66 मुस्लियों की गुंजाइश रखी गई और सहन को मिलाकर जुमला 260 मुसल्ली बह आसानी नमाज़ अदा करसकते थी। 149 सीढ़ीयों पर चढ़ कर मुसल्ली मस्जिद ॓ते थी। आप को ये भी बतादूं कि तामीर (बनावट‌) गुच्ची और दीगर कीमीयाई अशीया से की गई, मेरी तामीर(बनावट‌) पर उस वक़्त 9 लाख रुपय के मसारिफ़ आए थे लेकिन सुलतान मुहम्मद क़ुली क़ुतुब शाह मुझे देख कर ख़ुश होजाया करते थी।

यही हाल आसफ़जाही हुकमरानों का था। उन्हें शहर के बेचों बीच मेरे वजूद पर फ़ख़र हुआ करता था लेकिन 1950 -ए-के बाद सब कुछ बदल गया। मेरे दामन को सुनसान करने की कोशिशों का आग़ाज़ कर दिया गया और मस्जिद में मुस्लियों की आमद रोक दी गई। यहां तक कि मेरे दामन को ज़ख़मी करना शुरू कर दिया गया और बार बार पहुंचाए गए ज़ख़मों के बावजूद में सब कुछ बर्दाश्त करता रहा। कभी मेरे वजूद पर पत्थर रखते हुए ज़क पहूँचा या गया तो कभी इस पत्थर से मेरे वजूद पर दाग़ लगाया गया। अब हाल ये है कि बरसर-ए-आम मेरे जिस्म को खोद खोद कर छलनी किया जा रहा ही। जालियां नसब की गईं में तड़प कर रह गया , अब मेरे जिस्म पर सिब्बल लगाया गया, में चीख़ रहा हूँ , पुकार रहा हूँ लेकिन कोई मेरी सुनने वाला नहीं।

महिकमा आसारे-ए-क़दीमा (अवशेष‌) ने मेरी हिफ़ाज़त को यक़ीनी बनाने का वाअदा किया था लेकिन मेरी तबाही पर वो मुजरिमाना ख़ामोशी इख़तियार किए हुए ही। लगता है कि आसारे-ए-क़दीमा से मुझे ग्रेड वन दर्जा के बावजूद इस के ओहदेदार अंधे बहरे और गूंगे हो गए हैं। उन्हें मेरी तबाही नज़र ही नहीं आती। मेरे दामन के किनारे एक गै़रक़ानूनी ढांचा तामीर कर दिया गया, में ख़ामोश रहा, मेरे जिस्म को छेदा गया मैंने आवाज़ नहीं की।

मेरी बुनियाद को ख़ामोशी से-ओ-अय्यारी से खोदा गया में दर्द से तिलमिला उठा लेकिन तीन दिन क़बल रात के तारीकी में पुलिस के फ़र्ज़शनास अमला की मौजूदगी में सूराख़ किया गया लक्कड़ी के बिल्लियां बांध दी गईं और गै़रक़ानूनी तौर पर तामीर मंदिर पर शैड डाला जा रहा था उस शैड को मज़बूत बनाने मेरे रोशनदान को मुनहदिम कर दिया गया। 2×1 फ़ुट के रोशनदान में सुलतान मुहम्मद क़ुली क़ुतुब शाह की हिदायत पर जाली लगाई गई थी और उस की तैय्यारी में गुच्ची और पत्थर का इस्तिमाल किया गया था लेकिन मेरे और अमन बल्कि मुलक के दुश्मनों ने हथौड़ों और सिब्बल से इस जाली को तोड़ दिया। में ये पूछना चाहता हूँ कि क्या मेरी तबाही महिकमा आसारे-ए-क़दीमा को नज़र नहीं आती।

हालाँकि बैन-उल-अक़वामी इदारा लोनली प्लानेट ने मेरे शहर को दुनिया का बेहतरीन शहर क़रार दिया ही। हैदराबाद आते ही लोगों के ज़हनों में मेरा नाम ज़रूर आता ही। मेरी झलक देखने वो दौड़े चले आते हैं। महिकमा आसारे-ए-क़दीमा ने मेरे क़रीब में एक बोर्ड आवेज़ां किया है जिस पर अंग्रेज़ी, हिन्दी और तलगो में लिखा हुआ है कि चारमीनार मुलक के अहम तरीन आसारे-ए-क़दीमा में एक है और इस के अतराफ़ 100 मीटर तक कोई तामीर(बनावट‌) या खुदाई नहीं की जा सकती जबकि 200 मीटर फ़ासले पर तामीर के लिए भी महिकमा आसारे-ए-क़दीमा(अवशेष‌) से इजाज़त ज़रूरी है।

लेकिन मंदिर के लिए मेरे वजूद से छेड़छाड़ की गई और गै़रक़ानूनी-ओ-नाजायज़ तौर पर मुझे नुक़्सान पहुंचाया गया फिर भी महिकमा आसारे-ए-क़दीमा ख़ामोश है इस में ख़ातियों के ख़िलाफ़ मुक़द्दमात दर्ज करने की हिम्मत तक नहीं। कल ही आलमी इदारा यूनेस्को ओहदेदारों ने मेरा मुशाहिदा (निरीशण‌)क्या वो क्या तास्सुर लेकर वापिस हुए होंगी। में चाहता हूँ कि आसारे-ए-क़दीमा मेरे मुजरिमीन को माफ़ ना करे उनहीं कैफ़र-ए-किरदार तक पहुंचाए वर्ना में समझूंगा कि जमहूरीयत के दौर में मेरे साथ सिर्फ़ इस लिए तास्सुब बरता गया क्योंकि मुझे एक मुस्लिम हुक्मराँ ने तामीर किया।