यादगार खिताबात

हैदराबाद ०७। अगस्त : ( प्रैस नोटिस ) : नुज़ूल क़ुरआन मजीद और फ़रीज़ा सोम का मुक़द्दस और बाबरकत महीना रमज़ान मुबारक अहल ईमान को इबादतों में ज़्यादती, ज़िक्र-ओ-तस्बीह, तिलावत-ओ-समाअत क़ुरआन मजीद में मज़ीद इन्हिमाक, आमाल ख़ैर की कसरत और मख़लूक़ की ख़िदमत में इज़ाफ़ा की हिदायात ख़ास के साथ साया फ़िगन है। अक्ल-ओ-शरब-ओ-जमा से औक़ात रोज़ा मैं इजतिनाब की तरह तमाम बुराईयों और ममनूआत से दाइमन दूर रहना रोज़ा का मंशा-ए-ओ- मक़सद है।

नमाज़ तरावीह इस माह-ए-मुबारक की ख़ुसूसी इबादत है जो संत मोकदा और हर मुस्लमान के लिए इस का अदा करना ज़रूरी ही। रमज़ान शरीफ़ में सुबह सादिक़ से ग़ुरूब आफ़ताब तक जिस तरह खानी, पानी पीने और क़ुरबत ख़ास से रुके रहना इबादत और बाइस अज्र ख़ास है इसी तरह रात में इन तमाम उमूर की रुख़स्त-ओ-इजाज़त अल्लाह की रहमत है उमम साबिक़ा सहरी सेमहरूम थीं लेकिन उम्मत महमदऐईह को सहरी के खाने और हुसूल बरकात का मौक़ाइनायत रब्बानी है रसूल अललहऐ ने इरशाद फ़रमाया कि हमारे और अहल-ए-किताब के रोज़ों में सहरी के लुक़्मे फ़र्क़ हैं। वक़्त पूरा हो जाने के बाद इफ़तार में उजलत भलाई की अलामत-ओ-ज़मानत है। बवक़्त इफ़तार रोज़ादार की दुआ रद्द नहीं होती।

रमज़ान मुबारक में शब क़दर ऐसी अज़ीम-ओ-मुकर्रम रात है जिसे एक हज़ार महीनों से ज़्यादा अफ़ज़लबना दिया गया क्यों कि इस शब मुबारका में ख़ालिक़ कौनैन ने अपना कलाम हक़ नाज़िलफ़रमाया और रसूल अल्लाह ऐने ये नवेद सरफ़राज़ फ़रमाई कि जिस शख़्स ने शब क़दर में ईमान-ओ-इख़लास के साथ इबादत की तो अल्लाह ताला इस के पिछले गुनाहों को बख़शदेता है और अपने बंदों पर उस रात ख़ास तवज्जा और निगाह रहमत फ़रमाता है।

नमाज़ और रोज़ा बदनी और ज़कात माली इबादत है माहे सियाम में मोमिन बंदों को इन तमाम इबादतों की सआदत एक साथ नसीब होती है।डाक्टर सय्यद मुहम्मद हमीद उद्दीन शरफ़ी डायरेक्टर आई हरक ने रमज़ान मुबारक के रूह प्रवर और नूरानी माहौल में 15 रमज़ान उल-मुबारक को ढाई बजे दिन जामि मस्जिद उसमान गंज, 16रमज़ान उल-मुबारक को 4साअत शाम मस्जिद दरगाह यवसफ़ीनऒ और बाद नमाज़ अस्र हमीदिया शरफ़ी चमन में रोज़ादार मुस्लिमो के नुमाइंदा इजतिमा से ख़िताब की सआदत हासिल करते होई इन हक़ायक़ का इज़हार किया।

वो इस्लामिक हिस्ट्री रिसर्च कौंसल इंडिया (आई हरक) कीहज़रत ताज अलारफ़ाइऒ यादगार ख़ताबात के सोलहवीं साल के 15 वें और 16 वीं रोज़ के इजलासों से ख़िताब कर रहे थे जो करा-ए-त कलाम पाक से शुरू होई। बारगाह शहनशाहकौनैन ऐमीं हदया नाअत पेश की गई। डाक्टर हमीद उद्दीन शरफ़ी ने ज़कात के अहममसाइल ब्यान करते होई वाज़िह किया कि इन्फ़ाक़ और मदात ख़ैर के ज़िमन में हाजतमंदअक़रबा-ए-हर तरह काबिल-ए-तरजीह हैं जिस से दोहरा अज्र-ओ-सवाब मिलता ही। एक तो राह ख़ुदा में ख़र्च करने का और दूसरा सिला रहमी का।

अगर किसी के रिश्तेदार इस केसुलूक के मुहताज हूँ तो पहले उन की तरफ़ तवज्जा दें यानी पहले लवाहिक़ीन और वो अज़ीज़-ओ-अका़रिब हैं जिन्हें माल की अगर ज़्यादा ज़रूरत है ,तो वो देने वाले की तवज्जाके ज़्यादा मुस्तहिक़ हैं क़राबत दारों के साथ हुस्न-ए-सुलूक और माली तआवुन और ज़कात देने वग़ैरा में तर्जीह का सबब ये है कि अगर हर शख़्स अपने रिश्तेदारों की ख़बर गीरी करे तो फिर जुमला इंसानों की ख़बरगीरी हो जाएगी क्यों कि हर एक किसी ना किसी से कोई रिश्ता नाता ज़रूर रखता है

ताहम ख़ास सूरतों और ग़ैरमामूली हालात में हाजतमंदी के लिहाज़ से इन्फ़ाक़ और ज़कात में ज़्यादा मुहताजों को तर्जीह की रुख़स्त भी है यतामा, बीवगान, माज़ूर यन, तलबा, और जुमला रफ़ाही कामों के लिए अपना माल देना गोया बरकतों की ज़मानत हासिल कर लेना ही।इजलासों के आख़िर में बारगाह रिसालत ई में सलाम गुज़राना गया और रक्त अंगेज़ दुआईं की गईं।