हैदराबाद१६ अगस्त (रास्त) जो शख़्स शब क़दर में ईमान के साथ सवाब की उमीद में इबादत करता है तो इस के साबिक़ा गुनाह बख़श दिए जाते हैं। अल्लाह तबारक-ओ-ताला ने शब क़दर को हज़ार महीने के तिरासी बरस चार माह बनते हैं यानी शब क़दर में इबादत करना तिरासी बरस चार माह इबादत करने से बेहतर ही।
इन ख़्यालात का इज़हार दीनी इक़ामती दरसगाह कलीৃ अलबनीन जामाৃ इल्मो मनात मग़लपुरा मैं मुनाक़िदा जलसालीलৃ अलक़द्र कान्फ़्रैंस से हाफ़िज़ मुहम्मद साबिर पाशाह ने किया जिस की निगरानीहाफ़िज़ मुहम्मद मस्तान अली बानी-ओ-नाज़िम जामाৃ इल्मो मनात ने किया।
हाफ़िज़ साबिर पाशाह ने कहाकि माह रमज़ान उल-मुबारक की आख़िरी रात अलजाइज़ा हुआ करती है। यानी माह रमज़ान उल-मुबारक में की गई तमाम इबादतों का अज्र-ओ-सवाब लेने की रात ही। इस रात को ग़नीमत जानते हुए बाज़ारों और गली कूचों में फिरने के बजाय अज्र-ओ-सवाब हासिल करें।