रमज़ान उल-मुबारक के इनामी को पन्नों की क़ुरआ अंदाज़ी(पाँसा फॆंकना)

हैदराबाद १२ अक्तूबर (सियासत न्यूज़) माह रमज़ान उल-मुबारक में शाय होने वाले दीनी(धार्मिक‌) इनामी मुक़ाबला(आमना सामना) को पन्नों की क़ुरआ अंदाज़ी(पाँसा फॆंकना) आज महबूब हुसैन जिगर हाल, अहाता रोज़नामा सियासत में अमल में आई, जिस में बतौर मेहमान ख़ुसूसी हज़रत मौलाना मुफ़्ती ख़लील अहमद साहिब शेख़ इलजा मआ जामिआ निज़ामीया ने शिरकत की।

मुफ़्ती साहिब ने अपने ख़िताब में इदारा-ए-सियासत और रियाज़ में मुक़ीम हैदराबादी अहबाब की जानिब से माह रमज़ान में शाय होने वाले क़ुरान-ए-पाक की आयात पर मबनी सवालात को सराहते हुए कहा कि आमৃ अलमुस्लिमीन तक करानी पैग़ाम पहुंचाने का ये एक बेहतरीन तरीक़ा ही, जिस से अवाम को करानी अहकामात से मुताल्लिक़ काफ़ी मालूमात हासिल हो रही हैं। उन्हों ने कहा कि आज हम मुस्लमान दुनयावी तालीम के हुसूल के लिए तो हर तरह की कोशिश कर रहे हैं, लेकिन क़ुरान-ए-पाक के मुताला और इस की तालीमात से बहुत दूर होते जा रहे हैं।

उन्हों ने कहा कि क़ुरान-ए-पाक एक ऐसी किताब है, जो दुनिया में आज भी सब से ज़्यादा पढ़ी जाती है और ताक़यामत उस की तिलावत(पढना) का सिलसिला जारी रहेगा। मुफ़्ती साहिब ने कहा कि दुनिया में दीगर मज़ाहिब की भी किताबें मौजूद हैं, लेकिन किसी भी मज़हब की किताब के बारे में ये नहीं कहा जा सकता कि इस किताब के हुफ़्फ़ाज़ भी मौजूद हैं, जब कि क़ुरान-ए-पाक का ये एजाज़ है कि नुज़ूल क़ुरआन के दौर से लेकर आज तक इस के हिफ़्ज़ का सिलसिला जारी है और अब तक दुनिया में लाखों और करोड़ों क़ुरान-ए-पाक के हाफ़िज़ हो चुके हैं और इंशाअल्लाह ताली! ताक़याम क़ियामत लोग क़ुरान-ए-पाक का हिफ़्ज़ करते रहेंगी।

जनाब आमिर अली ख़ां न्यूज़ ऐडीटर सियासत ने कहा कि जनाब ज़करीया सुलतान (मुक़ीम रियाज़, सऊदी अरब), रियाज़ में मुक़ीम हैदराबादी अहबाब और इदारा सियासत की जानिब से करानी तालीम की जानिब रग़बत (इच्छा)दिलाने का ये सिलसिला काफ़ी हद तक कामयाब हुआ है, जिस की दलील ये है कि आज सही जवाब देने वालों की तादाद में इज़ाफ़ा हो चुका है। उन्हों ने बताया कि इस साल तक़रीबन 80 फ़ीसद लोगों ने सही जवाबात दिए हैं।

जनाब आमिर अली ख़ां ने कहा कि इदारा-ए-सियासत और रियाज़ में मुक़ीम हैदराबादी अहबाब का सिर्फ एक ही मक़सद है कि मुस्लमानों को क़ुरान-ए-पाक से क़रीब किया जाय और करानी पैग़ाम को अवाम तक पहुंचाया जाई। उन्हों ने कहा कि आज करानी इर्शादात पर गहिरी नज़र रखने वाले साईंसी तहक़ीक़ात(सरकारी तौर पर किसी काम् की जांच पडताल करना) को क़ुरान-ए-पाक के ज़रीया साबित कर रहे हैं और साईंसदाँ भी ये तस्लीम करने पर मजबूर हैं कि जिन चीज़ों की तहक़ीक़ात (सरकारी तौर पर किसी काम् की जांच पडताल करना) हम इक्कीसवीं सदी में कर रहे हैं, क़ुरान-ए-पाक ने आज से 1400 साल पहले ही बता दिया है।

बादअज़ां पहले और दूसरे इनामात की क़ुरआ अंदाज़ी (पाँसा फॆंकना)मुफ़्ती ख़लील अहमद साहिब ने और दूसरे-ओ-तीसरे इनामात की क़ुरआ अंदाज़ी जनाब आमिर अली ख़ां ने अंजाम दी। महफ़िल की निज़ामत (प्रबन्ध करना)मौलाना नूर अलहदा ने की। इस मौक़ा पर जनाब मीर शुजाअत अली मैनेजर रोज़नामा सियासत भी मौजूद थी।