हैदराबाद २८जुलाई : ( रास्त ) : रमज़ान उल-मुबारक को तमाम महीनों का सरदार कहा गया इस माह-ए-मुबारक में रोज़ा रखना फ़र्ज़ क़रार दिया गया है । रोज़ा ना सिर्फ एक इबादत है बल्कि ये बहुत सारी इबादतों का मजमूआ है हालत रोज़ा में नमाज़ के इलावासदक़ा ख़ैरात करना बड़े अज्र वाला काम है ।
तमाम अरकान में ये तवील इबादत कहलाती है । हर नेकी का अज्र दस से सात सौ गुना तक है लेकिन रोज़ा का अज्र ख़ुद अल्लाह ताली बन जाते हैं रोज़ादार के लिए जन्नत में ख़ास दरवाज़ा रयान बनाया गया है । रसूल अकरम ई ने फ़रमाया जिस ने ईमान और एहतिसाब के साथ रोज़ा रखा इस के पिछले गुनाह माफ़ हो जाते हैं ।
रोज़ा से असल मक़सद तज़किया-ओ-तक़वा है । मआशी इक़तिसादीजिस्मानी रुहानी नफ़सियाती तिब्बी-ओ-अख़लाक़ी लिहाज़ से भी देखा जाय तो अल्लाह ताली ने इस में सारे मसाइल का हल रख दिया है । इन हक़ायक़ का इज़हार मौलाना सय्यदआसिफ़ उमरी ने मस्जिद सुमय्या किशन बाग़ में क्या । उन्हों ने बताया कि रोज़ा कमख़ोरी का नाम है । ख़ूब सेराब हो कर खाने पीने से वो मक़सद हासिल नहीं होता जो कि रोज़ा में बताया गया ।
रोज़ा की हालत में ग़ैब , चुगु़ली , गाली गलौज और झूट से सख़्ती से मना किया गया । आपऐ ने फ़रमाया कितने ही रोज़ादार ऐसे हैं जिन को दिन में सिर्फ भूक-ओ-प्यास के और कोई चीज़ हासिल नहीं होती और कितने ही क़ियाम अललील ( तरावीह ) पढ़ने वाले ऐसे हैं जिन को शब बेदारी के सिवा कोई चीज़ नहीं हासिल होती । तक़वा के मफ़हूम को वाज़िह करते हुए बताया कि गुनाह से नफ़स को बचाए रखना और इस के लिए ममनूआ बातों को छोड़ना बल्कि उस की तकमील की ग़रज़ से कुछ जायज़ उमूर को भी छोड़ना मक़सूद है ।।