हैदराबाद।१३ अगस्त (रास्त) शब क़दर नुज़ूल क़ुरआन की रात ही, क़ुरआन मजीद की तिलावत अफ़ज़ल तरीन इबादत है। ख़वातीन को चाहीए कि करानी तालीमात के मुताबिक़ ज़िंदगी गुज़ारें क़ुरआन मजीद दस्तूर हयात-ओ-ज़िंदगी है। क़ुरआन मजीद में तमाम इंसानी मसाइल का हल मौजूद है। इन ख़्यालात का इज़हार शाह अली बंडा मैं जलसा यौम उल-क़ुरआन बराए ख़वातीन से डाक्टर रिज़वाना ज़र्रीन प्रिंसिपल जाम अलमोमनात ने किया।
जलसा का आग़ाज़ तालिबात जामाৃ अलममनात की करात-ओ-नाअत शरीफ़ से हुआ। जबकि इस जलसा की निगरानी इलहा जा ज़करिया बेगम ने की। सिलसिला ख़िताब को जारी रखते हुए उन्होंने कहा कि शब क़दर रमज़ान के आख़िरी अशरा की ताक़ रातों में तलाश करना चाहिए ।
शब क़दर जैसी मुक़द्दस रात में अल्लाह ताला की मुक़द्दस किताब क़ुरआन मजीद नाज़िल हुई है। मुफ़्तिया सईदा फ़ातिमा ने कहा कि औरतों को चाहिए कि वो अपने घरों में इबादत के लिए जो कमरा ख़ास रखा जाता है। इस में एतिकाफ़ का एहतिमाम करें। बुख़ारी शरीफ़ में मज़कूरा है।
हुज़ूर मुइ हर साल दस दिन एतिकाफ़(एकांत मे बैठना) फ़रमाया करते थी। डाक्टर तहमीना तहसीन ममनाती ने कहा कि हज़ोरऐ की उमत की उमरें चूँकि पहली उमतों के मुक़ाबिल में बहुत कम हैं, इस लिए अल्लाह ताला ने इस उम्मत को ऐसा महीना अता फ़रमाया जिस में वो इबादतों के ज़रीया अपने अज्र-ओ-सवाब को मुकम्मल करे।