सूद ख़ोरों की हुर्रा सानी, छोटे ताजरीन ख़ौफ़ज़दा

हैदराबाद।२७ अगस्त (सियासत न्यूज़) इन दिनों पुराने शहर में पकड़ धक्कड़ जारी है मगर फ़र्क़ ये है कि तआक़ुब करने वाले क़ानून नाफ़िज़ करनेवाली एजैंसीयों से ताल्लुक़ नहीं रखते हैं और जो लोग अपना पीछा करने वालों से बचते भागते फिर रहे हैं वो कोई मुजरिम नहीं हैं बल्कि जो लोग सरगरदां हैं वो सूद पर क़र्ज़ देने वाले साहूकार और रमज़ान में छोटे मोटे कारोबार करने वाले हैं।

पुराने शहर में माहे सियाम के दौरान ईद की ख़रीदी में ग़ैरमामूलीइज़ाफ़ा को देखते हुए कई छोटे मोटे ताजरीन ने एक माह की मुद्दत के लिए भारी शरह सूद पर क़र्ज़ हासिल किया था जिन्हें इस वाअदा पर रक़ूमात फ़राहम की गई थीं कि ईद केफ़ौरी बाद क़र्ज़ की रक़म मआ सूद अदा करदी जानी चाआई। सरमाया से महरूम छोटे मोटे ताजरीन माहे सियाम में होने वाले कारोबार में माक़ूल मुनाफ़ा की आस में क़लील मुद्दत के लिए दीए भारी शरह सूद पर क़र्ज़ हासिल करते हैं।

चारमीनार के दामन में कारोबारी सरगर्मीयों में मशग़ूल एक नौजवान ने बताया कि चूँकि माहे सियाम के दौरान चारमीनार केइलाक़ा में तिजारती सरगर्मीयां बहुत बढ़ जाती हैं इस लिए अक्सर छोटे मोटे कारोबारी इस मौक़ा का फ़ायदा उठाने मामूल से ज़्यादा माल इकट्ठा करना चाहते हैं ताकि उन की बिक्री के ज़रीया माक़ूल मुनाफ़ा हासिल किया जाय मगर इन का अलमीया ये होता हशदफ़े कि इन के पास अपना सरमाया नहीं होता।

सूद पर क़र्ज़ देने वाले लोग माहे सियाम से क़बलसरगर्म होजाते हैं और वो या उन के एजैंटस इन ताजरीन से रुजू होते हुए क़लील मुद्दती क़र्ज़ हासिल करने की तरग़ीब देते हैं और इस जाल में कई ताजरीन फंस जाते हैं, चूँकि ये क़र्ज़ा जात भारी शरह सूद पर दीए जाते हैं इस लिए अक्सर ऐसा होता है कि वो क़र्ज़ और सूद की रक़म यकमुश्त अदा करने से क़ासिर रहते हैं। माबाद ईद इन ताजरीन से ईद केफ़ौरी बाद क़र्ज़ और सूद की रक़म लौटाने का मुतालिबा किया जाता है तो वो परेशान होजाते हैं और वो क़र्ज़ वसूल करने वालों से मदभीड़ होजाने के डर से अपना मामूल का कारोबार करने से भी डरने लगते हैं क्योंकि क़र्ज़ की रक़म वसूल करने वाले उन के साथ सख़्ती से पेश आते हैं।

बताया जाता है कि क़लील मुद्दती क़र्ज़ा जात आज़म तरीन शरह सूद पर फ़राहम किए जाते हैं जो कभी कुभार सिर्फ़ 100 दिनों की मुद्दत के लिए 20-30फ़ीसद तक होता है और एक माह के लिए 5-10 फ़ीसद भी होता है । ईद से क़बल सरमायाफ़राहम करने वाले अक्सर लोग ताजरीन से उमूमन ज़बानी और कभी कुभार तहरीरी मुआहिदा करते हैं।

अक्सर मुस्लिम ताजरीन सूद से परहेज़ करते हैं इस लिए इन मुआहिदात में सूद की बजाय अब मुनाफ़ा की इस्तिलाह इस्तिमाल की जाने लगी है और मुआहिदा इस तरह किया जाता है कि सरमाया फ़राहम करने वालों को कारोबार करने वालेमुनाफ़ा का निस्फ़ हिस्सा अदा करे जिस का हिसाब ईद के अंदरून एक हफ़्ता करलिया जाता ही।

अक्सर ताजरीन जिन्हें आमदनी और मसारिफ़ का सही सही अंदाज़ा नहीं हो पाता वो अपने ख़ानदान के ईद मसारिफ़ पर आमदनी से ज़्यादा ख़र्च कर डालते हैं जिस की बिना वो ईद के फ़ौरी बाद क़र्ज़ और मुनाफ़ा की रक़म ( जो अपनी नौईयत के एतबार से सूद ही होता है