हज़रत सय्यद मुहम्मद हुसैनी गेसू दराज़ बंदानवाज़:ऒ हयात और तालीमात

सयासी पस-ए-मंज़र : चौधवीं सदी के दूसरे दहिय में सलतनत ख़लीजी का ज़वाल हुआ । हक़ीक़त में खिलजियों का ज़वाल इला-ए-उद्दीन खिलजी के इंतिक़ाल पर ही से शुरू होगया था लेकिन इंतिहाई कामयाब मुंतज़िम और दूर अंदेश सयासी हुक्मराँ था इस का दौर अमन-ओ-अमान और रियाया की सयानत का नमूना था ।

इस के मआशी इस्लाहात , बदनज़्मी रिश्वत सतानी को मिटाने की कोशिश और ज़रूरीयात-ए-ज़िंदगी की क़ीमतों पर क़ाबू पाने की हिक्मत-ए-अमली , आम आदमी के लिए बहुत सहूलत बख़श साबित हुई । हज़रत-ए-शैख़ नसीर उद्दीन महमूद चिराग़ देहलवी फ़रमाते हैं कि सुलतान अलाओ उद्दीन खिलजी के दौरमें अवाम सब से ज़्यादा ख़ुश और मुतमइन थे ।

1320-ए-में दबैल पर पंजाब के सूबादार ग़ाज़ी मलिक ने दिल्ली पर क़बज़ा करके ख़ुद को सुलतान ग़ियास उद्दीन तुग़ल्लुक़ के नाम से बादशाहत का ऐलान किया। इस के पाँच साल बाद 1325-ए-में मुहम्मद बिन तुग़ल्लुक़ सुलतान बिना जिस के मुताल्लिक़ मुअर्रिख़ ज़िया उद्दीन बरनी ने तारीख़ फ़िरोज़ शाही में यूं लिखा है ख़ुदाए ताला ने सुलतान मुहम्मद बिन तुग़ल्लुक़ को अपनी मख़लूक़ में एक अजूबा बनाया इस के मुतज़ाद सिफ़ात का उल्मा का इलम और अक़ला की अक़ल अहाता नहीं करसकते । मुहम्मद बिन तुग़ल्लुक़ एक आलम और ज़हीन सुलतान था।

लेकिन इस के फ़ैसले तबाहकुन थे और नाकाम रहे । 1347-ए-में इला-ए-उद्दीन हुस्न बहमन शाह जो तुग़ल्लुक़ का एक अमीर था दक्कन पर अपनी सलतनत का ऐलान किया और बहमनी दौर का आग़ाज़ हुआ। गुलबर्गा इस कापाए तख़्त बना। उधर दिल्ली में 1351मैं मुहम्मद बिन तुग़ल्लुक़ की वफ़ात के बाद फ़िरोज़ शाह तुग़ल्लुक़ को सुलतान बनाया गया ।

मुहम्मद बिन तुग़ल्लुक़ की ज़ुलम-ओ-ज़्यादती का इस बात से अंदाज़ा लगाया जा सकता है कि सुलतान फ़िरोज़ शाह की तख़तनशीनी के फ़ौरी बाद इस ने सारे ख़ानदानों से माफीनामे हासिल किए जिन पर मुहम्मद बिन तुग़ल्लुक़ ने ज़ुलम किया था और उन ख़ुतूत को मुहम्मद बिन तुग़ल्लुक़ की क़ब्र में दफ़न किया।

मज़हबी पस-ए-मंज़र : चौधवीं सदी ईसवी में इस्लाम और तसव्वुफ़ के बुनियादी उसोलों और अमली पहलूओं की तालीम दी जाया करती थी । सोफिया किराम भी इस्लाम को ऐसी शक्ल में पेश किया करते जो हिंदूस्तानी माहौल में नाक़ाबिल-ए-क़बूल हो उमूमन मज़हब के ज़ाहिरी पहलूओं पर मुबाहिस होते और उन्हें पहलूओं की तालीम दी जाती । मुतक़द्दिमीन सोफिया किराम की तसनीफ़ात ही को पढ़ाया जाता और उन्हें की तशरीहात की जातीं ।

अख़लाक़ीयात की एहमीयत दिखलाई जाती । ज़बान अरबी इलम हदीस फ़िक़्ह क़ुरआन और तफ़ासीर क़ुरआन पढ़ाया जाता । इस सदी के मज़हबी मीलान की एहमीयत उस वक़्त बढ़ी जब शेख़ अकबर मुही उद्दीन इबन अरबी का तसव्वुर वहदत उल-वजूद जो सरज़मीन हिंद पहुंचा । क़रीन-ए-क़ियास ये है कि फ़ख़र उद्दीन इराक़ी (मुतवफ़्फ़ी 1289य-ए-) के ज़रीया भी ये नज़रियात की इशाअत हिंदूस्तान में हुई। फ़िरोज़ शाह तुग़ल्लुक़ की तख़तनशीनी तक ना सिर्फ इबन अरबी की तसानीफ़ हिंदूस्तान पहुंच चुकी थीं बल्कि उन के नज़रियात पर बेहस-ओ-मुबाहिस होने लगे थी।

इबन अरबी की तसानीफ़ पर तशरीहात किए जाने लगे और मुक्तो बात के ज़रीया मसला वहदत उल-वजूद पर बेहस होनी लगी। लोग अना-उल-हक़ का नारा लगाए जिन पर फ़िरोज़ शाह तुग़ल्लुक़ ने क़तल के फ़तवा सादर किए इस का एक असर ये हुआ कि शरीयत और फ़िक़्ह इस्लाम पर ज़ोर दिया करते थे कि आप को अब्बू हनीफा सानी कहा जाता था ।

हयात हज़रत ख़्वाजा बंदा नवाज़ऒ : इसी दौर में हज़रत ख़्वाजा गेसू दराज़ बंदा नवाज़ऒ बतारीख़ 4 रजब 721 ह मुताबिक़ 1321-ए-में दिल्ली में पीद अहोए ।

आप का नाम सय्यद मुहम्मद हुसैनी था और आप के अलक़ाब गेसू दराज़ ,बंदानवाज़, शहबाज़, बलंद परवाज़ , मह्रमे राज़-ओ-नयाज़ थी। आप का ताल्लुक़ खुरासान के एक सादात घराने से था जो सादात दराज़ गेसू के लक़ब से जाने जाते थे (बाक़ौल सय्यद अशर्फ़ जहांगीर समनानीऒ मुक्तो बात) ।

हज़रत गीसोदराज़ऒ की आदत थी कि अपने आराम से ज़्यादा दूसरों के राहत को तर्जीह दिया करते । जो भी आप को अता होता ज़रूरतमंदों में तक़सीम करदेते । इसी वजह से पैर नसीर उद्दीन चिराग़ देहलवी (रहि.) ने आप को लक़ब बंदा नवाज़ऒ से सरफ़राज़ फ़रमाया।

जिस वक़्त मुहम्मद बिन तुग़ल्लुक़ ने अपने नाकाम मंसूबे पर अमल किया और दार-उल-ख़लाफ़ा को दिल्ली से दौलत आबाद मुंतक़िल किया तो ख़्वाजा बंदा नवाज़ऒ अपने वालदैन के साथ दौलत आबाद तशरीफ़ लाए । आप ऒ के वालिद बुजु़र्गवार सय्यद यूसुफ़ हुसैनी ऒ उल-मारूफ़ बह राजा क़िताल ने 1330-ए-में रहलत फ़रमाई । पाँच साल बाद ख़्वाजा साहिब अपनी वालिदा मुहतरमा और बिरादर बुज़ुर्ग के हमराह दिल्ली से वापिस हुए । 1336-ए-में आपऒ और आप के भाई नसीरउद्दीन चिराग़ देहलवी (रहि.) के हलक़ा इरादत में दाख़िल हुए ।

1356-ए-में हज़रत पीर नसीर अलदीनऒ ने आपऒ को ख़िलाफ़ अता फ़रमाई और इसी साल 18रमज़ान को पैर नसीर उद्दीन ऒ ने विसाल फ़रमाया । तीन दिन बाद हज़रत ख़्वाजा गीसोदराज़ऒ ख़लीफ़ा ख़ास की हैसियत से ख़ानक़ाह चिश्तिया नसीरीया मैं सज्जादा नशीन हुए । 44बरस तक दिल्ली में ही आप ऒ रशद-ओ-हिदायत का काम अंजाम देते रहे । आप का निकाह 40बरस की उम्र में अपनी वालिदा माजिदा के हुक्म पर हुआ ।

आप को दो लड़के और तीन लड़कीयां थीं । 11नवंबर 1398-ए-में आप ऒ ने अपने अहल-ओ-अयाल के हमराह दौलत आबाद की तरफ़ हिज्रत फ़रमाई । उस वक़्त आप की उम्र 80बरस की थी । बहादुर प्र , गवालयार, बहा नदीर , चंदेरी , बड़ौदा , सुलतान पर और खमबाइत से होते हुए दौलत आबाद पहुंची। इस तवील सफ़र के दौरान हर मुक़ाम पर जहां आप ऒ ने क़ियाम फ़रमाया सैंकड़ों अक़ीदत मंदों ने आपऒ का पुरतपाक इस्तिक़बाल किया । मुताला से ख़्याल तो ये होता है कि आप ऒदोलत या ख़ुलद आबाद ही में जहां आपऒ के वालिद बुजु़र्गवार मदफ़न हैं सुकूनत इख़तियार करने का इरादा रखते थे लेकिन फ़िरोज़ शाह बहमनी ने आपऒ को हसन आबाद (गुलबर्गा ) तशरीफ़ लाने की दावत दी ।

इस दावत को क़बूल फ़रमाया और 1400-ए-में सरज़मीन गुलबर्गा को अपनी आमद से ज़नीत बख़शी । आपऒ की ख़ानक़ाह क़िला गुलबर्गा के मग़रिबी जानिब आज भी मौजूद है जहां आप ने कुछ अर्सा क़ियाम फ़रमाया था । बादशाह से कुछ रंजिश की बिना आपऒ ने अपनी ख़ानक़ाह तबदील फ़रमाई और इस मुक़ाम को अपनी रिहायश गाह बनाई जहां आप की आख़िरी आरामगाह है ।बहरहाल आपऒ ने मज़ीद 22साल शहर गुलबर्गा में दरस वतदरीस तसनीफ़-ओ-तालीफ़ में गुज़ारे और6ज़ीकादा 825ह मुताबिक़ यक्म नवंबर 1422-ए-में विसाल फ़रमाया। आपऒ की ये वसीयत थी कि आप के विसाल के बाद आपऒ को ख़ुलद आबाद में सपुर्द-ए-ख़ाक करें लेकिन किसी ना मालूम वजह से गुलबर्गा में ही आसूदा ख़ाक हुए ।

मुंसिफ़ : हज़रत ख़्वाजा गीसोदराज़ऒ साहिब कसीर अलतसानीफ़ थी। हम को यक़ीनी तौर पर ये पता नहीं कि चलता कि आप के क़लम से कितनी तसानीफ़ जारी हुई हैं। रिवायत के मुताबिक़ 105तसानीफ़ हैं ।तबसरा अलख़वारक़ात ने 125कहा ही। सैर मुहम्मदी में 36तसानीफ़ की फ़हरिस्त मिलती है और तारीख़ हबीबी मैं 45। आपऒ की तसानीफ़ इलम तफ़सीर , इलम हदीस , इलम फ़िक़्ह , इलम-ए-कलाम , इलम-ए-तसव्वुफ़ , से ताल्लुक़ रखती हैं इन तमाम उलूम के इलावा फ़न शायरी में आपऒ का ज़ौक़ था लेकिन आप ऒकी शायरी में इर्फ़ानी और नाअतिया मज़ामीन ही मिलते हैं ।

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तालीमात : आपऒ की तालीमात में पैरौ मुरीद की बहुत एहमीयत है आपऒ फ़रमाते हैं कि मुरीद अपने पैर के दिल में ख़ुदा का नज़ारा करता ही। और पैर अपने मुरीद के दिल में ख़ुद देखता है । इस रिश्ता के ताल्लुक़ से आप लिखते हैं कि सूरज का अक्स पानी में बहुत साफ़ होता है लेकिन एक दीवार पर रास्त अक्स नज़र नहीं आता ।

पीरोमुर्शिद पानी की तरह है और दीवार मुरीद की तरह अगर दीवार को पानी के मुत्तसिल रखा जाय तो सूरज का अक्स पानी के ज़रीया दीवार पर पड़ेगा। तज़किया नफ़स और तवज्जा नाम की भी एहमीयत है आपऒ फ़रमाते हैं तज़किया चार चीज़ों की कमी से हासिल होता है । कम खाना , कम बोलना ,कम सोना और कम मेल जोल रखना, तवज्जा ताम दिल को हर उस चीज़ से आज़ाद करदेती है जो ग़ैर ख़ुदा है ।आपऒ फ़रमाते हींका मुराक़बा इलम का सरचश्मा है और अपने मक़सूद से क़रीब होने का एक ज़रीया ।

मुराक़बा के लफ़्ज़ी मानी बतलाते हुए आप लिखते हैं ऊंट पर अपने दोस्त की तरफ़ सवारी करना है और इस के इस्तिलाही मानी यूं फ़रमाते हैं कि अपने आप को अपने दोस्त यानी अल्लाह के हुज़ूर में पेश करदेना और इस से विसाल की उमीद रखना। इश्क़-ए-इलाही का तसव्वुर आपऒ के मसलक की बुनियाद थी । तख़लीक़ की वजह और इस का राज़ इशक़ और मार्फ़त है ।अगर इशक़ ना होता तो फ़लक ना घूमता , अगर इशक़ ना होता तो दरिया में शोरीदगी ना होती , अगर इशक़ ना होता तो बारिश ना बरसती , अगर इशक़ ना होता सब्ज़ा ना उगता , अगर इशक़ ना होता हैवान ना ज़्यादा होते ।

अगर इशक़ ना होता इंसान अह्द बलाग़त को ना पहुंचा । अगर इशक़ ना होता तो कोई अल्लाह की प्रसतिश ना करता और अगर इशक़ ना होता तो कोई जमाल-ए-इलाही ना देखता ।

गनबद शरीफ़ : तारीख़ से पता चलता है कि हज़रत ख़्वाजा बंदा नवाज़ऒ की गनबद शरीफ़ की तामीर की इबतदा-ए-अहमद शाह वली बहमनी ने की ।जिस वक़्त तामीरी काम मुकम्मल होगया तो आपऒ के पोतरे सय्यद क़बूल अल्लाह हुसैनी ऒ ने ख़ुशी का इज़हार करते हुए गनबद शरीफ़ के किलस पर झेला चढ़ाया। इत्तिफ़ाक़न ख़्वाजा साहिब का उर्स-ए-शरीफ़ एक माह बाद था। इसी वजह इस तक़रीब को रिवायतन उर्स के एक माह क़बल बरक़रार रखा गया ।

उर्स : तक़रीब उर्स की बुनियाद क़ुरआन मजीद ही। हज़रत यहया अलैहि अस्सलाम के ताल्लुक़ से सूरा मर्यम आयत 15में अल्लाह ताला फ़रमाता है और सलामती हो उन पर जिस रोज़ वो पैदा हुए और जिस रोज़ वो इंतिक़ाल करेंगे और जिस रोज़ उन्हें ज़िंदा करके उठाया जाएगा। इस आयत की रोशनी में तीन दिनों की एहमीयत बतलाई गई () यौम-ए-पैदाइश ,() यौम विसाल, () यौम हश्र। उर्स यौम विसाल का दिन है ।

हुज़ूर अकरम सिल्ली अल्लाह अलैहि वसल्लम ने अपने चचा सय्यद ना हमज़हओ के लिए तीसरे दिन सातवें और चालीसवीं दिन , छः माह और एक साल बाद भी सदक़ा दिया। नीज़ आँहज़रत सिल्ली अल्लाह अलैहि वसल्लम शुहदा अह्द के मज़ारात पर हरसाल तशरीफ़ ले जाया करते थे । फ़ातिहा और दुआ फ़रमाया करते । ऊपर ब्यान की गई आयत और संत रसूल ई से ये बात साबित है कि मौत का दिन हश्र का दिन पैदाइश का दिन अपनी अपनी जगह एहमीयत का हामिल है । तक़रीब उर्स इसी वजह वक़ात रखता है ।