हर इबादत में इख़लास(निश्छलता) का होना शर्त

हैदराबाद २९ अक्टूबर (रास्त) अल्लाह तबारक-ओ-ताला फ़रमाता है इख़लास मेरे राज़ों में से एक राज़ है जो मैंने अपने इन बंदों के दिलों में बतौर अमानत रखा है जिन से मुझे मुहब्बत है और क़ुर्बानी के अमल में भी इख़लास(निश्छलता) पर ज़ोर दिया गया है और इरशाद ख़ुदावंद ताला होता है कि ना अल्लाह को गोश्त पहुंचता है ना ख़ून बल्कि अल्लाह को साहिब क़ुर्बानी की नीयत और इस का इख़लास(निश्छलता) तक़वा-ओ-परहेज़गारी मक़सूद है।

इन ख़्यालात का इज़हार हाफ़िज़ मुहम्मद साबिर पाशाह कादरी ने नमाज़ ईद से क़बल किया। उन्हों ने कहाकि मोमिन की नीयत इस के अमल से बेहतर है और फ़ासिक़ की नीयत इस के अमल से बदतर है। हर चीज़ में मिलावट मुम्किन है जब वो मिलावट से पाक और ख़ाली हो तो उसे ख़ालिस कहते हैं और जिस फे़अल(कार्य/कर्म‌) से वो अमल साफ़ होता है इस को इख़लास (निश्छलता) कहते हैं।

अल्लाह तबारक-ओ-ताला सूरत अलनहल में इरशाद फ़रमाता है गोबर और ख़ून के बीच में से ख़ालिस दूध गले से सहल उतरता पीने वालों के लुई। जब कोई काम रिया से ख़ाली और रज़ाए इलाही के लिए हो तो वो ख़ालिस होता है। हज़रत मूसा फ़रमाते हैं इख़लास ये है कि ख़ुद इख़लास(निश्छलता) पर भी नज़र ना रहे क्योंकि जो शख़्स अपने इख़लास(निश्छलता) में इख़लास (निश्छलता) को देखता है तो इस का इख़लास(निश्छलता) , इख़लास(निश्छलता) का मुहताज है। हज़रत जनीदऒ फ़रमाते हैं इख़लास(निश्छलता) आमाल का कुदूरतों से पाक होने का नाम है।