हाफ़िज़ मुहम्मद जीलानी की किताब अरमुगाँ-ए-अदब की रस्म इजरा

हैदराबाद29 जनवरी: मारूफ़ अदीब हाफ़िज़ मुहम्मद जीलानी की अदबी तसनीफ़ अरमुगाँ-ए-अदब की तक़रीब रस्म इजरा बमुक़ाम नहरू आडीटोरीयम, मदीना एजूकेशन सैंटर, हैदराबाद मुनाक़िद हुई। इस किताब की रस्म इजरा मुमताज़ स्कालर-ओ-सनद अक़बालयात डाक्टर मुहम्मद ज़िया उद्दीन अहमद शकीब (लंदन) के हाथों अमल मनाई ।

तक़रीब की सदारत मुमताज़ अदीब, तंज़-ओ-मज़ाह निगार पद्मश्री डाक्टर मुज्तबा हुसैन ने की। डॉन एजूकेशन सोसाइटी, हैदराबाद के ज़ेर-ए-एहतिमाम मुनाक़िद होने वाली इस तक़रीब का आग़ाज़ हाफ़िज़ मुहम्मद निज़ाम उद्दीन की तिलावत कलाम पाक से हुआ। नाज़िम जलसा मौलाना शाह मुहम्मद फ़सीह उद्दीन निज़ामी ने मेहमानान ख़ुसूसी और तमाम हाज़िरीन का ख़ौरमक़दम किया।

इस तक़रीब को मुख़ातब करते हुए प्रोफ़ैसर बैग एहसास सदर शोबा उर्दू हैदराबाद सैंटर्ल यूनीवर्सिटी ने अपने ख़िताब में पहले हाफ़िज़ मुहम्मद जीलानी की शख़्सी तौसीफ बयान करते हुए कहा कि मैंने अपनी ज़िंदगी में एक अच्छे और नेक इंसान-ओ-मुस्लमान को जिस तरह ज़िंदगी गुज़ारनी है उसे देखा है।

प्रोफ़ैसर बैग एहसास ने जीलानी साहिब के फ़न का अरमुगाँ-ए-अदब के मज़ामीन की रोशनी में कहीं मबसूत और कहीं इजमालन तजज़िया करते हुए पुरमग़्ज़ तबसरा फ़रमाया। मुमताज़ उर्दू सहाफ़ी सय्यद फ़ाज़िल हुसैन परवेज़ मुदीरे आअला हफ़तरोज़ा गवाह ने भी मुख़ातब किया। मुमताज़ प्रोफ़ैसर-ओ-साबिक़ सदर शोबा उर्दू उस्मानिया यूनीवर्सिटी डाक्टर मजीद बेदार ने अपने ख़िताब में कहा कि अरमुगाँ-ए-अदब का कोई भी मज़मून आप पढ़ डालें कहीं आप को कोई ऐसा जुमला या ऐसा फ़िक़रा नज़र नहीं आएगा जो ज़बान-ओ-बयान की ख़ूबीयों वाला ना हो।

प्रोफ़ैसर मुस्तफ़ा कमाल मुदीरे आअला माहनामा शगूफ़ा ने अपने ख़िताब में कहा ऐसी किताबें बहुत कम हैं, जो अपने ज़ाती मुशाहिदा से और अपनी नज़र से लिखी जाई। मुअज़्ज़िज़ मेहमान आफ़ाक़ स्कालर-ओ-सनद अक़बालयात डाक्टर मुहम्मद ज़िया उद्दीन अहमद शकीब (लंदन) ने अपने ख़िताब में कहा कि जीलानी साहिब के फ़िक्र के दो पहलू हैं।

एक तो इस्लामी बल्कि करानी और दूसरा पहलू उर्दू ज़बान से उन की मुहब्बत का है। सदर जलसा पद्मश्री डाक्टर मुज्तबा हुसैन ने अपने सदारती तक़रीर में हाफ़िज़ मुहम्मद जीलानी की शख़्सी तारीफ़ में कहा कि ये वो शख़्सियत हैं जिन से नई सदी की शुरूआत में सिलसिला मुरासलत से रब्त पैदा हुआ और में उन की मुहब्बत और ख़ुलूस से बहुत मुतास्सिर हुआ। उन्हों ने किताब मेंतबा शूदा बाअज़ मज़ामीन और ख़ाकों की तारीफ़ की।

आख़िर में मुसन्निफ़ अरमुगाँ-ए-अदब हाफ़िज़ मुहम्मद जीलानी ने इस रस्म इजरा को अपनी ख़ुशनसीबी कहा और जलसा में हाज़िर मेहमानान ख़ुसूसी और जलसा के रूह रवां जनाब फ़ज़ल अलरहमन ख़ुर्रम डायरैक्टर डॉन एज्यूकेशनल सोसाइटी हैदराबाद ने तमाम मेहमानान का शुक्रिया अदा किया।