बैतुल्लाह का हज

अल्लाह तआला ने अपने बंदो के लिए कुछ दिन मुकर्रर फरमाए हैं जिनमें अल्लाह की नेमतों को याद करें, उसके एहसानात का शुक्र बजा लाएं, उसकी तकदीस व तमहीद से तारीफ करने वाले हो और फिर इन मुबारक घडि़यों में उनके जेहनों व दिलों में तौहीद, इस्ल

जिल हज्जा के फज़ायल

नबी करीम (स०अ०व०) ने इरशाद फरमाया कि जिल हिज्जा के शुरू दस दिनों में किया जाने वाला हर नेक अमल अल्लाह को इतना महबूब है कि दूसरे दिनों में उतना नहीं। इसी तरह दूसरी हदीस में आप (स०अ०व०) ने फरमाया कि जिल हिज्जा के महीने में पहले अशरे के ह

मुजफ्फरनगर दंगा: ‘आजम ने कहा था- जो हो रहा है, होने दो’

मुजफ्फरनगर फिर्कावाराना दंगे तो खत्म हो गये, लेकिन इसे लेकर अब चौंकाने वाली बातें सामने आ रही हैं। भले ही यूपी हुकूमत दंगे भड़काने का इल्ज़ाम अपोजिशन पार्टियों पर मढ़ रही हो, मगर एक स्टिंग ऑपरेशन में खुलासा हुआ है कि समाजवादी पार्

माँ अपनी गोद को दीनी गोद बनाये

इंसानी ज़िंदगी की इब्तेदा माँ के बतन ( पेट) से होती है। बच्चा माँ के पेट से पैदा होकर दुनिया में आता है, इसलिए माँ की गोद को बच्चे का पहला मदरसा कहा जाता है। जब कोई मिस्त्री किसी दीवार की पहली ईंट टेढ़ी रख देता है तो वो दीवार टेढ़ी ही उठती

तामीर ए बैतुल्लाह एक तारिखी जायज़ा

बैतुल्लाह, ख़ाना-ए-काबा को कहा जाता है , जो मक्का मुअज़्ज़मा में वाकेय् है, दुनिया की इबादतगाहों में बैतुल्लाह शरीफ़ ख़ुदा ए तआला की सब से क़दीम और पहली इबादतगाह है, क़ुरआन करीम में इरशाद है : बेशक सब से पहला घर जो मुक़र्रर हुआ (लोगों की इब

हिन्दू समाज ने विश्व हिन्दू परिषद को ठुकराया

पूरे मुल्क खुसूसन उत्तर प्रदेश के हिन्दू समाज ने इस बार विश्व हिन्दू परिषद और पूरे आरएसएस कुन्बे को साफ बता दिया कि अब वह भगवान राम के नाम पर परिषद और आरएसएस की जालसाजियों में फंस कर बीजेपी का वोट बैंक बनने के लिए तैयार नहीं है। इसक

ऐ ईमान वालो! अल्लाह से डरो

ऐ ईमान लाने वालो! अल्लाह से डरो और ठीक बात किया करो। अल्लाह तुम्हारे आमाल दुरूस्त कर देगा और तुम्हारे कुसूरों से दरगुजर फरमाएगा। जो शख्स अल्लाह और उसके रसूल (स०अ०व०) की इताअत करे उसने बड़ी कामयाबी हासिल की।

शादी ब्याह के रस्म व रिवाज

इंसान की जिंदगी के मराहिल में एक अहम मरहला शादी-ब्याह का है। इस्लाम ने इसे सादगी से अंजाम देने की तरगीब दी है। कुरआन मजीद में अल्लाह तआला फरमाता है : जो औरतें तुमको पसंद आएं उनमें से दो-दो, तीन-तीन, चार-चार से निकाह कर लो। लेकिन अगर तुम

क्या 50 पैसे का सिक्का भी गुज़रे ज़माने की बात बन जाएगा?

(मुहम्मद जसीम उद्दीन निज़ामी) इस में कोई दो राय नहीं कि पचास पैसे के सिक्के का चलन क़ानूनी तौर पर अब भी जायज़ है, लेकिन आम दुकानदार,सब्ज़ी फ़रोश ,मैडीकल स्टोर्स ,बस कंडक्टर्स, यहां तक के भिकारी भी जिस तरह पचास पैसे क़ुबूल करने से गुरे

मिस्री बोहरान में अमरीका किस हद तक क़सूरवार

अमरीका ने भी रवां हफ़्ते मिस्री फ़ौज की जानिब से शहरीयों के क़तल-ए-आम के ख़िलाफ़ उठने वाली आलमी आवाज़ों में अपनी आवाज़ शामिल कर दी है ताहम बैनुलअक़वामीउमूर के माहिरीन और तजज़िया कार अमरीका से इस से कुछ ज़्यादा की उम्मीद रखते थे।

मिस्री बोहरान में अमरीका किस हद तक क़सूरवार

अमरीका ने भी रवां हफ़्ते मिस्री फ़ौज की जानिब से शहरीयों के क़तल-ए-आम के ख़िलाफ़ उठने वाली आलमी आवाज़ों में अपनी आवाज़ शामिल कर दी है ताहम बैनुलअक़वामीउमूर के माहिरीन और तजज़िया कार अमरीका से इस से कुछ ज़्यादा की उम्मीद रखते थे।

ईद क्या है ….?

सिवइयों में लिपटी मोहब्बत की मिठास का त्योहार ईद-उल-फितर भूख-प्यास बरदाश्त करके एक महीने तक सिर्फ खुदा को याद करने वाले रोजेदारों को अल्लाह का इनाम है।

शबे कद्र की रात……और इसकी फज़ीलत

रमजानुल मुबारक के महीने में इबादत गुजार बंदे पहली रात से ही अपने माबूद (पूज्य) को मनाने, उसकी इबादत करने मे जुट जाते हैं। इन नेक बंदों के लिए शब-ए-कद्र परवरदिगार का अनमोल तोहफा है। कुरआन में इसे हजार महीनों से बेहतर (श्रेष्ठ) रात बताय

दोजख से निजात का अशरा

इक्कीसवें रोजे से तीसवें रोजे तक के दस दिन/दस रातें माहे रमजान का आख़िरी अशरा (अंतिम कालखंड) कहलाती है।

दावतों में बचे हुए खाने का मनसूबाबंद इस्तिमाल वक़्त की अहम ज़रूरत

हैदराबाद 21 जुलाई (मुहम्मद जसीम उद्दीन निज़ामी) एक ऐसे वक़्त जब दौलतमंद अफ़राद की जानिब से तक़रीब-ए-दावत और पार्टीयों के नाम पर शहर भर के मुख़्तलिफ़ शादी ख़ानों, क्लबों और तफ़रीह गाहों में खाने पीने की मुख़्तलिफ़ चीजों की बर्बादी ए

रमजान और तिलावते कुरआन

रमजानुल मुबारक में जैसा कि रिवाज है हम लोग कुरआन मजीद की तिलावत का खास एहतेमाम करते हैं लेकिन हमारे अक्सर भाई बहन दानिस्ता और नादिस्ता तौर पर हकीकी मायनों में कुरआन की तिलावत में कुछ जरूरी और बुनियादी उसूलों की खिलाफवर्जी करके स

रमजान के फजायल

रोजा इस्लामी इबादात का दूसरा अहम रूक्न है। रोजा एक ऐसी इबादत है जिसमें नफ्स की तहजीब और उसकी इस्लाह और कुवते बरदाश्त तर्बियत मद्देनजर होती है। रोजा के लुगवी मायनी रूकने और कोई काम न करने के हैं। शरई इस्तलाह में सुबह सादिक से लेकर