वो ….. (वली तनवीर का अफ़साना )

मर्कज़ी कुतुबख़ाने की बुलंद-ओ-बाला इमारत के ज़ीनों से उतरते हुए मेरे क़दम निढाल थे और दिल में एक सोज़-ओ- गुदाज़ की दुनिया सी आबाद थी। सुबह के दस बजे से उस वक़्त तक मैं एक पुरासरार नावेल का मुताला करता रहा था, जिसमें एक तिश्नाकाम (प्यासी) और न

कुछ काम करो

एक नौजवान किसी से मिलने जाता है।
उस से पूछा जाता है: आप क्या करते हैं?
वो कहता है: शायरी।
सवाल फिर पूछा जाता है: काम क्या करते हो?
जवाब मिलता है: यही मेरा काम है।
सवाल करने वाला कहता है: जाओ, कुछ काम करो।

अदबी लतीफ़े

एक महफ़िल में मौलाना आज़ाद और मौलाना ज़फ़र अली ख़ान हाज़िर थे। मौलाना आज़ाद को प्यास महसूस हुई तो एक बुज़ुर्ग जल्दी से पानी का हयूला ले आए। मौलाना आज़ाद ने हंस कर इरशाद किया-
ले के इक पैर-ए-मुग़ां हाथ में मीना, आया

फिर वो कौन था जो इतनी देर बोलता रहा

कायनात में सबसे अहम जितनी चीज़ें हैं, उनमें से सांसों के बाद अगर कोई सब से ज़रूरी चीज़ है तो वह..लफ़्ज़ है, लेकिन कभी-कभी एक और चीज़ उस पर भारी पड़ जाती है और वह है ख़ामोशी। किसी ने शायरी के बारे में कहा है कि यह दो लफ़्ज़ों के बीच की ख़ाली