वो ….. (वली तनवीर का अफ़साना )
मर्कज़ी कुतुबख़ाने की बुलंद-ओ-बाला इमारत के ज़ीनों से उतरते हुए मेरे क़दम निढाल थे और दिल में एक सोज़-ओ- गुदाज़ की दुनिया सी आबाद थी। सुबह के दस बजे से उस वक़्त तक मैं एक पुरासरार नावेल का मुताला करता रहा था, जिसमें एक तिश्नाकाम (प्यासी) और न